टीईटी 2011 के 400 फेल अभ्यर्थियों को पास करने के मामले में नया मोड़

उत्तर प्रदेश की पहली शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) 2011 के 400 फेल अभ्यर्थियों को पास करने के मामले में
नया मोड़ आ गया है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद के वरिष्ठ अफसरों के निर्देश पर आरोपी दोनों लिपिकों को बहाल कर दिया गया है, वहीं प्रकरण की जांच कर रहे अधिकारी को बदला गया है।
नए जांच अधिकारी ने भी अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। परिषद सचिव उनसे इस संबंध में जवाब-तलब करने जा रही हैं। इससे कर्मचारियों में यही संदेश गया है कि विभागीय अफसर उनका नुकसान नहीं होने देंगे, तभी अभिलेखों में हेराफेरी के मामले बढ़ रहे हैं।1सूबे की पहली टीईटी परीक्षा 13 नवंबर 2011 को उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद ने कराई। इसी परीक्षा के टीआर (टेबुलेशन रिकॉर्ड) में हेराफेरी करके 400 से अधिक फेल अभ्यर्थियों को पास किया जा चुका है। इसमें दो कर्मचारी निलंबित किए गए। इन पर आरोप है कि अभ्यर्थियों को पास करने के लिए यूपी बोर्ड की कंप्यूटर एजेंसी की टीआर में हेराफेरी की गई। इस रिकॉर्ड के आधार पर ही अभिलेखों का सत्यापन होता है। टीआर में हेराफेरी करने वाले शायद यह भूल गए कि जिस रिकॉर्ड में वह बदलाव कर रहे हैं इसकी प्रतियां एक नहीं कई जगहों पर पहले से हैं। यहां तक कि सफल अभ्यर्थियों की पूरी सूची नेट पर भी अपलोड है। इसी वजह से यह मामला पकड़ में आ गया।1दरअसल 25 मार्च 2014 को जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्राथमिक स्कूलों में 72825 शिक्षकों की भर्ती का आदेश हुआ तो अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट से डुप्लीकेट या फिर संशोधित अंकपत्र जारी करने का अनुरोध किया था। इसी का फायदा उठाकर रिकार्ड में हेराफेरी की गई थी। तत्कालीन सचिव एवं मौजूदा परिषद के निदेशक अमरनाथ वर्मा ने कंप्यूटर सेक्शन के दो कर्मचारियों प्रधान सहायक बृजनंदन एवं वरिष्ठ सहायक संतोष प्रकाश श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया था और जांच तत्कालीन अपर सचिव प्रशासन राजेंद्र प्रताप को सौंपी थी। भले ही धांधली की गाज छोटे कर्मचारियों पर गिराई गई, लेकिन इसमें ‘बड़ों’ के भी शामिल होने से इनकार नहीं किया जा सकता। शायद इसीलिए डेढ़ साल बाद भी जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। इस हेराफेरी में किसे लाभ मिला और रैकेट में कौन-कौन शामिल है यह सब जांच न होने से दब गया है।
पहले जांच अधिकारी अपर सचिव राजेंद्र प्रताप पदावनत के शिकार हुए और बाद में उनका तबादला इलाहाबाद डायट हो गया। इससे जांच जहां की तहां पड़ी रही और जांच अधिकारी बदल गए। नए अपर सचिव शिवलाल को यह प्रकरण सौंपा गया, लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कोई जांच नहीं की। इसी बीच वरिष्ठ अफसरों के निर्देश पर दोनों लिपिकों बृजनंदन एवं संतोष कुमार को बहाल भी कर दिया गया है, क्योंकि निलंबन एक सीमा में ही हो सकता था।
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