उत्तर प्रदेश में कोर्ट-कचहरी में उलझी शिक्षामित्रों की
नियुक्ति में केंद्र से राहत मिलने की संभावना है। राष्ट्रीय अध्यापक
शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट किया है कि 2010
से पहले नियुक्त हुए शिक्षक और शिक्षामित्रों को सेवारत शिक्षक की श्रेणी
में रखा गया है।
इसलिए उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता नहीं है। एनसीटीई के नियमों के तहत ऐसे शिक्षकों को पांच साल के भीतर पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने राज्य में 1.72 लाख
शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक पद पर नियुक्त करने की प्रक्रिया रद्द करने
के आदेश दिए थे। उसमें कई बातों को आधार बनाया गया था और यह भी कहा था कि
बिना टीईटी उत्तीर्ण किए उम्मीदवार को शिक्षक नियुक्त नहीं किया जा सकता।
टीईटी के मुद्दे पर केंद्र अपने रुख पर कायम है और इस मामले में आगे
सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करेगा।
एनसीटीई के अध्यक्ष प्रोफेसर संतोष पांडा ने ‘हिन्दुस्तान’ को
बताया कि परिषद का रुख शिक्षामित्रों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण है और इसके
नियम भी स्पष्ट हैं। परिषद ने 2010 में जारी अपने नियमों में शिक्षामित्रों
को सेवारत शिक्षक माना है और उन्हें प्रशिक्षण देने को कहा है। राज्य
सरकार ने इन नियमों की व्याख्या कैसे की है, कोर्ट में इस पर काफी कुछ
निर्भर होता है। परिषद हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन कर रही है। यह मामला जब
भी सुप्रीम कोर्ट में आएगा, परिषद अपना उक्त पक्ष वहां रखेगी।बता दें कि
2010 में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने से पूर्व शिक्षामित्रों के
अलावा भी कई लाख अप्रशिक्षित शिक्षक थे जो स्थाई हो चुके थे। उनके लिए भी
प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया था। वे एनसीटीई द्वारा स्वीकृत दूरशिक्षा
कार्यक्रम के जरिये यह प्रशिक्षण पूरा कर रहे हैं। कई राज्यों ने शिक्षकों
के लिए न्यूनतम अर्हता वाले प्रावधानों को लागू करने के लिए एनसीटीई से
अतिरिक्त छूट हासिल कर रखी है। केंद्र को यह छूट देने का अधिकार है।
मामला जब सुप्रीम कोर्ट में आएगा तो एनसीटीई अपना रुख उसके सामने रखेगी। हमने अपने नियमों में कहा है कि 2010 से पहले नियुक्त शिक्षामित्रों को सेवारत माना जाएगा तथा उन्हें टीईटी पास करने की आवश्यकता नहीं है। टीईटी उस अवधि के बाद नियुक्त होने वाले नए शिक्षकों के लिए ही अनिवार्य है। -प्रोफेसर संतोष पांडा अध्यक्ष एनसीटीई
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