शिक्षामित्र विवाद : उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों के चयन हेतु प्रथम शासनादेश दिनांक 26.05.1999 को जारी हुआ था । यह योजना युवाओं की प्राथमिक शिक्षा में भागीदार हेतु थी । विश्व बैंक के सहयोग से सहायक अध्यापकों की सहायता हेतु शिक्षामित्र एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में 11 महीने के संविदा पर रखे गये तथा समय-समय पर नये नियम आते रहे।
मेरी टीम के संरक्षक विजयराज सिंह का चयन प्रथम चरण में शिक्षामित्र पद पर हो जाता।
मेरिट में वो टॉप पर थे परंतु उनकी उम्र दो वर्ष अधिक थी ।
इसलिए उन्होंने हाई कोर्ट से बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में आरक्षित वर्ग के लिए मिली उम्र की छूट के तहत छूट मांगी ।
BSA इलाहाबाद ने काउंटर लगाया कि शिक्षामित्रों का चयन बेसिक शिक्षा नियमावली से नहीं हुआ है , इनका चयन मात्र संविदा कर्मी के रूप में 11 महीने के लिए हुआ है अतः आरक्षण की बात लागू नहीं होगी ।
इस प्रकार विजय राज भाई शिक्षामित्र नहीं बन सके ।
RTE एक्ट लागू होने के बाद शिक्षामित्र योजना बंद कर दी गयी ।
इस प्रकार शिक्षामित्र अध्यापक नहीं थे मगर दिनांक 4 जनवरी 2011 को उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भारी कमी दिखाकर शिक्षामित्रों को कार्यरत शिक्षक बताकर NCTE से सरकार ने शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण हेतु इजाजत मांगी तथा दिनांक 14 जनवरी 2011 को इजाजत मिल गयी ।
जबकि दिनांक 23 अगस्त 2010 को भारत सरकार के राजपत्र से बीएड वालों को नियुक्ति की छूट मिल गयी थी मगर राज्य सरकार ने बीएड बेरोजगारों की अनदेखी कर दी ।
यदि सरकार ने शिक्षामित्रों की बजाय बीएड पर दांव लगाया होता तो उसके लिए अधिक श्रेयष्कर होता ।
प्रशिक्षण के विरुद्ध बीएड वाले हाई कोर्ट गये और स्थगन मिल गया परंतु खंडपीठ ने यह कहकर स्थगन हटा दिया कि यदि ये कार्यरत शिक्षक नहीं होंगे तो इनका प्रशिक्षण याचिका के अंतिम निर्णय के आधीन रहेगा अर्थात निरस्त होगा ।
प्रशिक्षण के बाद वर्ष 2014 एवं 2015 में दो चरणों में लगभग 1.37 लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन हुआ।
समायोजन के लिए राज्य सरकार ने राज्य के बाल शिक्षा अधिकार कानून 2011 में प्रथम संशोधन करके शिक्षामित्रों को बगैर टीइटी के ही नियुक्त करने का नियम बनाया और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में 19वां संशोधन करके रूल 16 में उप क्लॉज़ जोड़ा और रूल 8 में शिक्षामित्र योग्यता को स्थान दिया ।
बीएड और बीटीसी बेरोजगारों ने समायोजन को चुनौती दी ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ० DY चंद्रचूड ने दोनों संशोधन रद्द कर दिया और शिक्षामित्रों को संविदाकर्मी बताकर उनका समायोजन निरस्त कर दिया ।
चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि यूपी बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है ।
शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण मामला NCTE पर छोड़ दिया ।
जब सुनवायी चल रही थी तो विजय राज भाई ने कहा कि राहुल भाई इलाहाबाद BSA का काउंटर चीफ साहब को दिखाया जाये तो मैंने कहा कि आप धैर्य रखें दुनिया का सर्वोच्च विद्वान के यहाँ सुनवाई हो रही है, अंत में सत्य खोज लेंगे ।
अंततः चीफ साहब ने संविदाकर्मी बताकर ही समायोजन निरस्त किया ।
ऑनलाइन वर्क में मैं थोड़ा कमजोर हूँ इसलिए श्याम देव मिश्र द्वारा खोजी गयी उमादेवी की नजीर को राजेश राव से मैंने मुकदमे में जिस तरह लिखाया था , चीफ साहब ने उसी शब्दों में आर्डर में उसे लिखाया है ।
शिक्षामित्र/सरकार सुप्रीम कोर्ट गये जहाँ पर उनको दिनांक 7.12.2015 को बीएड के 1100 याचियों को नियुक्ति देने की शर्त पर स्थगन मिला ।
मामला अभी पेंडिंग है ।
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मेरी टीम के संरक्षक विजयराज सिंह का चयन प्रथम चरण में शिक्षामित्र पद पर हो जाता।
मेरिट में वो टॉप पर थे परंतु उनकी उम्र दो वर्ष अधिक थी ।
इसलिए उन्होंने हाई कोर्ट से बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में आरक्षित वर्ग के लिए मिली उम्र की छूट के तहत छूट मांगी ।
BSA इलाहाबाद ने काउंटर लगाया कि शिक्षामित्रों का चयन बेसिक शिक्षा नियमावली से नहीं हुआ है , इनका चयन मात्र संविदा कर्मी के रूप में 11 महीने के लिए हुआ है अतः आरक्षण की बात लागू नहीं होगी ।
इस प्रकार विजय राज भाई शिक्षामित्र नहीं बन सके ।
RTE एक्ट लागू होने के बाद शिक्षामित्र योजना बंद कर दी गयी ।
इस प्रकार शिक्षामित्र अध्यापक नहीं थे मगर दिनांक 4 जनवरी 2011 को उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भारी कमी दिखाकर शिक्षामित्रों को कार्यरत शिक्षक बताकर NCTE से सरकार ने शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण हेतु इजाजत मांगी तथा दिनांक 14 जनवरी 2011 को इजाजत मिल गयी ।
जबकि दिनांक 23 अगस्त 2010 को भारत सरकार के राजपत्र से बीएड वालों को नियुक्ति की छूट मिल गयी थी मगर राज्य सरकार ने बीएड बेरोजगारों की अनदेखी कर दी ।
यदि सरकार ने शिक्षामित्रों की बजाय बीएड पर दांव लगाया होता तो उसके लिए अधिक श्रेयष्कर होता ।
प्रशिक्षण के विरुद्ध बीएड वाले हाई कोर्ट गये और स्थगन मिल गया परंतु खंडपीठ ने यह कहकर स्थगन हटा दिया कि यदि ये कार्यरत शिक्षक नहीं होंगे तो इनका प्रशिक्षण याचिका के अंतिम निर्णय के आधीन रहेगा अर्थात निरस्त होगा ।
प्रशिक्षण के बाद वर्ष 2014 एवं 2015 में दो चरणों में लगभग 1.37 लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन हुआ।
समायोजन के लिए राज्य सरकार ने राज्य के बाल शिक्षा अधिकार कानून 2011 में प्रथम संशोधन करके शिक्षामित्रों को बगैर टीइटी के ही नियुक्त करने का नियम बनाया और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में 19वां संशोधन करके रूल 16 में उप क्लॉज़ जोड़ा और रूल 8 में शिक्षामित्र योग्यता को स्थान दिया ।
बीएड और बीटीसी बेरोजगारों ने समायोजन को चुनौती दी ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ० DY चंद्रचूड ने दोनों संशोधन रद्द कर दिया और शिक्षामित्रों को संविदाकर्मी बताकर उनका समायोजन निरस्त कर दिया ।
चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि यूपी बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है ।
शिक्षामित्रों का प्रशिक्षण मामला NCTE पर छोड़ दिया ।
जब सुनवायी चल रही थी तो विजय राज भाई ने कहा कि राहुल भाई इलाहाबाद BSA का काउंटर चीफ साहब को दिखाया जाये तो मैंने कहा कि आप धैर्य रखें दुनिया का सर्वोच्च विद्वान के यहाँ सुनवाई हो रही है, अंत में सत्य खोज लेंगे ।
अंततः चीफ साहब ने संविदाकर्मी बताकर ही समायोजन निरस्त किया ।
ऑनलाइन वर्क में मैं थोड़ा कमजोर हूँ इसलिए श्याम देव मिश्र द्वारा खोजी गयी उमादेवी की नजीर को राजेश राव से मैंने मुकदमे में जिस तरह लिखाया था , चीफ साहब ने उसी शब्दों में आर्डर में उसे लिखाया है ।
शिक्षामित्र/सरकार सुप्रीम कोर्ट गये जहाँ पर उनको दिनांक 7.12.2015 को बीएड के 1100 याचियों को नियुक्ति देने की शर्त पर स्थगन मिला ।
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