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72825 भर्ती : सुप्रीम कोर्ट से 18 अक्टूबर को आये फैसले ने एनसीटीई की रीति नीति पर खड़े कर दिए सवाल

ये फैसला यूपी के 72825 भर्ती पर वज्रपात की तरह है। इस फैसले में एनसीटीई नोटिफिकेशन के पैरा 9बी की व्याख्या करते हुए एकेडेमिक भर्ती को प्राथमिकता दी गई है।

18 अक्टूबर को आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एनसीटीई की रीति नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
एनसीटीई की गाइडलाइन के मुताबिक टेट में न्यूनतम 60 फीसदी अंक प्राप्त करने वाला ही शिक्षक भर्ती के योग्य माना गया है।
लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार ने आरटेट में आरक्षित वर्ग को न्यूनतम उत्तीर्णांक में 5 से 20 प्रतिशत की छूट दी। इस पर कुछ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट की पहले एकलपीठ, फिर खंडपीठ ने इसे गलत माना। हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार की 5 से 20 प्रतिशत अंकों की छूट देना गलत है। आरटेट में 60 प्रतिशत अंक ही जरूरी हैं। इस पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की।
अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा- छूट देना सही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार ने अपनी नोटिफिकेशन व सर्कुलर के अनुसार आरटेट में आरक्षित वर्ग को रिजर्वेशन दिया था और सरकार को अपनी नीतियों के तहत रिजर्वेशन देने का अधिकार था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता इरशाद अहमद ने दलील दी कि राज्य सरकार ने नियमानुसार ही आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को रिजर्वेशन दिया है और इसमें कोई असंवैधानिक कार्य नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस दलील को सही मानते हुए हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती 2012 में सरकार ने 40 हजार को नियुक्ति दी थी। इसमें से 27 हजार चयनित शिक्षकों के 60 प्रतिशत से अधिक अंक थे और 13 हजार के 60 प्रतिशत से कम। सुप्रीम कोर्ट में मामला होने के कारण इन 13 हजार शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक रही थी। इनको राहत मिल गई। अब सभी 40 हजार शिक्षकों का स्थायीकरण भी हो सकेगा।
*सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण*
ये फैसला एनसीटीई के 11 फरवरी 2011 और 29 जुलाई 2011 के नोटिफिकेशन के बीच हुई भर्ती का नतीजा है। दरअसल एनसीटीई ने 11 फरवरी की गाइड लाइन में रिजर्वेशन में कोई सीमा निर्धारित नहीं की थी लेकिन 29 जुलाई को संशोधन कर के 5% की सीमा तै कर दी। जबकि राज्य सरकार ने 23 मार्च 2011 को छूट का आदेश जारी कर दिया।
*ज़ाहिर है नया संशोधन जारी होने से पहले राज्य के आदेश ने एनसीटीई के संशोधन को ख़ारिज माना गया। और राज्य की नीति को एनसीटीई गाइड लाइन पर वरीयता देते हुए कोर्ट ने राज्य के पक्ष में फैसला दिया।*
*टेट मेरिट भर्ती को अकादमिक से मर्ज करने की नोबत आने पर बीएड बेरोज़गारों का क्या हाल होगा, देखने योग्य होगा। साथ ही याची लाभ पाने वाले एडहॉक को मौलिक नियुक्ति न देने का फैसला राज्य पहले ही ले चुका है।* ऐसे में, बस इतना ही कहा जा सकता है:-
इब्तिदाये इश्क़ है रोता है क्या।।
आगे आगे देखिये होता है क्या।।
मिशन सुप्रीम कोर्ट।
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