सरकार के दावे तगड़े हैं, पढ़े-लिखों को रगड़े हैं : में कवि क्या कहना चाहता है

प्रश्न १ :- सरकार के दावे तगड़े हैं, पढ़े-लिखों को रगड़े हैं।" में कवि क्या कहना चाहता है ?
(नोट- शब्द सीमा 150, अंक-20)
उत्तर:- प्रस्तुत पद्यांश बेरोजगारों द्वारा रचित 'भाड़ में गई पढ़ाई, बीएड-टीईटी की लड़ाई' पाठ से अवतरित है।
21वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रचित इस पद्यांश को तत्कालीन समाजवादी समय से लेकर अब तक सरकार के दावों का न केवल पोल खोलती है बल्कि शिक्षा एवं रोजगार में व्याप्त भ्रष्टाचार से उपजी अभ्यर्थियों के मानसिक एवं आर्थिक स्थिति को भी रेखांकित करती है। शिक्षा व्यवस्था से लेकर प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा आयोग एवं यहाँ तक कि प्रदेश की शीर्षस्थ संस्था लोक सेवा आयोग की सभी भर्तियों में घोर अनियमितताओं के चलते कोर्ट-कचेहरी में चक्कर लगाती भर्तियों से परेशान युवाओं के दर्द को बड़े खूबसूरत ढंग से वर्णन किया है। इस कविता में कवि सभी बोर्डों-आयोगों के अध्यक्षों को न्यायालय द्वारा धक्के मार निकाल देने का भी वर्णन करता है। इन सब पर शर्म महसूस करने के बजाय सरकार दावे करती है, शिक्षित बेरोजगारों को रगड़ती है, कवि अत्यंत आहत है और ये आह्वान करता है कि इस समाजवादी सरकार को उखाड़ फेंक दो।
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