वर्तमान में देश की न्याय व शासन व्यवस्था से आहत होकर उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्र मौत को गले लगाने को मजबूर हैं । उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त होने के बाद लगभग 2,000 से अधिक शिक्षामित्रों ने गरीबी से तंग आकर असमय मृत्यु को स्वीकार कर अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया।
मानो लगता है यूपी में शिक्षामित्रों की मौत की बाढ़ सी आ गई हैं। शिक्षामित्र आए दिन हृदय गति रुकने, बीमारी व मानसिक अवसाद, गरीबी के कारण आत्महत्या कर ले रहे हैं। गरीबी से जूझते शिक्षामित्र सरकारों की उदासीनता एवं अपनी 20 वर्षों की प्राथमिक शिक्षा में सेवा करने का न्याय न मिलने के कारण आसामयिक मृत्यु को सहर्ष स्वीकार कर लें रहे हैं। अब तक उत्तर प्रदेश में 2000 से अधिक शिक्षामित्र गरीबी के कारण , सरकार की उदासीनता के कारण असामयिक मृत्यु के शिकार हो गए हैं ।गरीबी के कारण उत्तर प्रदेश के असहाय शिक्षा मित्र अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए मजबूर हैं। सरकारों द्वारा शिक्षामित्रों के भविष्य को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो शिक्षामित्र की मौत की बाढ़ को उत्तर प्रदेश में रोक पाना मुश्किल कार्य होगा सरकार द्वारा यूपी के शिक्षामित्रों को राहत के नाम पर तो लंबे चौड़े वादे किए गए लेकिन सरकार ने अपने संकल्प पत्र में रखे गए शिक्षामित्र की समस्याओं को नजरअंदाज कर उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों को आसामयिक मौत को गले लगाने के लिए मजबूर कर दिया है ।अंधेर नगरी की न्याय व शासन व्यवस्था शिक्षा मित्रों के साथ पूर्ण रुप से लागू होती दिखाई दे रही है। शिक्षामित्रों की मौत और दुर्दशा पर सरकार, शासन ,नेता, मंत्री, न्याय से जुड़े लोग, समाजसेवी सभी नेत्रहीन व मूक,वधिर बन गए हैं। क्योंकि सम्पूर्ण समाज को उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों की मौत व दुर्दशा ,शिक्षामित्रों के असहाय बच्चों की चीख-पुकार ,वृद्ध माता-पिता का आंसू ,आए दिन समाचार पत्रों में शिक्षामित्रों के मौत होने के समाचार की खबरें प्रकाशित हो रही हैं ।कोई भी यूपी के शिक्षामित्रों की पीड़ा पर दो शब्द नहीं बोल रहा है सरकार व जिम्मेदारों द्वारा यूपी के 2000 से अधिक शिक्षामित्रों की मौत हो जाने के बाद भी सांत्वना के दो शब्द भी नहीं निकले, उत्तर प्रदेश में लाखों से अधिक संख्या में शिक्षामित्रों का एक बड़ा समूह गरीबी से तंग आकर घुट घुट कर जीने व मरने को मजबूर हैं।
आखिर शिक्षामित्रों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन, इसमें यूपी के शिक्षामित्रों का क्या दोष है । शिक्षा मित्रों ने अपने जीवन को देश के भविष्य को संवारने में लगा दिया।यूपी के शिक्षामित्र स्नातक व बीटीसी की शैक्षिक योग्यता रखते हैं। सरकार द्वारा शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए सन् 2000ई में कक्षा एक व दों में शिक्षण कार्य करने हेतु यूपी के बेसिक विद्यालयों में शिक्षा मित्रों को नियुक्त किया गया था। शिक्षामित्र विगत 20 वर्षों से निरंतर रूप से यूपी के प्राथमिक विद्यालयों में सेवा दे रहे हैं। विगत 20 वर्षों की सेवा के बदले शिक्षामित्रों को गरीबी ,अवसाद व असामयिक मौत उपहार के रूप में मिल रहा हैं ।इस वर्ष 2020 में यूपी के शिक्षामित्रों को जनवरी व फरवरी 2020 का मानदेय न मिलने के कारण यूपी के शिक्षामित्रों का होली का पर्व मनाना तो दूर शिक्षा मित्रों के घर का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है । वर्तमान में शिक्षा मित्रों को 10000 रू. मासिक मानदेय दिया जाता है तथा शिक्षक के बराबर का काम लिया जाता है। मानदेय समय से न मिलने के कारण शिक्षा मित्र परिवार सहित भुखमरी के कगार पर पहुंच कर असामयिक मृत्यु के शिकार हो रहे हैं,जो हमारी जिम्मेदार सरकारों को दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि हमारी सरकारें काम पर नहीं वायदे पर विश्वास करती हैं, क्या यही सबका साथ सबका विकास की नीतियां है। आम जनमानस को इस पर चिंतन व मनन करने की आवश्यकता है।(निराला साहित्य, हिंदी साप्ताहिक ,अंबेडकरनगर)
मानो लगता है यूपी में शिक्षामित्रों की मौत की बाढ़ सी आ गई हैं। शिक्षामित्र आए दिन हृदय गति रुकने, बीमारी व मानसिक अवसाद, गरीबी के कारण आत्महत्या कर ले रहे हैं। गरीबी से जूझते शिक्षामित्र सरकारों की उदासीनता एवं अपनी 20 वर्षों की प्राथमिक शिक्षा में सेवा करने का न्याय न मिलने के कारण आसामयिक मृत्यु को सहर्ष स्वीकार कर लें रहे हैं। अब तक उत्तर प्रदेश में 2000 से अधिक शिक्षामित्र गरीबी के कारण , सरकार की उदासीनता के कारण असामयिक मृत्यु के शिकार हो गए हैं ।गरीबी के कारण उत्तर प्रदेश के असहाय शिक्षा मित्र अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए मजबूर हैं। सरकारों द्वारा शिक्षामित्रों के भविष्य को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो शिक्षामित्र की मौत की बाढ़ को उत्तर प्रदेश में रोक पाना मुश्किल कार्य होगा सरकार द्वारा यूपी के शिक्षामित्रों को राहत के नाम पर तो लंबे चौड़े वादे किए गए लेकिन सरकार ने अपने संकल्प पत्र में रखे गए शिक्षामित्र की समस्याओं को नजरअंदाज कर उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों को आसामयिक मौत को गले लगाने के लिए मजबूर कर दिया है ।अंधेर नगरी की न्याय व शासन व्यवस्था शिक्षा मित्रों के साथ पूर्ण रुप से लागू होती दिखाई दे रही है। शिक्षामित्रों की मौत और दुर्दशा पर सरकार, शासन ,नेता, मंत्री, न्याय से जुड़े लोग, समाजसेवी सभी नेत्रहीन व मूक,वधिर बन गए हैं। क्योंकि सम्पूर्ण समाज को उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों की मौत व दुर्दशा ,शिक्षामित्रों के असहाय बच्चों की चीख-पुकार ,वृद्ध माता-पिता का आंसू ,आए दिन समाचार पत्रों में शिक्षामित्रों के मौत होने के समाचार की खबरें प्रकाशित हो रही हैं ।कोई भी यूपी के शिक्षामित्रों की पीड़ा पर दो शब्द नहीं बोल रहा है सरकार व जिम्मेदारों द्वारा यूपी के 2000 से अधिक शिक्षामित्रों की मौत हो जाने के बाद भी सांत्वना के दो शब्द भी नहीं निकले, उत्तर प्रदेश में लाखों से अधिक संख्या में शिक्षामित्रों का एक बड़ा समूह गरीबी से तंग आकर घुट घुट कर जीने व मरने को मजबूर हैं।