शिक्षा समग्र परिवर्तन का उपक्रम ही नहीं उपकरण भी है। विकास की प्रक्रिया विकसित शिक्षा पद्धति की अनुपस्थिति में शिथिलता से जकड़ जाती है। हालांकि सिर्फ शिक्षा की महत्ता को जान लेने से ही न तो शिक्षा अपने लक्ष्य पूर्ण कर पाती है और न प्रगति की राह सुगम हो पाती है।
किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था तभी सफल होती है जब बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास को लक्ष्य बनाती है, लेकिन भारत में ‘बोर्ड परीक्षा के परिणाम’ ही एकमात्र लक्ष्य बनकर रह गए हैं। चरित्र निर्माण के बिना शिक्षा अधूरी ही रह जाती है। ‘क्या पढ़ाया जाए और कैसे पढ़ाया जाए’ को भी सुधारों का अनिवार्य अंग बनाना पड़ेगा। इस समय उत्तर प्रदेश सरकार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की खंडपीठ द्वारा 12 सितंबर, 2002 को दिए गए उस निर्णय का अध्ययन करना सर्वथा उचित होगा जिसमें सामाजिक सद्भाव और पंथिक भाईचारे को बढ़ाने के लिए किए गए शैक्षिक परिवर्तनों को सराहा गया था। इनमें कहा गया था कि बच्चे सभी धर्मो के मूल तत्व और अवधारणाएं जानें, समानताओं को समङों और जहां-जहां अंतर है उनका आदर करना सीखें। स्कूल कोई कर्मकांड नहीं पढ़ाएंगें। वे भाईचारे और पंथिक सद्भाव की वह नींव रखेंगे जो सेक्युलर शब्द को व्यवहार में सही अर्थ देगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि सब धर्मो की मूल अवधारणाओं की जानकारी हर बच्चे को देने संबंधी संस्तुति ‘सेक्युलरिज्म’ के खिलाफ नहीं है। यह तो पंथनिरपेक्षता को सही आधार प्रदान करेगी। इसी निर्णय में उसने संस्कृत को भारतीय संस्कृति को समझाने के वाहक के रूप में विशिष्ट स्थान देने की बात भी कही थी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में कर्मठ, अध्ययनशील, और ईमानदार अध्यापकों, अधिकारियों और विद्वानों की कमी नहीं है, लेकिन योगी सरकार को उनका मनोबल बढ़ाना होगा। उनसे प्रत्येक स्तर सहयोग पर लेना होगा।
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किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था तभी सफल होती है जब बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास को लक्ष्य बनाती है, लेकिन भारत में ‘बोर्ड परीक्षा के परिणाम’ ही एकमात्र लक्ष्य बनकर रह गए हैं। चरित्र निर्माण के बिना शिक्षा अधूरी ही रह जाती है। ‘क्या पढ़ाया जाए और कैसे पढ़ाया जाए’ को भी सुधारों का अनिवार्य अंग बनाना पड़ेगा। इस समय उत्तर प्रदेश सरकार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की खंडपीठ द्वारा 12 सितंबर, 2002 को दिए गए उस निर्णय का अध्ययन करना सर्वथा उचित होगा जिसमें सामाजिक सद्भाव और पंथिक भाईचारे को बढ़ाने के लिए किए गए शैक्षिक परिवर्तनों को सराहा गया था। इनमें कहा गया था कि बच्चे सभी धर्मो के मूल तत्व और अवधारणाएं जानें, समानताओं को समङों और जहां-जहां अंतर है उनका आदर करना सीखें। स्कूल कोई कर्मकांड नहीं पढ़ाएंगें। वे भाईचारे और पंथिक सद्भाव की वह नींव रखेंगे जो सेक्युलर शब्द को व्यवहार में सही अर्थ देगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि सब धर्मो की मूल अवधारणाओं की जानकारी हर बच्चे को देने संबंधी संस्तुति ‘सेक्युलरिज्म’ के खिलाफ नहीं है। यह तो पंथनिरपेक्षता को सही आधार प्रदान करेगी। इसी निर्णय में उसने संस्कृत को भारतीय संस्कृति को समझाने के वाहक के रूप में विशिष्ट स्थान देने की बात भी कही थी। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में कर्मठ, अध्ययनशील, और ईमानदार अध्यापकों, अधिकारियों और विद्वानों की कमी नहीं है, लेकिन योगी सरकार को उनका मनोबल बढ़ाना होगा। उनसे प्रत्येक स्तर सहयोग पर लेना होगा।
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