प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद उप्र लोक सेवा आयोग को छोड़कर लगभग सभी आयोगों और चयन बोर्ड का पुनर्गठन जरूर हुआ लेकिन, उनके दामन पर लगे दाग और गहराते गए।
नलकूप चालक परीक्षा का पेपर आउट होने और हाल ही में 68500 सहायक शिक्षकों की भर्ती में हुई गड़बड़ियों ने यह साफ कर दिया है कि चेहरे बदलने के बावजूद परीक्षा संस्थाएं अपने पुराने सिस्टम पर ही काम कर रही हैं। सरकार की अपेक्षा थी कि सभी आयोग बड़ी संख्या में नियुक्तियां कर सरकार का चेहरा निखारेंगे लेकिन, कोई भी इस कसौटी पर खरा न उतर सका।1समूह ग की भर्तियों को लेकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से बहुत अधिक उम्मीदें थीं क्योंकि वहां बड़ी संख्या में रिक्तियां लंबित थीं। आयोग ने सधी चाल से इसकी शुरुआत भी की लेकिन नलकूप चालकों की परीक्षा में नकल माफिया ने सेंध लगा ही दी। इसी तरह उप्र लोक सेवा आयोग की और से आयोजित एलटी ग्रेड परीक्षा और पुलिस भर्ती बोर्ड की परीक्षाओं पर भी नकल माफिया की नजरें रहीं। इन सारी परीक्षाओं से कई लाख अभ्यर्थियों की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। यही हाल उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का भी है। सपा सरकार ने इनमें नियमों के विपरीत नियुक्तियां की थीं लेकिन, भाजपा ने पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति की। लेकिन माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों और महाविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती तेजी न पकड़ सकी। अभी हाल ही में जब मुख्यमंत्री ने रिक्तियों का हाल जानने के लिए बैठक बुलाई तो इन आयोगों के पास आगे का स्पष्ट रोड मैप तक न था। भर्तियों से जुड़े रहे एक अधिकारी बताते हैं कि सबसे अधिक जरूरी था कि आयोगों का अंदरूनी सिस्टम ठीक किया जाता, लेकिन इसकी अनदेखी कर दी गई। गड़बड़ियां बनी रहने की एक बड़ी वजह यह भी है। 68500 परिषदीय शिक्षकों की नियुक्ति भाजपा सरकार की सबसे बड़ी नियुक्ति के रूप में देखी जा रही थी लेकिन इसने न सिर्फ सर्वाधिक निराश किया बल्कि युवाओं में अविश्वास का वातावरण पैदा कर दिया है। आश्चर्य की बात यह है कि इस भर्ती की वजह से एक ऐसी संस्था दागदार हो गई है, जिस पर सवाल नहीं उठते थे। परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय टीईटी समेत कई परीक्षाएं कराता है और बड़ी संख्या में आवेदक शामिल होते हैं लेकिन परिषदीय शिक्षकों की भर्ती ने उसकी साख को भी बट्टा लगा दिया है।