72825 टेट मेरिट और 839 कौन से विधि के नियम पर है...क्या इसे सुनबाई कहते हैं , जिसमे 95 % sm के वकीलों को सुना गया , और हमको मात्र 5 %

जो आजकल ज्ञान पेले पड़े हैं और अपने को गुरु बाकि अचयनित को **** समझ रहे , बता देता हूं , आपकी 72825 टेट मेरिट , और 839 कौन से विधि के नियम पर है और जब तक दीपक मिश्रा सही ट्रैक पर आए तब

तक उन्होंने बहुत देर कर दी थी , जब 2 नवम्बर को चार बिंदु बेस डिसाइड करने हेतु बनाए थे , जिसमे एक विवादित प्रश्न ये भी था कि क्या whole sole टेट अंको को चयन का आधार बनाना क्या उचित है , पर जब आगे इनपर विस्तृत सुनबाई होती , और एक केस शिक्षा मित्र यूपी की विवादित भर्ती मे जुड़ चुका था , और शिक्षा मित्रों को तो टेट से ही छूठ दे दी गई थी , और दूसरी कमी थी दुनियां भर का वर्गीकरण तभी आज महिला 90 सिलेक्ट है तो पुरुष 116 भी नहीं इतनी ऊंच नीच , न्यायलय से भी भीषण गलती हुई है , उसको छुपाने के लिए ही उनको कहना पड़ा कि जो सिलेक्टेड हो गए हैं उनको नहीं छेड़ेंगे । लेकिन बाकी का कोर्ट फिर क्यों सटीक समाधान नहीं करता । sc मे ऐसी सुनबाई से उम्मीद नहीं थी , जो लग गया वो लग गया , बाकी क्या **** हैं , और कहाँ दीपक मिश्रा 1.5 साल खा गए और गोयल साहब ने 1.5 घंटे मे सिविल अपील पैक अप कर दी , वाह क्या न्याय है , और देखो sm को इतने शानदार ऑर्डर पर एकतरफा स्टे , स्टे कंडीशनल भी हो सकता था , हम अचयनित , बेरोजगार केस कैसे लड़ता उनको तो 35000 मिल रहे थे , वो तो झेठ मालानी खड़ा कर ही लेते । देखा जाए न्यायिक सिस्टम भी एकदम खोखला है भारत का , जिसको लाभ मिल गया जैसे 72825 और 839 वो अपने को गुरु समझने लगे । बाकी को ***** , ये सोच है इन जैसे लोगों की । और सबसे बड़ा अगर अन्याय है तो वो ये कि आज 90 अंक वाला याची लाभ लेकर जॉब के आनंद ले रहा , और 108 वाला बहार कोर्ट के धक्के खा रहा , क्या यही तरीका था सुनबाई का , क्या कोर्ट 4347 पर बेस डिसाइड करने मे इतनी अक्षम थी , जो आज तक बेस पर प्रॉपर सुनबाई ही नहीं करा पाई , और अंत समय मात्र एफिडेविट मांग कर केस की खाना पूरी कर दी , ncte के बहुत से बिंदु विवादित हैं , उनका स्पस्टीकरण विस्तृत सुनबाई से ही संभव था , जो कि नहीं हुई , वो चार बिंदु कहाँ गए जो दीपक मिश्रा जी द्वारा फ्रेम किये गए थे , क्या अब उनका हल गोयल और ललित सर एफिडेविट को पढ़कर निकालेंगे । कुछ नहीं कह सकते , दूसरा सबसे बड़ा सवाल sm की ट्रेनिंग को लेकर है , सब कुछ इनके अगेंस्ट था , तो ट्रेनिंग कैसे सही हो सकती है , ये तो हाई कोर्ट मे ही सरकार और न्यायपालिका की मिलीभगत से इनकी ट्रेनिंग को बचाया गया , और योग्य बेरोजगार इंसान रह गया इन कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने को । मन संतुष्ट नहीं भारत की न्यायपालिका से , क्या इसे सुनबाई कहते हैं , जिसमे 95 % sm के वकीलों को सुना गया , और हमको मात्र 5 % । फिर भी इन सब के बावजूद भी सटीक निर्णय के इतंज़ार मे ।
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