विश्वविद्यालयों एवं कालेजों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार मौजूदा नियमों की समीक्षा कर रही है। इस सिलसिले में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) और पीएचडी की अनिवार्यता की भी समीक्षा की जाएगी। इस पहलु पर भी विचार किया जाएगा कि क्या बिना नेट एवं पीएचडी के भी योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो सकती है या नहीं?
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विगत 24 जुलाई को इस सिलसिले में यूजीसी के पूर्व चैयरमैन अरुण निगवेकर की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की है। यह समिति बताएगी कि किस प्रकार योग्य शिक्षकों की नियुक्ति कालेजों एवं विश्वविद्यालयों में की जाए। शिक्षकों के लिए नेट की अनिवार्यता और प्रोन्नति के लिए पीएचडी की अनिवार्यता के कारण योग्य शिक्षक नहीं मिल रहे हैं। खबर यह भी है कि कई लोग शिक्षक में आना चाहते हैं लेकिन उनके पास नेट या पीएचडी नहीं है।
मंत्रालय ने समिति को को कहा कि वह दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दे। समिति को यह भी कहा गया है कि 2009 से पीएचडी करने वाले जिन डिग्रीधारकों को सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के अयोग्य माना जा रहा है, उनके मुद्दे को भी देखे। तीसरे, समिति विश्वविद्यालयों में कालेजों में शिक्षकों की अस्थाई नियुक्ति का भी समाधान तलाशेगी। दरअसल, नियुक्ति प्रक्रिया जटिल हो जाने के कारण और योग्य उम्मीदवारों की कमी के कारण विश्वविद्यालयों में अस्थाई शिक्षक बढ़ते जा रहे हैं।
समिति के अन्य सदस्यों में प्रोफेसर सुनील गुप्ता, प्रोफेसर सुमित बोस, प्रोफेसर बी. थिम्मेगौड़ा, प्रो. अश्विनी कुमार महापात्रा, तथा डा. एस. एस. संधू शामिल हैं। समिति को 24 सितंबर से पहले अपनी रिपोर्ट देनी है। बता दें कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को करीब 40 फीसदी और अन्य तकनीकी संस्थानों में करीब 33 फीसदी पद खाली पड़े हैं।
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मंत्रालय ने समिति को को कहा कि वह दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट दे। समिति को यह भी कहा गया है कि 2009 से पीएचडी करने वाले जिन डिग्रीधारकों को सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति के अयोग्य माना जा रहा है, उनके मुद्दे को भी देखे। तीसरे, समिति विश्वविद्यालयों में कालेजों में शिक्षकों की अस्थाई नियुक्ति का भी समाधान तलाशेगी। दरअसल, नियुक्ति प्रक्रिया जटिल हो जाने के कारण और योग्य उम्मीदवारों की कमी के कारण विश्वविद्यालयों में अस्थाई शिक्षक बढ़ते जा रहे हैं।
समिति के अन्य सदस्यों में प्रोफेसर सुनील गुप्ता, प्रोफेसर सुमित बोस, प्रोफेसर बी. थिम्मेगौड़ा, प्रो. अश्विनी कुमार महापात्रा, तथा डा. एस. एस. संधू शामिल हैं। समिति को 24 सितंबर से पहले अपनी रिपोर्ट देनी है। बता दें कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को करीब 40 फीसदी और अन्य तकनीकी संस्थानों में करीब 33 फीसदी पद खाली पड़े हैं।
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