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कल हुई जूनियर भर्ती और अकेडमिक भर्ती केस में एसके पाठक केस की सुनवाई के निहितार्थ, कोर्ट ने अगली डेट दी 20 मार्च

कल हुई एसके पाठक केस की  सुनवाई के निहितार्थ : शिवकुमार पाठक और शिवकुमार शर्मा का पैरा 88 पर एक नजर : उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित भर्ती 72825 पिछले कई वर्षों से चर्चा का विषय है, कल २७ फरवरी को शिवकुमार पाठक की याचिका २४१७/२०१७ की सुनवाई थी जिसे लेकर लगभग सभी लोग उपापोह की स्थिति में है, जैसे कि यह याचिका क्यूं फाइल हुई, इसकी डेट २० मार्च क्यूं तय हुई ???
ऐसे कई सवाल लोगो के जेहन में चल रहे है *सबसे बड़ा सवाल कि शिक्षामित्रों का इससे क्या लेना देना है* ????
प्रदेश सरकार का विज्ञापन दिनाँक ३० नवम्बर २०११ जो कि प्रदेश में ७२८२५ प्रशिक्षु शिक्षको को लेकर था तत्कालीन बसपा सरकार ने मौलिक नियुक्ति टेट मेरिट पर करने का आधार इस विज्ञापन में रखा, पिछले विधानसभा चुनावों के चलते भर्ती समय पर पूरी नही हो पाई साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा दी गई तय समयसीमा भी समाप्त हो गई! चुनाव में विजेता हुई सपा और पूर्ण बहुमत की सरकार आ गई इन्होने सबसे पहले केन्द्रीय सरकार से समयसीमा बढ़ाने की अनुमति प्राप्त की और पुराने विज्ञापन को रद्द करते हुये नया विज्ञापन जारी कर दिया एकेडमिक बेस पर.... यही से विवाद शुरू हुआ कि बेस ऑफ सिलेक्शन क्या होना चाहिये..हाईकोर्ट की डबल बेंच ने दिनाँक २० नवम्बर २०१३ को *शिवकुमार पाठक बनाम राज्य सरकार* में फैसला देते हुये पुराना विज्ञापन बहाल कर दिया, विज्ञापन बहाल करने का आधार बनाया फुल बेंच के निर्णय *शिवकुमार शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सरकार* जो कि दिनाँक ३१ मई २०१३ का आर्डर था जिसमें फुल बेंच ने टेट गाइडलाइन के पैरा 9B को विवादित रूप से अनिवार्य मानते हुये टेट वेटेज को बाध्यकारी कर दिया!!
बीच में रामप्रकाश शर्मा ने फुल बेंच के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया मामला डेढ़ साल चला अचानक ३ फरवरी २०१५ को रामप्रकाश शर्मा ने याचिका कतिपय कारण बताते हुये वापस ले ली! जिससे टेट मेरिट प्रंशसक बड़े खुश हुये! इसी बीच जूनियर भर्ती भी शुरू हुई जिसमें शिवकुमार पाठक और उसके सहयोगियों ने टांग लगाते हुये टेट मेरिट की मांग जूनियर भर्ती में करनी शुरू कर दी, मामले चलते रहे और जूनियर भर्ती में नियुक्ति मिल गई, लेकिन यह विद्वान लोग हाथ मलते रह गये हाईकोर्ट में सीजे साहब ने सभी पेंडिग केसो को सुनने का मन बनाया ही था कि इधर सुप्रीम कोर्ट में दीपक शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार १८३९३/२०१६ याचिका ने तथा कथित पैरा 88 फिर से चैलेंज कर दिया जिसकी दो सुनवाई अक्तूबर २०१६ में हुई जिसमें सलमान खुर्शीद जी अपीयर हुये और १११० दिनों के लेट लतीफी के बाद भी याचिका स्वीकार की गई, जिसकी सुनवाई ६ फरवरी सुनिश्चित थी! यग देखकर की विरोधी ने मेरी नब्ज फिर पकड़ ली है टेटमेरिट के दिग्गज नेता न आनन फानन में २४१७/२०१७ याचिका फाइल कर दी जिसकी भी डेट ६ फरवरी मुकर्रर हुई, लेकिन नकल माफियाओं ने रजिस्ट्री में खेल करते हुये १८३८३ को ६ फरवरी से २७ फरवरी पहुचवा दिया था, ६ फरवरी को २४१७/२०१७ को सुनकर इसे भी २७ जुलाई में लिस्ट किया कोर्ट ने, मगर फिर हरकत शुरू हुई उक्त याचिका को ६ मार्च और अब २० मार्च तक के लिये टाल दिया गया लगातार ४ बार इलीमीनेट करते हुये! अब जब कल फिर महोदय उपस्थित हुये तो कोर्ट ने इन्हे फिर २० मार्च पहुंचा दिया है!!!

अब चूंकि १११० के बाद भी कोर्ट ने जब याचिका स्वीकार कर ली है और हाईकोर्ट ने १,दिसम्बर २०१६ को उसी फुल बेंच के आर्डर से किनारा काटते हुये २ नवम्बक २०१५ के आर्डर के ४ प्रश्नों का बहाना बनाते हुये मामले को सुप्रीम कोर्ट रिफर किया है, तो कोर्ट में ४ सवालो कें साथ उन ३ सवालों को जरूक देखना चाहिये जो शिवकुमार शर्मा की याचिका के थे!!!!
हाँलाकि इससे शिक्षामित्र का सीधे तौर पर कुछ लेना देना नही है लेकिन अब जबकि प्रदेश के सभी संशोधन और टेटमेरिट आमने सामने आ चुके है जिसपर हुये निर्णय लगभग सभी भर्तियों को डिस्टर्ब करेंगे हमें नही लगता शिक्षामित्र इससे अछूते रह जाये.... इसलिये समय पर सतर्कता जरूरी है!
अन्त में मै अपने विज्ञ साथियों से खेद प्रकट करता हूँ कि कि मैने भी कल की पोस्ट में जानते हुये सिविल अपील में टैग बता दिया था।
©केसी सोनकर@मिशन सुप्रीम कोर्ट ग्रुप।।
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