साथियों नमस्कार , आज के घटनाक्रम का विश्लेषण असमायोजित की कलम से। जैसा की सब जानते है कि आज डेट फ़ाइनल डिस्पोज के लिए लगा था।
आखिर सरकार ने जुलाई में डेट लगाने की माँग क्यो की?
सरकार को इससे क्या लाभ होने वाला था?
आखिर क्यों बड़े बड़े संगठनों ने पहले ही जानकर बड़े बड़े अधिवक्ताओं को क्यों नही खड़ा किया?
क्या वो जानते थे कि डेट बढ़ेगी?
या उनको अपनी नौकरी की चिंता नही थी?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर भी इन्ही में छुपे हुए है।
संगठनों ने चंदा लेने के लिए कल तक सुनवाई का हौवा बनाया। जबकि इन लोगो की प्लानिंग पहले से ही निश्चित थी कि सरकारी वकील को थोड़ा सा सुविधा शुल्क देके नई सरकार बनने का बहाना बनाकर डेट लेने के लिए सहमत कर लिया जायेगा। और हुआ भी यही।
ये तो कहो भला हो विपक्ष के वकीलों का जिनके शोर शराबे के कारण डेट 15 दिन बाद की मिल गयी।
लेकिन साथियों ये आज से ही भीतर खाने इस प्रयास में जुट गये है कि अब कौन सा हथकंडा अपनाकर जुलाई की डेट ली जाये। आज की डेट के 50 50 लाख सबके बन गये। 26 अप्रैल को भी इतना ही अंदर करेंगे।
इन दुष्टो की चालों को जानकर भी हम क्यों अनजान है।
साथियों बिना करे किसी को कुछ नही मिलता है। cm से मुलाकात करके क्या मानदेय बढ़ जायेगा। एक मिनट की मुलाकात में मानदेय वृद्धि कैसे हो सकती है। बिना प्रयास के सुनवाई कैसे हो सकती है?
ये तो बहुत जल्दी समझने वाली बाते है फिर भी हम समझ नही पाते है।
साथियों एक धरना अनिश्चित कालीन लगाया जाये। हर साथी को उसमे ढाई मीटर कफन का कपड़ा लेके चलना है। और उसी को ओढ़ के धरना स्थल पर लेट जाना है। वैसे भी हम अंदर से मृत हो चुके है वही बाहर से भी प्रदर्शित करना है। इमेजिन करिये वो दृश्य जब धरना स्थल पर चारों तरफ मुर्दे की शक्ल में अनगिनत शिक्षामित्र कफ़न ओढ़े लेटे होगे। क्या उस ह्रदय विदारक दृश्य को मिडिया कवर नही देगा। क्या मिडिया में आप ही आप नही होगे। cm pm जज किस तक मीडिया के माध्यम से आपकी पीड़ा नही पहुचेगी। और अगर पहुचेगी तो भी क्या डेट पे डेट बढ़ाने का काम हो पायेगा। क्या मानदेय वृद्धि में देरी कर सकेगे।
साथियों अगर जीतना है हक पाना है तो कुछ विशेष करना ही पड़ेगा।
वर्ना कई साल तक ऐसे ही घुट घुट कर मरना पड़ेगा। समायोजित लोग भी आपको ऐसे ही चिढाते रहेंगे।
साथ ही जो साथी गाजियाबाद हापुड़ के है वो राहुल गाँधी से मुलाकात करे जो आसानी से हो सकती है। क्योकि वो विपक्ष में है और उनको इस वक़्त जनशक्ति की जरूरत है। वो कहते है न डूबते को तिनके का सहारा। राहुल भी डूब रहे है उनको 32000तिनके का सहारा ही लगेगा। आप राहुल से मिलकर बस राष्टपति से मिलने की मांग करे। ये काम राहुल के लिए मुश्किल भी नही है। उनके माध्यम से राष्ट्रपति में अगर एक बार मुलाकात हो गयी तो केश को फ़ाइनल डिस्पोज से कोई नही रोक सकता।
सभी अवशेष जाग जाये धरने के लिए। सब अपने आप में सक्षम है।जीत निश्चित ही होगी।
जय सीताराम
सुशील शुक्ल
जितेन्द्र वर्मा
मोहित तिवारी
उमेश पाण्डेय
शैलेन्द्र वर्मा
राजेश शुक्ल
संदीप बाजपेयी
सिद्धार्थ सिंह
एवं सभी मेरे स्नेही साथी शिक्षामित्र
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आखिर सरकार ने जुलाई में डेट लगाने की माँग क्यो की?
सरकार को इससे क्या लाभ होने वाला था?
आखिर क्यों बड़े बड़े संगठनों ने पहले ही जानकर बड़े बड़े अधिवक्ताओं को क्यों नही खड़ा किया?
क्या वो जानते थे कि डेट बढ़ेगी?
या उनको अपनी नौकरी की चिंता नही थी?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर भी इन्ही में छुपे हुए है।
संगठनों ने चंदा लेने के लिए कल तक सुनवाई का हौवा बनाया। जबकि इन लोगो की प्लानिंग पहले से ही निश्चित थी कि सरकारी वकील को थोड़ा सा सुविधा शुल्क देके नई सरकार बनने का बहाना बनाकर डेट लेने के लिए सहमत कर लिया जायेगा। और हुआ भी यही।
ये तो कहो भला हो विपक्ष के वकीलों का जिनके शोर शराबे के कारण डेट 15 दिन बाद की मिल गयी।
लेकिन साथियों ये आज से ही भीतर खाने इस प्रयास में जुट गये है कि अब कौन सा हथकंडा अपनाकर जुलाई की डेट ली जाये। आज की डेट के 50 50 लाख सबके बन गये। 26 अप्रैल को भी इतना ही अंदर करेंगे।
इन दुष्टो की चालों को जानकर भी हम क्यों अनजान है।
साथियों बिना करे किसी को कुछ नही मिलता है। cm से मुलाकात करके क्या मानदेय बढ़ जायेगा। एक मिनट की मुलाकात में मानदेय वृद्धि कैसे हो सकती है। बिना प्रयास के सुनवाई कैसे हो सकती है?
ये तो बहुत जल्दी समझने वाली बाते है फिर भी हम समझ नही पाते है।
साथियों एक धरना अनिश्चित कालीन लगाया जाये। हर साथी को उसमे ढाई मीटर कफन का कपड़ा लेके चलना है। और उसी को ओढ़ के धरना स्थल पर लेट जाना है। वैसे भी हम अंदर से मृत हो चुके है वही बाहर से भी प्रदर्शित करना है। इमेजिन करिये वो दृश्य जब धरना स्थल पर चारों तरफ मुर्दे की शक्ल में अनगिनत शिक्षामित्र कफ़न ओढ़े लेटे होगे। क्या उस ह्रदय विदारक दृश्य को मिडिया कवर नही देगा। क्या मिडिया में आप ही आप नही होगे। cm pm जज किस तक मीडिया के माध्यम से आपकी पीड़ा नही पहुचेगी। और अगर पहुचेगी तो भी क्या डेट पे डेट बढ़ाने का काम हो पायेगा। क्या मानदेय वृद्धि में देरी कर सकेगे।
साथियों अगर जीतना है हक पाना है तो कुछ विशेष करना ही पड़ेगा।
वर्ना कई साल तक ऐसे ही घुट घुट कर मरना पड़ेगा। समायोजित लोग भी आपको ऐसे ही चिढाते रहेंगे।
साथ ही जो साथी गाजियाबाद हापुड़ के है वो राहुल गाँधी से मुलाकात करे जो आसानी से हो सकती है। क्योकि वो विपक्ष में है और उनको इस वक़्त जनशक्ति की जरूरत है। वो कहते है न डूबते को तिनके का सहारा। राहुल भी डूब रहे है उनको 32000तिनके का सहारा ही लगेगा। आप राहुल से मिलकर बस राष्टपति से मिलने की मांग करे। ये काम राहुल के लिए मुश्किल भी नही है। उनके माध्यम से राष्ट्रपति में अगर एक बार मुलाकात हो गयी तो केश को फ़ाइनल डिस्पोज से कोई नही रोक सकता।
सभी अवशेष जाग जाये धरने के लिए। सब अपने आप में सक्षम है।जीत निश्चित ही होगी।
जय सीताराम
सुशील शुक्ल
जितेन्द्र वर्मा
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