लखनऊ: आज के शिक्षक का दर्द सिर्फ कम वेतन या संसाधनों की कमी में नहीं है। असली चुनौती है गैर-शैक्षिक ड्यूटियों का बोझ, जिसने उन्हें कक्षा से दूर कर दिया है और बच्चों की पढ़ाई पर असर डाला है।
शिक्षक का असली दुख
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लोगों की गलतफहमी है कि शिक्षक सिर्फ इसलिए नाराज़ है क्योंकि सरकार उससे बहुत काम करवा रही है।
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वास्तविकता यह है कि शिक्षक काम से नहीं थकता। वह सदियों से कम वेतन, कम संसाधन और ज्यादा उम्मीदों में काम करता आया है।
शिक्षक कितने काम कर लेते हैं
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36 एप्लिकेशन चलानी हों — शिक्षक चला लेता है।
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ऑनलाइन रिपोर्ट, पोर्टल, डेटा — शिक्षक भर देता है।
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बीएलओ की ड्यूटी लोकतंत्र के नाम पर निभा देता है।
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कुत्ते गिनने की ड्यूटी — वह भी निभा लेता है।
शिक्षक इन सब से परेशान नहीं है। असली चिंता यह है कि इन सबके बीच बच्चे छूट जा रहे हैं।
शिक्षा को समय, ध्यान और संवाद चाहिए
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शिक्षा कोई ऐप नहीं है, जिसे अपडेट कर दिया जाए।
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शिक्षा कोई सर्वे नहीं है, जिसे दो दिन में निपटा दिया जाए।
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शिक्षा रोज़ाना ध्यान, समय, ऊर्जा और संवाद चाहती है।
लेकिन सरकार ने शिक्षक को कक्षा से उठाकर हर उस जगह खड़ा कर दिया जहाँ पढ़ाई का कोई रिश्ता नहीं।
डेटा बन रहा है, ज्ञान नहीं
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जब शिक्षक कक्षा में कम और पोर्टल में ज्यादा रहेगा, तो केवल डेटा पैदा होगा, ज्ञान नहीं।
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आज शिक्षा नहीं बिगड़ रही, उसे बिगाड़ा जा रहा है।
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सबसे बड़ा व्यंग्य — उसी शिक्षक को दोष दिया जा रहा है जिससे शिक्षण का अधिकार छीना जा रहा है।
सार
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सरकार ने शिक्षक से सब काम लिया — सिवाय पढ़ाने के।
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शिक्षक जानता है कि देश बच्चों से बनता है, पोर्टल या ऐप से नहीं।
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जब शिक्षक बच्चों के पास नहीं होगा, तो भविष्य किसी पोर्टल पर अपलोड नहीं होगा।