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हक की लड़ाई में अपना ही अपमान

हक की लड़ाई में महिलाएं खुद को ही कमजोर साबित करने पर तुली हैं। यह हाकिमों को कमजोर, नाकारा, काहिल बताने के लिए उन्हें चूड़ी पहनाने की मशक्कत करती हैं। यह भूल जातीं कि ऐसा कर वह खुद को ही कमजोर बताकर अपना अपमान कर रही हैं। सौभाग्य सूचक सामग्री भेंट करने के पीछे इनका मकसद हाकिमों को स्त्री की तरह साबित करना होता

है। हाल ही में जिले में इसी तरह की घटनाएं पेश आईं जिनमें खुद महिलाओं ने अफसरों को चूड़ी पहनाने की कोशिश की। इस तरह उन्होंने अफसरों को नहीं संपूर्ण महिला समाज को अपमानित किया।
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता.. ये पंक्तियां अनादिकाल से देश के महिला समाज को संबल देती आ रही हैं। चूड़ी, 

बिंदिया, बिछिया जैसे प्रतीक भी महिला के सम्मान और सौभाग्य से जुड़े हैं। भारतीय समाज के अंदर इन प्रतीकों की खासी महत्ता है और ये महिलाओं की कमजोरी नहीं वरन उनके मजबूत आत्मविश्वास के प्रतीक हैं। दुखद बात ये है कि समय-समय पर महिलाएं इन प्रतीकों को कमजोरी का सिंबल बनाकर कभी अफसरों तो कभी नेताओं को अपमानित करने की कोशिश 

करती हैं। लेकिन असल में जाने अनजाने खुद का ही अपमान कर डालती हैं। इसे किसी हालत में समाज की नजर में ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। हाल ही में दो शर्मसार करने वाले मामले सामने आए। शनिवार को एसीएमओ डा. राजवीर सिंह और सोमवार को बेसिक शिक्षा के वित्त एवं लेखाधिकारी गजेंद्र कुमार को दो अलग-अलग मामलों में महिलाओं ने चूड़ी पहनाने की कोशिश की। इसके पीछे उद्देश्य था कि कुछ कर नहीं सकते तो अपने को औरत मान लो। इससे सीधा संदेश 

गया कि औरत कुछ कर नहीं सकती। खास बात ये कि एक मामले में तो आत्मनिर्भर हो चुकी पढ़ी-लिखी महिलाओं ने ये कदम उठाया। कुल मिलाकर सौभाग्य और सम्मान के प्रतीकों का प्रयोग इस तरह हक की लड़ाई में किसी को अपमानित करने के लिए करना खुद का ही अपमान है। वर्तमान में हर क्षेत्र में महिलाएं बुलंदी को छू रही हैं तो फिर ऐसे में महिलाएं खुद को कमजोर कैसे बता सकती हैं।� अच्छा हो हक की लड़ाई लड़ें लेकिन अपना अपमान स्वयं न करें।

केस: 1 शनिवार को जच्चा-बच्चा की मौत के मामले में अस्पताल के खिलाफ मनचाही रिपोर्ट न लगाने पर पीड़ितों के परिजनों ने सीएमओ कार्यालय में हंगामा किया। इनके साथ विकास मंच महिला मोर्चा की नेता भी थीं। इन्होंने स्वास्थ्य महकमे के अफसरों व लिपिक का पुतला जलाया था। एसीएमओ डा. राजवीर के साथ मारपीट कर दी। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने डा. राजवीर को चूड़ियां पहनाने की कोशिश भी की थी। 

केस: 2
सोमवार को ब्लाक संसाधन केेंद्र बढ़पुर में प्रशिक्षण ले रहे प्रशिक्षु शिक्षकों ने वित्त एवं लेखाधिकारी कार्यालय पर हंगामा किया। इन्हें 6 माह से मानदेय नहीं मिला है। प्रशिक्षु शिक्षकों ने लेखाधिकारी कार्यालय के सामने धरना दिया। प्रशिक्षु शिक्षिकाओं ने वित्त एवं लेखाधिकारी� गजेंद्र कु मार को चूडिय़ां दिखाईं। इन्होंने हंगामा और नारेबाजी के बीच कहा, मानदेय नहीं दिला सकते तो चूड़ियां पहन लो। तो क्या चूड़ी वाले हाथ कुछ कर नहीं सकते।

चूड़ी, बिंदी, बिछिया देकर अपना अपमान न करें
पंडित आचार्य प्रदीप शुक्ल कहते हैं कि चूड़ी, बिंदी, बिछिया, सिंदूर सौभाग्य के प्रतीक हैं। इनका मतलब कमजोरी नहीं होता है। यह नारी की ताकत हैं। नारी पूज्य है। आंदोलनों में चूड़ी, बिंदी या बिछिया भेंट कर अधिकारियों को कमजोर साबित करने के लिए खुद को असहाय साबित करना है।� इनके भेंट करने से सौभाग्य जाता रहता है। 

आंदोलन का तरीका बदलना होगा। चूड़ी भेंट करना, पूरी नारी शक्ति को कमजोर बताकर उसका अपमान� है। महिलाएं कभी कमजोर नहीं रहीं। अन्याय का मुकाबला जरूरी है , लेकिन सौभाग्य सूचक चिन्ह भेंट करना ठीक नहीं है। - सुलक्षणा सिंह, जिला अध्यक्ष, सपा महिला मोर्चा

हमें हकों की लड़ाई में अपने अपमान से बचने की जरूरत है। चूड़ी भेंट करने का मतलब साफ है कि नारी दूसरे को स्त्री जैसा बन जाने के लिए कहकर खुद को लाचार बता रही है। चूड़ी कमजोरी की नहीं सौभाग्य की निशानी है। हम चूड़ी भेंट कर लड़ाई में खुद ही को कमजोर बताने लगते हैं। यह परंपरा ठीक नहीं है। 
अंजलि यादव, कमांडर, गुलाबी गैंग

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