नई दिल्ली। आश्र्चय की बात यह है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने राज्य में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक पद पर नियुक्त करने की प्रक्रिया रद्द करने के आदेश दिए थे। उसमें कई बातों को आधार बनाया गया था और यह भी कहा था कि बिना टीईटी उत्तीर्ण किए उम्मीदवार को शिक्षक नियुक्त नहीं किया जा सकता।
लेकिन जिन शिक्षकों की नियुक्ति इसके बाद हुई है और लगातार सेवा में हैं, उनके लिए टीईटी पास करना अनिवार्य है। मानव संसाधन मंत्रालय ने 8 नवम्बर, 2010 में सभी राज्य सरकारों को पत्र लिख कर साफ कर दिया था कि केन्द्र सरकार टीईटी पास करने की अनिवार्यता से छूट नहीं देगी क्योंकि टीईटी पास करना न्यूनतम योग्यताओं में आता है। अत: इसका पालन करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश सरकार से योग्य शिक्षा मित्रों को तीन हफ्ते में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति करने का सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है। इस आदेश के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने एक सप्ताह में आवदेन लेकर शिक्षामित्रों की तीन हफ्ते में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति सुनिश्चित करने को कहा है। न्यायालय ने साफ कर दिया है कि टीईटी में 70 प्रतिशत अंक और बीएड में 50 प्रतिशत अंक वाले शिक्षा मित्र एक हफ्ते में आवेदन कर सकते हैं।
इससे पहले अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) से छूट देने पर टिप्पणी न करते हुए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने कहा था कि अप्रशिक्षित शिक्षकों (शिक्षामित्रों) की नियुक्ति त्रुटिहीन और सही तरीके से करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट देने के मामले में लिखे मुख्य सचिव आलोक रंजन के पत्र के जवाब में एनसीटीई के सदस्य सचिव जुगलाल सिंह ने स्थिति साफ कर दी है। पत्र में स्पष्ट लिखा गया है कि 25 अगस्त, 2010 से पहले नियुक्त शिक्षक, जो लगातार सेवा में रहे, के लिए टीईटी अनिवार्य नहीं है।