शिक्षामित्रों के पैरवीकारों ने समायोजन रद्द करवाया हम ये खुलासा करना नहीं चाहते थे लेकिन शिक्षामित्रों के हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के पैरवीकार मसीहा लोग अपनी कोई भी गलती मानने को तैयार नहीं हैं। हम ये पोस्ट उनका दम्भ देखते हुए उनका सच से सामना करवाने के लिए लिख रहे हैं।
आइये इन मसीहाओं के कारनामे पे नज़र डालते हैं :-
आइये इन मसीहाओं के कारनामे पे नज़र डालते हैं :-
शिक्षमित्रों की ओर से दाखिल हलफनामे का बिंदु था:-
Whether the Government Order dated 26 May 1999 can be regarded
as a valid exercise of power under Article 162 of the Constitution, where
the Service Rules of 1981 were silent in regard to the appointment of
untrained teachers;
अर्थात- जहां कि 1981 के सेवा नियम अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध मे खामोश थे। ऐसे में
दिनांक 26 मई 1999 के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 162 की शक्ति का मान्य प्रयोग माना जा सकता है।
✍🏼शिक्षामित्रों के पैरवीकारों की और से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 162 के परन्तुक द्वारा मानी जाए।
आइये पहले अनुच्छेद 162 को समझते हैं।।
🔻सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 162 की व्याख्या करते हुए यह धारित किया है कि अनुच्छेद 162 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल उन स्थानों पर हो सकता है जहां संसद अथवा विधानसभा द्वारा पारित कोई कानून उपलब्ध न हो। जहां कोई कानून उपलब्ध हो वहां उस कानून के विपरीत कोई भी परिपत्र अनुच्छेद 162 के अंतर्गत जारी नहीं किया जा सकता।
✍🏼अब जबकि हम सब जानते हैं कि शिक्षामित्र योजना 1999 में राज्यपाल की अनुच्छेद 309 की शक्तियों का प्रयोग कर लागू की गई तो ये अनुच्छेद 162 के तहत कैसे आ गई।
🔻विरोधियों ने शिक्षामित्रों के हलफनामे की इसी कमी को पकड़ा और उमादेवी केस को सामने ला के रख दिया।
बस इतना करना था कि शिक्षामित्रों का पूरा का पूरा केस धराशायी हो गया।
✍🏼अभी भी बीएड और बीटीसी वाले विरोधी अपनी पोस्ट्स में हमें अनुच्छेद 162 पे उलझाये रहते हैं।
🔻यहाँ हम आप सब साथियों को पुनः आश्वस्त करते हैं कि हमने हाइकोर्ट में हुई अपनी सभी कमियों को चिन्हित कर लिया है और उनका इलाज भी खोज रखा है।
अब हम उन पैरवीकारों की गलतियों को नहीं दोहराने वाले।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार बरेली
केसी सोनकर रायबरेली
ब्रतेंद्र चौहान इटावा
मोहम्मद इरशाद कन्नौज
मोहित त्यागी बिजनौर
रोहित शुक्ला इटावाsponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
Whether the Government Order dated 26 May 1999 can be regarded
as a valid exercise of power under Article 162 of the Constitution, where
the Service Rules of 1981 were silent in regard to the appointment of
untrained teachers;
अर्थात- जहां कि 1981 के सेवा नियम अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध मे खामोश थे। ऐसे में
दिनांक 26 मई 1999 के आदेश को संविधान के अनुच्छेद 162 की शक्ति का मान्य प्रयोग माना जा सकता है।
✍🏼शिक्षामित्रों के पैरवीकारों की और से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 162 के परन्तुक द्वारा मानी जाए।
आइये पहले अनुच्छेद 162 को समझते हैं।।
🔻सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 162 की व्याख्या करते हुए यह धारित किया है कि अनुच्छेद 162 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग केवल उन स्थानों पर हो सकता है जहां संसद अथवा विधानसभा द्वारा पारित कोई कानून उपलब्ध न हो। जहां कोई कानून उपलब्ध हो वहां उस कानून के विपरीत कोई भी परिपत्र अनुच्छेद 162 के अंतर्गत जारी नहीं किया जा सकता।
✍🏼अब जबकि हम सब जानते हैं कि शिक्षामित्र योजना 1999 में राज्यपाल की अनुच्छेद 309 की शक्तियों का प्रयोग कर लागू की गई तो ये अनुच्छेद 162 के तहत कैसे आ गई।
🔻विरोधियों ने शिक्षामित्रों के हलफनामे की इसी कमी को पकड़ा और उमादेवी केस को सामने ला के रख दिया।
बस इतना करना था कि शिक्षामित्रों का पूरा का पूरा केस धराशायी हो गया।
✍🏼अभी भी बीएड और बीटीसी वाले विरोधी अपनी पोस्ट्स में हमें अनुच्छेद 162 पे उलझाये रहते हैं।
🔻यहाँ हम आप सब साथियों को पुनः आश्वस्त करते हैं कि हमने हाइकोर्ट में हुई अपनी सभी कमियों को चिन्हित कर लिया है और उनका इलाज भी खोज रखा है।
अब हम उन पैरवीकारों की गलतियों को नहीं दोहराने वाले।
★आजीविका और मान सम्मान से कोई समझौता नहीं।।
©रबी बहार बरेली
केसी सोनकर रायबरेली
ब्रतेंद्र चौहान इटावा
मोहम्मद इरशाद कन्नौज
मोहित त्यागी बिजनौर
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