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2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को मिल सकती है टीईटी से राहत !

 सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की पुनर्विचार याचिका दाखिल; लाखों शिक्षकों की नौकरी दाव पर




कानपुर देहात। शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की अनिवार्यता को लेकर देशभर में चल रही बहस अब एक निर्णायक मोड़ पर आ गई है। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल कर 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी लागू करने पर गंभीर आपत्ति जताई है। यह फैसला लाखों शिक्षकों के भविष्य को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है।


हाल ही में, 1 सितंबर 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि में पाँच वर्ष से अधिक समय बाकी है, उन्हें दो वर्षों के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। इस आदेश में पुराने और नए, दोनों तरह के शिक्षकों को शामिल किया गया था।


तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों

पर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनकी नियुक्ति उस समय के वैध प्रावधानों के अनुसार हुई थी। सरकार ने याचिका में बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) की धारा 23 (1) केवल भविष्य की नियुक्तियों से संबंधित है, इसलिए पुराने शिक्षकों पर नई योग्यता थोपना कानूनी रूप से अनुचित है।


राज्य सरकार ने अपनी याचिका


में चिंता व्यक्त की कि तमिलनाडु में 3,90,458 सरकारी शिक्षकों ने अभी तक टीईटी पास नहीं किया है। यदि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश पुराने शिक्षकों पर भी लागू होता है, तो लाखों शिक्षकों की सेवाएं खतरे में पड़ सकती हैं। इससे लाखों विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होगी और पूरी शिक्षा व्यवस्था में अस्थिरता आ सकती है, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में।


तमिलनाडु सरकार ने कोर्ट से स्पष्टीकरण की मांग करते हुए कहा है कि टीईटी पास करने की पाँच साल की समय सीमा केवल 1 अप्रैल 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों पर ही लागू होनी चाहिए। सरकार ने सुझाव दिया है कि पुराने शिक्षकों के लिए इन-सर्विस ट्रेनिंग, डिप्लोमा कोर्स या ब्रिज प्रोग्राम जैसी वैकल्पिक व्यवस्थाएं लागू की जा सकती हैं, जिससे उनकी नौकरी सुरक्षित रहे और शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहतर हो सके

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