प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का बने विकल्प, जानिए शिक्षामित्रों का कब क्या हुआ

इलाहाबाद : सूबे के बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में शिक्षकों की बड़े पैमाने पर कमी रही है। शिक्षकों के विकल्प के रूप में शिक्षामित्रों को प्रदेश सरकार ने तैनाती दी थी। 1999 में पहली बार बेसिक शिक्षामित्र के रूप में नियुक्त शिक्षामित्र के प्रयोग को सर्व शिक्षा अभियान लागू होने पर विस्तार मिला।
सत्रवार संविदा शिक्षक के रूप में तैनाती पाने वाले शिक्षामित्र आगे चलकर सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित हुए।
प्रदेश सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में उप-शिक्षक यानी पैरा टीचर रखे। इन्हें पूर्ण शिक्षकों के बराबर वेतन नहीं दिया गया और इनकी नियुक्ति संविदा के आधार पर सत्रवार होती रही। ऐसा नहीं है कि प्रदेश सरकार ने ही यह नूतन प्रयोग किया था, बल्कि देश के अन्य प्रदेशों महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश आदि में भी इस तरह के उप-शिक्षकों की नियुक्ति की जा चुकी है। 2001 में सर्व शिक्षा अभियान लागू होने पर केंद्र सरकार ने 65 तथा राज्य सरकार ने 35 फीसद धन का सहयोग करके प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करने की योजना बनाई और बड़े पैमाने पर संविदा पर शिक्षक रखे गए।
गांव के शिक्षितों को मिला मौका : शिक्षामित्रों की नियुक्ति में यह ध्यान दिया गया कि विद्यालय जिस गांव में हो उसी गांव का शिक्षित युवा वहां के विद्यालय में 11 माह के शिक्षा सत्र के लिए तैनाती मिले। इसके लिए ग्राम शिक्षा समिति के प्रस्ताव पर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समित के माध्यम से चयन कर उसे नियुक्ति देने का प्रावधान किया गया। नियुक्ति के पहले चयनित संविदा शिक्षकों को एक माह के आवासीय प्रशिक्षण को संबंधित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण दिलाने का इंतजाम भी किया गया।

पहले 2250 फिर 3500 मानदेय : शिक्षामित्रों की न्यूनतम योग्यता इंटरमीडिएट रखी गई लेकिन, चयन में बीएड को वरीयता दी गई। इनको कोई भी विशेष अवकाश दिये जाने का नियम नहीं था, साथ ही प्रति माह इस कार्य के लिए पहले 2250 रुपये मानदेय दिया जाता रहा। इनकी सेवाओं से प्रभावित होकर राज्य सरकार ने 2006 में बढ़ाकर 3500 रुपये प्रति माह मानदेय देना शुरू किया।

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