कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखा रही सरकार
अनारक्षित 105 और आरक्षित 97 अंक वालों की काउंसिलिंग किस आधार पर हुई
काउंसिलिंग कराने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश में फंसी सरकार
आज नहीं तो कल मजबूर होकर सरकार देगी इन्हें नियुक्ति पत्र
लखनऊ। देश की सर्वोच्च अदालत जहां विश्व के सबसे ताकतवर व्यक्ति को भारत आने के बावजूद ताजमहल देखने से रोक देता है वहीं इस सर्वोच्च अदालत के आदेश की अवहेलना राज्य सरकार का शगल बनता जा रहा है। मामला 72,825 सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का है। एक तरफ लगातार साढ़े तीन वर्षों से सहायक अध्यापकों और राज्य सरकार के बीच तलवारें खिंची हुई हैं तो वहीं दूसरी तरफ देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन सहायक अध्यापकों को सही मानते हुए प्रदेश सरकार को एक बड़ा आदेश सुना दिया।
सर्वोच्च अदालत के अनुसार टीईटी में अनारक्षित वर्ग में 105 अंक और आरक्षित वर्ग में 97 अंक पाने वाले सभी अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने का आदेश था लेकिन प्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए इस नियुक्ति में लगातार अपनी मनमानी करते जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना का मन बना लिया हो। सरकार भी जानती है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की खुलेआम अवहेलना करना उनके लिए संभव नहीं है। इसी को देखते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अनारक्षित वर्ग के 105 अंक पाने वाले और आरक्षित वर्ग के 97 अंक पाने वाले अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग तो करा ली लेकिन यह भी बता दिया कि उनके पास इन्हें नौकरी देने के लिए पद नहीं है। सवाल यह उठता है कि अगर पद नहीं थे तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस बात को क्यों नहीं रखा। और तो और बिना पदों के काउंसिलिंग किस आधार पर करवाई। इतना ही नहीं शिक्षा मित्रों के माध्यम से पदों को भरने की जल्दबाजी क्यों दिखाई जा रही है।
सरकार की मंशा साफ है। सरकार शुरू से टीईटी के आधार पर नियुक्ति की खिलाफत करती रही है क्योंकि समाजवादी पार्टी की सरकार वह सरकार है जो जब भी प्रदेश में अस्तित्व में आई हर तरफ नकल और नकलचियों का बोलबाला रहा वह भी सरकार की कृपा के चलते। सरकार ने नकल को बढ़ावा देते हुए हर बार अपनी सरकार के रहते हुए अपात्रों को अच्छे नंबरों से पास कराने का ठेका लेती रही है। उसी का नतीजा है कि वह टीईटी के माध्यम से नियुक्ति न करके एकेडमिक आधार पर नियुक्ति कराना चाह रही थी। सही भी है जब नकल कराकर ही लोगों को पास करवाया है तो उसी आधार पर नौकरी भी देना इनकी मजबूरी बनती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया। प्रदेश में लगभग तीन लाख अध्यापकों के पद खाली हैं और कोर्ट ने भी इन्हीं तीन लाख खाली पदों के आधार पर टीईटी पास अनारक्षित 105 अंक और आरक्षित 97 अंक वालों को समायोजित करने का आदेश दिया था, लेकिन प्रदेश की समाजवादी सरकार इन टीईटी पास सहायक अध्यापकों को नियुक्ति पत्र नहीं देना चाह रही है। नतीजतन यह टीईटी पास सहायक अध्यापक एक बार फिर प्रदेश की समाजवादी सरकार से जंग लडऩे की तैयारी में जुट गए हैं। लगातार अपने आपको मजबूत करते हुए टीईटी पास सहायक अध्यापक सरकार से फिर लोहा लेने के तैयारी में लग गए। उनकी मानें तो अब ये लड़ाई तब तक जारी रखेंगे जब तक तीन लाख पदों के सापेक्ष टीईटी 2011 में अनारक्षित वर्ग 105 और आरक्षित वर्ग 97 वालों को सरकार समायोजित नहीं कर लेती। अजीब विडंबना है, सरकार के पास पद भी हैं और उन पदों पर नियुक्ति पाने के लिए योग्य सहायक अध्यापक भी फिर आखिरकार सरकार इन्हें नियुक्ति पत्र देने में आखिर क्यों हीलाहवाली कर रही है। क्या सरकार अपने आपको सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर मान रही है। क्या प्रदेश की सरकार अपनी जनता की इस तरह की अनदेखी करके खुद को राज्य की बागडोर संभालने के लिए कब तक खड़ी रह सकती है। सरकार को लेकर प्रदेश की जनता में जबरदस्त रोष व्याप्त हो गया है। नाराजगी सिर्फ सहायक अध्यापकों की ही नहीं है। नाराजगी तो पूरे प्रदेश की जनता को है। जहां एक तरफ ढाई लाख टीईटी पास अभ्यर्थी और उनके परिवार वालों की नाराजगी है वहीं दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के कानून व्यवस्था से भी लोगों में जबरदस्त रोष है। अब तक प्रदेश के इस तीन वर्षीय समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में किसी भी तरह की या किसी भी विभाग में कोई नियुक्ति नहीं हुई। बेरोजगारी चरम पर है और सरकार प्रदेश के बेरोजगारों के पैसे से जहां नेताजी का जबरदस्त सामंती तरीके से जन्मदिन मनाती है, सैफई में महोत्सव के नाम पर इन बेरोजगारों के पैसों को पानी की तरह बहाया गया और तो और प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री ने अपनी पत्नी डिंपल यादव का जन्मदिन भी विदेश में जाकर मनाया। आखिर जनता कब तक बर्दाश्त करेगी सरकार की इन कुनीतियों को। पैसा जनता का, परेशान जनता लेकिन ऐश कर रही समाजवादी सरकार। कब तक!
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अनारक्षित 105 और आरक्षित 97 अंक वालों की काउंसिलिंग किस आधार पर हुई
काउंसिलिंग कराने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश में फंसी सरकार
आज नहीं तो कल मजबूर होकर सरकार देगी इन्हें नियुक्ति पत्र
लखनऊ। देश की सर्वोच्च अदालत जहां विश्व के सबसे ताकतवर व्यक्ति को भारत आने के बावजूद ताजमहल देखने से रोक देता है वहीं इस सर्वोच्च अदालत के आदेश की अवहेलना राज्य सरकार का शगल बनता जा रहा है। मामला 72,825 सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का है। एक तरफ लगातार साढ़े तीन वर्षों से सहायक अध्यापकों और राज्य सरकार के बीच तलवारें खिंची हुई हैं तो वहीं दूसरी तरफ देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन सहायक अध्यापकों को सही मानते हुए प्रदेश सरकार को एक बड़ा आदेश सुना दिया।
सर्वोच्च अदालत के अनुसार टीईटी में अनारक्षित वर्ग में 105 अंक और आरक्षित वर्ग में 97 अंक पाने वाले सभी अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने का आदेश था लेकिन प्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायलय के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए इस नियुक्ति में लगातार अपनी मनमानी करते जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना का मन बना लिया हो। सरकार भी जानती है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की खुलेआम अवहेलना करना उनके लिए संभव नहीं है। इसी को देखते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अनारक्षित वर्ग के 105 अंक पाने वाले और आरक्षित वर्ग के 97 अंक पाने वाले अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग तो करा ली लेकिन यह भी बता दिया कि उनके पास इन्हें नौकरी देने के लिए पद नहीं है। सवाल यह उठता है कि अगर पद नहीं थे तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस बात को क्यों नहीं रखा। और तो और बिना पदों के काउंसिलिंग किस आधार पर करवाई। इतना ही नहीं शिक्षा मित्रों के माध्यम से पदों को भरने की जल्दबाजी क्यों दिखाई जा रही है।
सरकार की मंशा साफ है। सरकार शुरू से टीईटी के आधार पर नियुक्ति की खिलाफत करती रही है क्योंकि समाजवादी पार्टी की सरकार वह सरकार है जो जब भी प्रदेश में अस्तित्व में आई हर तरफ नकल और नकलचियों का बोलबाला रहा वह भी सरकार की कृपा के चलते। सरकार ने नकल को बढ़ावा देते हुए हर बार अपनी सरकार के रहते हुए अपात्रों को अच्छे नंबरों से पास कराने का ठेका लेती रही है। उसी का नतीजा है कि वह टीईटी के माध्यम से नियुक्ति न करके एकेडमिक आधार पर नियुक्ति कराना चाह रही थी। सही भी है जब नकल कराकर ही लोगों को पास करवाया है तो उसी आधार पर नौकरी भी देना इनकी मजबूरी बनती थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया। प्रदेश में लगभग तीन लाख अध्यापकों के पद खाली हैं और कोर्ट ने भी इन्हीं तीन लाख खाली पदों के आधार पर टीईटी पास अनारक्षित 105 अंक और आरक्षित 97 अंक वालों को समायोजित करने का आदेश दिया था, लेकिन प्रदेश की समाजवादी सरकार इन टीईटी पास सहायक अध्यापकों को नियुक्ति पत्र नहीं देना चाह रही है। नतीजतन यह टीईटी पास सहायक अध्यापक एक बार फिर प्रदेश की समाजवादी सरकार से जंग लडऩे की तैयारी में जुट गए हैं। लगातार अपने आपको मजबूत करते हुए टीईटी पास सहायक अध्यापक सरकार से फिर लोहा लेने के तैयारी में लग गए। उनकी मानें तो अब ये लड़ाई तब तक जारी रखेंगे जब तक तीन लाख पदों के सापेक्ष टीईटी 2011 में अनारक्षित वर्ग 105 और आरक्षित वर्ग 97 वालों को सरकार समायोजित नहीं कर लेती। अजीब विडंबना है, सरकार के पास पद भी हैं और उन पदों पर नियुक्ति पाने के लिए योग्य सहायक अध्यापक भी फिर आखिरकार सरकार इन्हें नियुक्ति पत्र देने में आखिर क्यों हीलाहवाली कर रही है। क्या सरकार अपने आपको सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर मान रही है। क्या प्रदेश की सरकार अपनी जनता की इस तरह की अनदेखी करके खुद को राज्य की बागडोर संभालने के लिए कब तक खड़ी रह सकती है। सरकार को लेकर प्रदेश की जनता में जबरदस्त रोष व्याप्त हो गया है। नाराजगी सिर्फ सहायक अध्यापकों की ही नहीं है। नाराजगी तो पूरे प्रदेश की जनता को है। जहां एक तरफ ढाई लाख टीईटी पास अभ्यर्थी और उनके परिवार वालों की नाराजगी है वहीं दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के कानून व्यवस्था से भी लोगों में जबरदस्त रोष है। अब तक प्रदेश के इस तीन वर्षीय समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में किसी भी तरह की या किसी भी विभाग में कोई नियुक्ति नहीं हुई। बेरोजगारी चरम पर है और सरकार प्रदेश के बेरोजगारों के पैसे से जहां नेताजी का जबरदस्त सामंती तरीके से जन्मदिन मनाती है, सैफई में महोत्सव के नाम पर इन बेरोजगारों के पैसों को पानी की तरह बहाया गया और तो और प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री ने अपनी पत्नी डिंपल यादव का जन्मदिन भी विदेश में जाकर मनाया। आखिर जनता कब तक बर्दाश्त करेगी सरकार की इन कुनीतियों को। पैसा जनता का, परेशान जनता लेकिन ऐश कर रही समाजवादी सरकार। कब तक!
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