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नोटबंदी का असर अभिभावकों पर, सता रही फीस की ¨चता

चन्दौसी। नोटबंदी का असर अभिभावकों पर भी पड़ रहा है। स्कूलों ने पांच सौ व एक हजार के नोट लेने बंद कर दिए हैं, जिसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है।
समय निकलने के बाद भी बच्चों की फीस जमा नहीं हो पा रही है। कुछ स्कूल देर से फीस जमा होने पर पैनल्टी लेते हैं। ऐसी स्थिति में अभिभावकों को पैनल्टी देनी होगी। अभिभावकों को बच्चों की फीस की ¨चता सता रही है।
पांच सौ व एक हजार की नोटबंदी के बाद प्रत्येक वर्ग के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं, चाहे वह मजदूर हों या सरकारी कर्मचारी, किसान या उद्योगपति, सभी को बैंकों की लाइनों में लगना पड़ रहा है। हालांकि कुछ जगह जैसे पेट्रोलपंप, रोडवेज बस, सरकारी चिकित्सा, रेलवे, स्कूलों आदि में पांच सौ का नोट लेने की छूट दी गई है, लेकिन ज्यादातर स्कूल ये नोट ले ही नहीं रहे हैं, जिसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है। घर में खर्चे के लिए फुटकर रुपये नहीं है। ऐसी स्थिति में फीस के लिए फुटकर रुपये लाना काफी मुश्किल है। रुपये फुटकर कराने के लिए लोगों को बैंक में दो लाइनों में लगना पड़ रहा है। अभिभावक पहले तो पांच सौ व एक हजार का नोट अपने खातों में जमा करते हैं और बाद में रुपये निकालने वाली लाइन में लगकर बैंक से फुटकर रुपये निकाल रहे हैं।
मैं बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक हूं। मेरा बच्चा नर्सरी में है। नोटबंदी के कारण उसकी नवंबर माह की फीस जमा नहीं हो पाई है। बैंक में काफी लंबी लाइन लगी रहती है। स्कूल व बैंक के समय भी एक ही है, जिसकी वजह से बैंक जाना नहीं हो रहा है। पिछले चार दिन से प्रथमा बैंक ने तो रुपये ही नहीं दिए हैं। परिवार में एक शादी भी है। रुपये को लेकर काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
सचिन कुमार, शिक्षक, विष्णु बिहार कालोनी।
मैं यूनानी दवा का मेडिकल स्टोर चलाता हूं। स्कूल में प्रत्येक माह की बीस तारीख को फीस जमा करनी होती है, लेकिन इस माह फुटकर रुपये की तंगी के कारण समय से फ स जमा नहीं कर सका हूं। स्कूल वाले पांच सौ व एक हजार का नोट नहीं ले रहे हैं। बैंक में लाइन में खड़े होने का समय नहीं है। करूं तो क्या करूं। रोजाना स्कूल के चक्कर लगा रहा हूं लेकिन फीस जमा नहीं हो पा रही है। किसी से रुपये उधार लेकर ही फीस जमा करनी पड़ेगी।
सदाकत हुसैन, अल्लीपुर बुज र्ग।
स्कूल वाले पांच सौ का पुराना नोट नहीं ले रहे हैं, जिसकी वजह से बैंक के रोजाना चक्कर काटने पड़ रहे हैं। स्कूल वालों को पांच सौ व एक हजार के नोट लेने चाहिए, जिससे अभिभावकों को कुछ राहत मिल सके। काफी कोशिशों के बाद फुटकर रुपये का इंतजाम करके बच्चे की फीस जमा की है।
अर्पित, आवास विकास कालोनी।
मैं बदायूं जिले के आसफपुर ब्लाक में नियुक्त हूं। मेरे दो बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। नोटबंदी के कारण फुटकर रुपये नहीं हैं। बैंकों की लाइन में लगने के लिए अवकाश लेना पड़ेगा। बैंक में रोजाना समय से पहले ही कैश खत्म हो जाता है। यह भी जरूरी नहीं है कि लाइन में लगने के बाद भी बैंक से रुपये मिलेंगे या नहीं। इस बार फीस को देर हो गई है। अब या तो बैंक की लंबी लाइन में लगना पड़ेगा या फिर किसी से रुपये उधार ल कर फीस जमा करनी पड़ेगी।
सुमित कुमार ¨सह, विष्णु बिहार।
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24 नवंबर के बाद पांच सौ व एक हजार के नोट लेने बंद कर दिए हैं। हमें जानकारी है कि इस समय लोग परेशानी से जूझ रहे हैं, इसलिए फीस का ज्यादा दबाव भी नहीं बनाया जा रहा है। जैसे-जैसे फुटकर रुपये का इंतजाम हो रहा है, वैसे-वैसे अभिभावक फीस जमा कर रहे हैं।
विक्रम ¨सह, सचिव, प्रबंध समिति, चन्दौसी पब्लिक स्कूल
हमारे स्कूल में बैंक तथा कैश दोनों तरीकों से फीस जमा करने की सुविधा है। बैंक खाते में जो फीस जमा हो रही है, उसमें तो अभिभावक पांच सौ का नोट जमा कर रहे हैं। स्कूल में कैश होने वाली फीस में पांच सौ का नोट नहीं लिया जा रहा है।

कैप्टन मदनलाल यादव, प्रधानाचार्य, सिल्वर स्टोन पब्लिक स्कूल।
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