लखनऊ। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने श्रमिकों और नियोक्ताओं के लिए पीएफ में अनिवार्य योगदान को कम कर 10-10 प्रतिशत तक करने के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है।
जिससे कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है। अभी तक कर्मचारी और नियोक्ता, एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड स्कीम (ईपीएफ), एंप्लॉयी पेंशन स्कीम (ईपीएस) और एंप्लॉयी डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस स्कीम (ईडीएलआई) के तहत मूल आय का 12-12 प्रतिशत राशि जमा करते हैं, जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।
कैसे करें ईपीएफ की गणना
कर्मचारी का बेसिक पे+डीए: 25000
EPF में कर्मचारी की ओर से किया गया योगदान: 25000 का 12%= 3000 रुपए
EPF में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान: 25000 का 3.67%= 917.50 रुपए (A)
नियोक्ता की ओर से कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में योगदान: 15000 का 8.33%=2082.50 रुपए (I)
15000 रुपये की थ्रेसहोल्ड इनकम पर कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान: 15000 का 8.33%=1250 रुपए (II)
(I) और (II) वाली थ्रेसहोल्ड की ऊपरी सीमा पर कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में नियोक्ता की ओर से किया गया अतिरिक्त योगदान: 2082.50 - 1250 = 832.50 रुपए (B)
(B) में अतिरिक्त राशि को EPF में नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान (A) में जोड़ दिया जाता है: 917.50 + 832.50 = 1750 रुपए
ईपीएफ में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान = 1750 रुपए
ऐसे होती है ब्याज की गणना
एक बार नियोक्ता और कर्मचारी द्वारा की ओर से किए गए योगदान पर कितना ब्याज मिलता है इसकी गणना की जाती है। इस ब्याज की गणना हर महीने के ओपनिंग बैलेंस पर की जाती है। अगर ओपनिंग बैलेंस जीरो है तो ब्याज भी जीरों ही रहेगा। दूसरे महीने के लिए ब्याज की गणना 1 महीने के क्लोजिंग बैलेंस पर की जाती है। यह दूसरे महीने से ओपनिंग बैलेंस के समान होती है। पहले महीने के क्लोजिंग बैलेंस की गणना कर्मचारी और नियोक्ता के पहले महीने के योगदान के आधार पर की जाती है। इसी तरह से तीसरे महीने के ब्याज की गणना दूसरे महीने के क्लोजिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है। वहीं दूसरे महीने के क्लोजिंग बैलेंस की गणना पहले महीने के क्लोजिंग बैलेंस और दूसरे महीने के लिए कर्मचारी और नियोक्ता दोनों की ओर से किए गए कुल योगदान के आधार पर की जाती है।
इन सभी के बाद वर्ष के अंत में कर्मचारी के साथ-साथ नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान की राशि में 12 महीनों में अर्जित ब्याज की राशि में जोड़ा जाता है। ऐसा कर जो परिणाम सामने आता है वो वर्ष के समापन पर क्लोसिंग ईपीएफ बैलेंस होता है। यह राशि दूसरे साल के लिए ओपनिंग बैलेंस बन जाती है। दूसरे साल से पहले महीने के ब्याज की गणना दूसरे साल के ओपनिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है।
ये है फॉर्मूला
साल के अंत तक ईपीएफ में जमा कुल राशि = 12 महीने के अंत तक जमा कुल राशि (नियोक्ता और कर्मचारी दोनों का हिस्सा)+ हर महीने प्राप्त हुई ब्याज आय का कुल हिस्सा= 57,000+2351= 59351 रुपए।
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जिससे कर्मचारियों को बड़ी राहत मिली है। अभी तक कर्मचारी और नियोक्ता, एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड स्कीम (ईपीएफ), एंप्लॉयी पेंशन स्कीम (ईपीएस) और एंप्लॉयी डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस स्कीम (ईडीएलआई) के तहत मूल आय का 12-12 प्रतिशत राशि जमा करते हैं, जिसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।
कैसे करें ईपीएफ की गणना
कर्मचारी का बेसिक पे+डीए: 25000
EPF में कर्मचारी की ओर से किया गया योगदान: 25000 का 12%= 3000 रुपए
EPF में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान: 25000 का 3.67%= 917.50 रुपए (A)
नियोक्ता की ओर से कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में योगदान: 15000 का 8.33%=2082.50 रुपए (I)
15000 रुपये की थ्रेसहोल्ड इनकम पर कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान: 15000 का 8.33%=1250 रुपए (II)
(I) और (II) वाली थ्रेसहोल्ड की ऊपरी सीमा पर कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) में नियोक्ता की ओर से किया गया अतिरिक्त योगदान: 2082.50 - 1250 = 832.50 रुपए (B)
(B) में अतिरिक्त राशि को EPF में नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान (A) में जोड़ दिया जाता है: 917.50 + 832.50 = 1750 रुपए
ईपीएफ में नियोक्ता की ओर से किया गया योगदान = 1750 रुपए
ऐसे होती है ब्याज की गणना
एक बार नियोक्ता और कर्मचारी द्वारा की ओर से किए गए योगदान पर कितना ब्याज मिलता है इसकी गणना की जाती है। इस ब्याज की गणना हर महीने के ओपनिंग बैलेंस पर की जाती है। अगर ओपनिंग बैलेंस जीरो है तो ब्याज भी जीरों ही रहेगा। दूसरे महीने के लिए ब्याज की गणना 1 महीने के क्लोजिंग बैलेंस पर की जाती है। यह दूसरे महीने से ओपनिंग बैलेंस के समान होती है। पहले महीने के क्लोजिंग बैलेंस की गणना कर्मचारी और नियोक्ता के पहले महीने के योगदान के आधार पर की जाती है। इसी तरह से तीसरे महीने के ब्याज की गणना दूसरे महीने के क्लोजिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है। वहीं दूसरे महीने के क्लोजिंग बैलेंस की गणना पहले महीने के क्लोजिंग बैलेंस और दूसरे महीने के लिए कर्मचारी और नियोक्ता दोनों की ओर से किए गए कुल योगदान के आधार पर की जाती है।
इन सभी के बाद वर्ष के अंत में कर्मचारी के साथ-साथ नियोक्ता की ओर से किए गए योगदान की राशि में 12 महीनों में अर्जित ब्याज की राशि में जोड़ा जाता है। ऐसा कर जो परिणाम सामने आता है वो वर्ष के समापन पर क्लोसिंग ईपीएफ बैलेंस होता है। यह राशि दूसरे साल के लिए ओपनिंग बैलेंस बन जाती है। दूसरे साल से पहले महीने के ब्याज की गणना दूसरे साल के ओपनिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है।
ये है फॉर्मूला
साल के अंत तक ईपीएफ में जमा कुल राशि = 12 महीने के अंत तक जमा कुल राशि (नियोक्ता और कर्मचारी दोनों का हिस्सा)+ हर महीने प्राप्त हुई ब्याज आय का कुल हिस्सा= 57,000+2351= 59351 रुपए।
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