राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : परिषदीय स्कूलों के शिक्षामित्रों का समायोजन हाईकोर्ट से रद होने के बाद एनसीटीई यानी राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने टीईटी को शिक्षामित्रों के लिए अनिवार्य नहीं बताया था, लेकिन शीर्ष कोर्ट में इसकी पैरोकारी कर दी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 सितंबर 2015 को शिक्षामित्रों का समायोजन रद करने का निर्णय सुनाया था। इसमें कहा गया था कि बिना टीईटी उत्तीर्ण किए उम्मीदवार को शिक्षक नियुक्त नहीं किया जा सकता। उसके बाद अक्टूबर माह में एनसीटीई ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट किया कि 2010 से पहले नियुक्त हुए शिक्षक और शिक्षामित्रों को सेवारत शिक्षक की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता नहीं है।
हालांकि एनसीटीई ने यह भी कहा कि टीईटी के मुद्दे पर केंद्र अपने रुख पर कायम है और इस मामले में आगे सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करेगा। ज्ञात हो कि एनसीटीई के नियमों के तहत ऐसे शिक्षकों को पांच साल के भीतर पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है।
26 मई 1999 : प्राथमिक स्कूलों में 11 महीने की संविदा पर शिक्षामित्रों को रखने की शुरुआत। 4 अगस्त 2009 : शिक्षा का अधिकार कानून लागू। अप्रशिक्षित शिक्षकों के पढ़ाने पर रोक।
2 जून 2010 : शिक्षामित्रों की नियुक्ति पर रोक लगी।
11 जुलाई 2011 : तत्कालीन बसपा सरकार ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ विधि से बीटीसी का दो वर्षीय प्रशिक्षण देने का फैसला किया।
19 जून 2014 : तत्कालीन सपा सरकार ने 58 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन का आदेश जारी किया
8 अप्रैल 2015 : दूसरे चरण में 90 हजार शिक्षामित्रों के समायोजन के आदेश जारी।
12 सितम्बर 2015 : हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन को अवैध ठहराते हुए रद किया।
7 दिसंबर 2015 : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले व बचे शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगाई।
25 जुलाई 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद किया। शिक्षामित्र तत्काल नहीं हटाए जाएंगे।
आरटीई लागू होने पर समायोजन
2009 में आरटीई लागू होने पर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों को एनसीटीई से अनुमति लेकर दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रशिक्षित कर एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित किया था।
एक सीमा में ही मिलेगा वेटेज
शीर्ष कोर्ट ने शिक्षामित्रों को आयु में छूट व अनुभव का वेटेज यानी भारांक देने का दायित्व प्रदेश सरकार पर छोड़ा है, लेकिन वेटेज अंक भी एक सीमा पर रहकर ही दिए जा सकेंगे, ताकि डीएलएड के योग्य अभ्यर्थी शिक्षामित्रों से प्रतियोगिता कर सकें। अधिक वेटेज देने पर उसे भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। शीर्ष कोर्ट हिमाचल प्रदेश के एक मामले में अधिक वेटेज पर शिक्षक भर्ती रद कर चुका है।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 सितंबर 2015 को शिक्षामित्रों का समायोजन रद करने का निर्णय सुनाया था। इसमें कहा गया था कि बिना टीईटी उत्तीर्ण किए उम्मीदवार को शिक्षक नियुक्त नहीं किया जा सकता। उसके बाद अक्टूबर माह में एनसीटीई ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट किया कि 2010 से पहले नियुक्त हुए शिक्षक और शिक्षामित्रों को सेवारत शिक्षक की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता नहीं है।
हालांकि एनसीटीई ने यह भी कहा कि टीईटी के मुद्दे पर केंद्र अपने रुख पर कायम है और इस मामले में आगे सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करेगा। ज्ञात हो कि एनसीटीई के नियमों के तहत ऐसे शिक्षकों को पांच साल के भीतर पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है।
26 मई 1999 : प्राथमिक स्कूलों में 11 महीने की संविदा पर शिक्षामित्रों को रखने की शुरुआत। 4 अगस्त 2009 : शिक्षा का अधिकार कानून लागू। अप्रशिक्षित शिक्षकों के पढ़ाने पर रोक।
2 जून 2010 : शिक्षामित्रों की नियुक्ति पर रोक लगी।
11 जुलाई 2011 : तत्कालीन बसपा सरकार ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ विधि से बीटीसी का दो वर्षीय प्रशिक्षण देने का फैसला किया।
19 जून 2014 : तत्कालीन सपा सरकार ने 58 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन का आदेश जारी किया
8 अप्रैल 2015 : दूसरे चरण में 90 हजार शिक्षामित्रों के समायोजन के आदेश जारी।
12 सितम्बर 2015 : हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों के समायोजन को अवैध ठहराते हुए रद किया।
7 दिसंबर 2015 : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले व बचे शिक्षामित्रों के समायोजन पर रोक लगाई।
25 जुलाई 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद किया। शिक्षामित्र तत्काल नहीं हटाए जाएंगे।
आरटीई लागू होने पर समायोजन
2009 में आरटीई लागू होने पर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों को एनसीटीई से अनुमति लेकर दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रशिक्षित कर एक लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित किया था।
एक सीमा में ही मिलेगा वेटेज
शीर्ष कोर्ट ने शिक्षामित्रों को आयु में छूट व अनुभव का वेटेज यानी भारांक देने का दायित्व प्रदेश सरकार पर छोड़ा है, लेकिन वेटेज अंक भी एक सीमा पर रहकर ही दिए जा सकेंगे, ताकि डीएलएड के योग्य अभ्यर्थी शिक्षामित्रों से प्रतियोगिता कर सकें। अधिक वेटेज देने पर उसे भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। शीर्ष कोर्ट हिमाचल प्रदेश के एक मामले में अधिक वेटेज पर शिक्षक भर्ती रद कर चुका है।
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