*रिव्यू याचिका पर किसी भी पार्टी का कोई भी अधिवक्ता बहस नहीं करता। यदि जजो को रिव्यू में लगता है केस की सुनवाई पुनः होनी चाहिए तो वही केस पुनः सुनवाई को सूची बद्द होते है। और जो लोग रिव्यू में याची बनकर लाभ की बात सोच रहे है!
अथवा रिव्यू डालने से स्टे मिलने की संभावना जता रहे तो ऐसा संभव नहीं है क्योंकि रिव्यू याचिका का उद्देश्य सिर्फ केस की पुनः सुनवाई का होता है और यदि रिव्यू स्वीकार होती है तो उसके बाद रिव्यू याचिका में बने याचियों अथवा स्टे का कोई मतलब नहीं क्योकि पुनः सुनवाई में सिर्फ वही केस सूची बद्द होंगे जो आदेश आने के पूर्व थे।इसलिए अगर आप रिव्यू में अपना नाम याची लाभ के लिए डाल रहे तो वो अर्थहीन होगा।*
*इसके साथ ही क्यूरेटिव याचिका पर पांच न्यायाधीशों की पीठ विचार करती है जिसमें दो न्यायाधीश मूल फैसला देने वाली पीठ के होते हैं जबकि तीन न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश सहित सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं। क्यूरेटिव पर भी चैम्बर में सर्कुलेशन के जरिए विचार होता है। बहुत महत्वपूर्ण पाये जाने पर ही खुली अदालत में सुनवाई होती है। क्यूरेटिव के मानक भी तय हैं। इसमें भी याची लाभ की कोई सम्भावना नहीं है। यदि क्यूरेटिव में जजो को लगेगा की केस की सुनवाई पुनः होनी चाहिए तो पुनः वही केस जो आदेश आने के पूर्व फाईल हुए थे उन्ही को सुनवाई हेतु उन्ही जजो के सामने सूचीबद्ध किया जाएगा जिन्होंने आदेश दिया।*
*रिव्यू अथवा क्यूरेटिव याचिका के कुछ नियम-*
*1- यदि क्यूरेटिव याचिका में जिन प्रश्नों पर बहस हो चुकी है वही लिखी जायेगी तो ये ख़ारिज कर दी जाती है।*
*2- क्यूरेटिव याचिका में सर्वप्रथम यही देखा जाता है की उसमे उठाये गए प्रश्नों पर हाइकोर्ट में सुनवाई की गई थी।*
*3- यदि क्यूरेटिव याचिकाकर्ता हाइकोर्ट को बाईपास कर आया है यानि वो उक्त मामले में आप हाइकोर्ट में पार्टी थे तभी क्यूरेटिव पर विचार होगा यदि ऐसा नहीं तब भी क्यूरेटिव ख़ारिज होगी।*
*4- आर्टिकल- 32 में गई हुई याचिका पर क्यूरेटिव में विचार नहीं होता। जो भी लोग रिव्यू या क्यूरेटिव की बात कर रहे है और जो लोग इसमें सहयोग करना चाह रहे है वो लोग उक्त बातो को सुनिश्चित करने के बाद ही सहयोग करे। और रिव्यू और क्यूरेटिव पर बड़ा वकील खड़ा करने के नाम पर सहयोग न करे।*
*5- रिव्यू अथवा क्यूरेटिव डालने से पूर्व कोर्ट के आर्डर का परीक्षण न्याय विभाग अथवा बरिष्टतम अधिवक्ताओं से कराया जाता है और जब उसमे कुछ लाभ मिलने की गुन्जाइस मिले तभी डालना हितकर होगा! अन्यथा सिर्फ समय बर्बाद करना है!*
*6- सरकार ने शिक्षा मित्रों के कोर्ट आर्डर का परीक्षण करा लिया है! जिसमे अब कोर्ट से राहत मिलने की कोई पुष्टि नही हुई है! अब जो करना है वह सरकार पर ही निर्भर है इसलिए जो लोग रिव्यू की बात कर रहे है वह ध्यान भटकाने व धरने से भाग रहे है!!*
*अनिरूद्ध प्रताप सिहं*
*(बरिष्ठ अधिवक्ता)*
*हाईकोर्ट बेन्च लखनऊ*
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अथवा रिव्यू डालने से स्टे मिलने की संभावना जता रहे तो ऐसा संभव नहीं है क्योंकि रिव्यू याचिका का उद्देश्य सिर्फ केस की पुनः सुनवाई का होता है और यदि रिव्यू स्वीकार होती है तो उसके बाद रिव्यू याचिका में बने याचियों अथवा स्टे का कोई मतलब नहीं क्योकि पुनः सुनवाई में सिर्फ वही केस सूची बद्द होंगे जो आदेश आने के पूर्व थे।इसलिए अगर आप रिव्यू में अपना नाम याची लाभ के लिए डाल रहे तो वो अर्थहीन होगा।*
*इसके साथ ही क्यूरेटिव याचिका पर पांच न्यायाधीशों की पीठ विचार करती है जिसमें दो न्यायाधीश मूल फैसला देने वाली पीठ के होते हैं जबकि तीन न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश सहित सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं। क्यूरेटिव पर भी चैम्बर में सर्कुलेशन के जरिए विचार होता है। बहुत महत्वपूर्ण पाये जाने पर ही खुली अदालत में सुनवाई होती है। क्यूरेटिव के मानक भी तय हैं। इसमें भी याची लाभ की कोई सम्भावना नहीं है। यदि क्यूरेटिव में जजो को लगेगा की केस की सुनवाई पुनः होनी चाहिए तो पुनः वही केस जो आदेश आने के पूर्व फाईल हुए थे उन्ही को सुनवाई हेतु उन्ही जजो के सामने सूचीबद्ध किया जाएगा जिन्होंने आदेश दिया।*
*रिव्यू अथवा क्यूरेटिव याचिका के कुछ नियम-*
*1- यदि क्यूरेटिव याचिका में जिन प्रश्नों पर बहस हो चुकी है वही लिखी जायेगी तो ये ख़ारिज कर दी जाती है।*
*2- क्यूरेटिव याचिका में सर्वप्रथम यही देखा जाता है की उसमे उठाये गए प्रश्नों पर हाइकोर्ट में सुनवाई की गई थी।*
*3- यदि क्यूरेटिव याचिकाकर्ता हाइकोर्ट को बाईपास कर आया है यानि वो उक्त मामले में आप हाइकोर्ट में पार्टी थे तभी क्यूरेटिव पर विचार होगा यदि ऐसा नहीं तब भी क्यूरेटिव ख़ारिज होगी।*
*4- आर्टिकल- 32 में गई हुई याचिका पर क्यूरेटिव में विचार नहीं होता। जो भी लोग रिव्यू या क्यूरेटिव की बात कर रहे है और जो लोग इसमें सहयोग करना चाह रहे है वो लोग उक्त बातो को सुनिश्चित करने के बाद ही सहयोग करे। और रिव्यू और क्यूरेटिव पर बड़ा वकील खड़ा करने के नाम पर सहयोग न करे।*
*5- रिव्यू अथवा क्यूरेटिव डालने से पूर्व कोर्ट के आर्डर का परीक्षण न्याय विभाग अथवा बरिष्टतम अधिवक्ताओं से कराया जाता है और जब उसमे कुछ लाभ मिलने की गुन्जाइस मिले तभी डालना हितकर होगा! अन्यथा सिर्फ समय बर्बाद करना है!*
*6- सरकार ने शिक्षा मित्रों के कोर्ट आर्डर का परीक्षण करा लिया है! जिसमे अब कोर्ट से राहत मिलने की कोई पुष्टि नही हुई है! अब जो करना है वह सरकार पर ही निर्भर है इसलिए जो लोग रिव्यू की बात कर रहे है वह ध्यान भटकाने व धरने से भाग रहे है!!*
*अनिरूद्ध प्रताप सिहं*
*(बरिष्ठ अधिवक्ता)*
*हाईकोर्ट बेन्च लखनऊ*
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