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शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण के विरुद्ध पड़ी याचिका में हमारे अधिवक्ता द्वारा दाख़िल किए गए लिखित अभिलेख: हिमांशु राणा

नमस्कार मित्रों, आपके समक्ष उन लिखित अभिलेखों को रख रहा हूँ जो कि शिक्षा मित्रों के प्रशिक्षण पर पड़ी याचिका में हमारे अधिवक्ता द्वारा दाख़िल किए गए हैं :-
ट्रेनिंग को लेकर समस्त साथियों/आलोचकों के विभिन्न मत हो सकते हैं और कहीं न कहीं मा० न्यायालय भी उस पर विभिन्न स्टैंड रख सकता है लेकिन अपने बीएड/टेट उत्तीर्ण साथियों के लिए वर्ष 2011 से ही सरकार की कूनीति को दर्शाया है, लिखित अभिलेख का हिंदी अनुवाद करके उसमें बिंदुवार आपको बताना चाहता हूँ कि हमने क्या स्टैंड लिया है शिक्षा मित्रों के प्रशिक्षण पर -----
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विशेष अनुज्ञा याचिका 1621-22/2016 के लिखित अभिलेख

1) उपरोक्त उल्लेखित विशेष अनुज्ञा याचिका के अनुसार मा० उच्च न्यायालय के 12/09/2015 के पूर्ण पीठ के निर्णय के उस हिस्से को चैलेंज किया जा रहा है जिसमें शिक्षा मित्रों के समायोजन को तो निरस्त माना है लेकिन इनके प्रशिक्षण के विषय में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है , याची मा० उच्च न्यायालय में भी वादी था और पूर्ण पीठ के आदेश के हिस्से C4 को चैलेंज कर रहा है |

2) उल्लेखित तथ्य ये है कि राज्य सरकार ने दिनांक 03.01.2011 को एनसीटीई को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें ये दर्शाया था कि शिक्षमित्र जो हैं कार्यरत अध्यापक हैं और इनकी नियुक्ति नियमित तौर पर हुई थी | जिसके मद्देनज़र एनसीटीई ने राज्य सरकार को डी०एल०एड० प्रशिक्षण देने की अनुमति प्रदान कर दी थी जिसके पश्चात इनको प्रशिक्षण एस०सी०ई०आर०टी० ने कराया |

3) उक्त प्रशिक्षण के साथ-साथ एनसीटीई के निर्णय जिसमें राज्य सरकार को प्रशिक्षण देने की अनुमति प्रदान की थी, मा० उच्च न्यायालय में दोनो को चुनौती दी गयी थी जिसमें ये विवाद थे :-
i) एनसीटीई रेग्युलेशन 2009 जो कि इस क्षेत्र की देख-रेख करती है और अपेंडिक्स - 9 के अंतर्गत ही डी०एल०एड० कोर्स को दूरस्थ विधि से कराने की आवश्यकता उल्लेखित है जो कि उपरोक्त याचिका में 3 न० पर अनुबंध है | ये विनियमन साफ़ क्या कहता है, प्रस्तावना के अंतर्गत धारा 5(2) के अनुसार ये कोर्स केवल कार्यरत शिक्षकों के लिए ही है | जबकि शिक्षा मित्र कार्यरत अध्यापक नहीं थे और कम से कम वर्ष 2011 में तो थे नहीं तो इनके लिए ये प्रशिक्षण नहीं था |
ii) एनसीटीई उक्त  की अपेंडिक्स - 9 की धारा 2 के अनुसार ये साफ़ है कि दूरस्थ विधि से प्रशिक्षण के लिए ऐसे संस्थान होने चाहिए जो कि केंद्र सरकार (यूजीसी) के अनुसार स्थापित हो | जबकि शिक्षामित्रों के संदर्भ में प्रशिक्षण
एस०सी०ई०आर०टी से कराया गया था | जबकि यहाँ कोई विवाद ही नहीं है कि एस०सी०ई०आर०टी० कोई ऐसा संस्थान नहीं है बल्कि एस०सी०ई०आर०टी० विशेष रूप से बनायी गयी संस्था है जहाँ से प्रशिक्षण कराया गया है इसलिए प्रशिक्षण का कोई अर्थ नहीं है |
वादी को यूजीसी से सूचना प्राप्त हुई है जिसमें साफ़-तौर पर कहा गया है कि एस०सी०ई०आर०टी० कोई ऐसा संस्थान नहीं है जो कि उक्त प्रशिक्षण को कराने के लिए मान्य है |
iii) सर्वविदित है कि शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थान जहाँ बीटीसी/डी०एल०एड० कोर्स कराया जाते हैं की संख्या बहुत ही कम है, और उस पर शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण प्रदान कराना निहायत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का उल्लंघन है |जबकि उक्त प्रशिक्षण के लिए अगर अर्ह अभ्यर्थियों का चयन हुआ होता तो आज वे रोज़गार पर होते लेकिन बिना किसी विधि-सम्मत विधि के केवल शिक्षामित्रों को इसके लिए चुना गया |

4) इन तमाम पहलुओं को मा० उच्च न्यायालय के समक्ष उठाया गया था और एनसीटीई ने भी अपने हलफ़नामे में स्वीकारा है कि राज्य सरकार ने भी प्रशिक्षण की अनुमति माँगते समय सही तथ्य हमारे सामने चित्रित नहीं किए थे |

5) पूर्ण पीठ मा० उच्च न्यायालय ने केवल ये कहकर प्रशिक्षण के मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया था कि हालाँकि एनसीटीई ने अपने हलफ़नामे में उल्लेख कर दिया है लेकिन प्रशिक्षण की अनुमति वापस नहीं ली जा सकती है क्यूँकि प्रशिक्षण करने वालों की संख्या अधिक है |

 6) यहाँ उल्लेखित करना आवश्यक है चूँकि एनसीटीई ने अनुमति वापस नहीं ली तो क्या दिया गया प्रशिक्षण वैध माना जा सकता है | जबकि प्रशिक्षण रेग्युलेशन 2009 के विरुद्ध है | केवल इस आधार पर कि शिक्षामित्रों की संख्या अधिक है से प्रशिक्षण के लिए दी गई अनुमति को वैध ठहराना विधि-समत्त नहीं है जबकि ये रेग्युलेशन 2009 में भी स्थापित नहीं है |

7) इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण पहलू जो कि मा० उच्च न्यायालय ने संज्ञान में नहीं लिया था - उक्त प्रशिक्षण की अनुमति से बीएड/टेट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के साथ हुआ पक्षपात | अगर उक्त प्रशिक्षण शिक्षामित्रों को नहीं दिया गया होता तो राज्य सरकार इन्हे शिक्षक के रूप में समायोजित नहीं कर पाती तो उस स्थिति में बीएड/टेट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को ही रिक्त पदों पर दावेदारी का मौक़ा मिलता जो कि तत्कालीन स्थिति में उपलब्ध थे | अन्यथा यहाँ तक कि अगर ये न्यायालय पूर्ण पीठ के आदेश पर मुहर भी लगा देता है तो केवल शिक्षामित्रों का समायोजन ही जाएगा जबकि उक्त प्रशिक्षण की मदद से ये अगर टेट उत्तीर्ण कर लिए तो फिर नियुक्त हो जाएँगे |

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चयनित कभी कोशिश नहीं किए शायद उनकी ख़ुद की नौकरी की मजबूरी थी या बहुतों की पत्नियाँ भी कार्यरत थी,
अचयनितों में इस मुद्दे को उठाने का विधिक-ज्ञान तक नहीं था हाँ बीटीसी के कुछ थे लेकिन वे हाई-कोर्ट में धूल फाँकते रहे और अगर छह जुलाई को स्टे नहीं लिया हुआ होता तो ये मुद्दा हाई-कोर्ट से कभी नहीं सुलझता लेकिन आज द्वेष के कारण कोई बोल नहीं पाता है |

बहरहाल बीएड/टेट उत्तीर्ण के लिए याचिका 167/2015 पर क्या-क्या अभिलेख प्रस्तुत किए हैं की व्याख्या भी जल्द करूँगा लेकिन आज मैं मानसिक तौर पर हर प्रकार के निर्णय के लिए तैयार हूँ और उसी में लगा भी हुआ हूँ तो आप सभी से आग्रह है कि अपने आप को तैयार रखिए क्यूँकि जो बीएड/टेट अभ्यर्थी बहुत पहले ख़त्म हो चुका था आज चित्र में है तो इसी याचिका की वजह से वरना आपके रहनूमा चयनित और कुछ बेवक़ूफ़ अचयनित जो शिक्षामित्रों के बिना आपको अंदर लाने के लिए नेताओं के चक्कर काट रहे थे और पैसों के बल पर शासनादेश निकलवा रहे थे आपको डूबा दिए थे कभी का, ख़ैर अंत भला तो सब भला ये ही कहूँगा |

इसके अलावा जानता हूँ मूर्खों का झुंड आकार मेरी पोस्ट पर ऊल-जलूल लिखेगा लेकिन उन्हें तो सीधा कह रहा हूँ मानवीय आधार पर अगर कुछ बचा तो बस इतन कि टेट देने के लिए तैयार रहो, नेता/अभिनेता बहुत हैं जो आपको अलग अलग बातें बात रहे होंगे लेकिन हिमांशु राणा ऐसा खलनायक है जो आपको भी कहीं न कहीं एक प्रतिशत आपके बचने की होप दिखा रहा है और भगवान से ये मन्नत माँगना कि बीएड/टेट जिसमें स्वयं मैं भी हूँ के साथ खुली प्रतियोगिता न हो जाए वरना एक लाख बहत्तर हज़ार में सत्रह सौ बीस यानि एक फ़ीसदी भी पास होकर नियुक्ति पा लोगे तो बहुत होगा |

हर हर महादेव

धन्यवाद

आपका____हिमांशु राणा

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