टूटते सपनों से मनोरोगी बन रहे प्रतियोगी : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

टूटते सपनों से मनोरोगी बन रहे प्रतियोगी
इलाहाबाद बड़ा अफसर बनने का सपना था। घर-बार छोड़कर इलाहाबाद चले आए। बीए, एम के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए। कई प्रतियोगी परीक्षाएं पास कीं, तो हौसला बढ़ गया। कामयाबी करीब आती, इससे पहले ही इंतजार इतना लंबा हो गया कि उदासी और तनाव ने मन में घर कर लिया।
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अवसाद की चपेट में आकर पहले अस्पताल और फिर काउंसलिंग के लिए मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों की शरण में। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के बीच टूट रहे सपनों की शृंखला लंबी है। दरअसल ओपीडी में पहुंचने वाले दस फीसदी मरीज प्रतियोगी ही हैं। सफलता न मिलने से वे तनाव, अवसाद, अनिंद्रा की चपेट में हैं। विशेषज्ञों की भाषा में कहें तो उनका मेजाबोलिज्म सिस्टम खराब हो गया है।
मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के अध्यक्ष प्रो.वीके सिंह कहते हैं लंबे समय तक पढ़ाई-लिखाई के बावजूद सफलता न मिलने से प्रतियोगियों में उलझन, बेचैनी, तनाव, अवसाद जैसी परेशानियां घर करने लगी हैं। रिपोर्ट बताती है कि ऐसे अवसाद वाले प्रतियोगी छात्र हाई रिस्क ग्रुप की श्रेणी में पहुंच गए हैं। ओपीडी में आने वालों से इतर भी बहुत से प्रतियोगी छात्रों को उपचार की जरूरत है, लेकिन वे आते ही नहीं। मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अभिनव टंडन कहते हैं, क्लीनिक पर रोजाना आठ से दस छात्र ऐसे आते हैं, जो असफलता की वजह से मानसिक रोग की चपेट में आ चुके हैं।
अवसाद की वजहें
•परिवार से दूरी, आर्थिक समस्या, खान-पान की समस्या, लगातार पढ़ाई, सफलता का दबाव, परिवार की आकांक्षाएं, समय पर शादी न होना
उपजी समस्याएं
•तनाव, उलझन, अवसाद, अनिंद्रा, पढ़ने में अरुचि, एकाग्रता में कमी, यादाश्त में कमी
बचाव के उपाय
•लगातार तैयारी करें, समय पर नींद लेना, नियमित खानपान, कई गोल लेकर चलें, दिनचर्या नियमित रखें, योजना के मुताबिक अध्ययन करें, पॉजीटिव हॉबी रखना, सामाजिक कार्यों में रुचि लेना
परीक्षाओं ने दिया झटका
•चयन न होने से प्रतियोगियों में पनपी हताशा, निराशा
•अवसाद में ले रहे मनोवैज्ञानिकों की मदद
•ओपीडी में पहुंचने वाले दस फीसदी मरीज प्रतियोगी छात्र
कर्मचारी चयन आयोग, लोक सेवा आयोग, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड सहित भर्ती बोर्डों की कार्यप्रणालियों से प्रतियोगी छात्रों में हताशा पनपी है। जब प्रतियोगी छात्रों का सपना टूटेगा तो उनमें तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं घर करेंगी। उसमाज और सरकार की जिम्मेदारी है कि उनके लिए कुछ ऐसा इंतजाम करें जिससे वे ऐसी स्थितियों से उबर सकें। कई बार हताशा की वजह से आत्महत्या की नौबत भी आती है।
प्रो.दीपा पुनेठा,
अध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय


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