जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। यूपी के इलाहाबाद में सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ा रही चार शिक्षिकाओं की नौकरी सिर्फ इसलिए बच गई क्योंकि आठ साल से सुप्रीम कोर्ट का स्टे आर्डर लागू था और वे सभी नौकरी कर रहीं थी।
इसे देखते हुए कोर्ट ने उनकी नौकरी में बने रहने देने की मांग स्वीकार कर ली।
गत शुक्रवार को न्यायमूर्ति एके गोयल व न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने शिक्षिकाओं के वकील डीके गर्ग की दलीलें स्वीकार करते हुए उनकी याचिका मंजूर कर ली। पीठ ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का 2009 से रोक आदेश चल रहा है। ये लोग लगातार काम कर रहे हैं। इन्हें कैसे निकाल दें।
यह मामला इलाहाबाद उंचा मंडी स्थित महिला उद्योग मंदिर जूनियर हाईस्कूल की चार शिक्षिकाओं की नियुक्ति का था। नियुक्ति के समय स्कूल में मैनेजमेंट को लेकर चल रहे विवाद के आधार पर 28 सितंबर 2000 को डिप्टी डायरेक्टर एजूकेशन (बेसिक) इलाहाबाद ने टीचरों की नियुक्ति और मंजूरी अस्वीकार कर दी थी। शिक्षिकाओं ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 10 अक्टूबर 2005 को डिप्टी डायरेक्टर एजूकेशन का नियुक्तियां अस्वीकार करने का आदेश निरस्त कर दिया। लेकिन स्कूल मैनेजमेंट ने एकलपीठ के आदेश को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने चुनौती दी।
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 2009 में एकलपीठ का आदेश रद करते हुए कहा कि नियुक्ति के समय शिक्षिकाएं प्राथमिक स्कूल मे पढ़ाने की जरूरी योग्यता बीटीसी नही रखतीं थी। खंडपीठ ने उनकी नियुक्ति रद करने के आदेश को सही ठहराया। जिसके खिलाफ शिक्षिकाएं सुप्रीम कोर्ट पहंुची। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए शुरुआत में ही हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी जिसके चलते शिक्षिकाएं नौकरी में बनीं रहीं थीं। गत शुक्रवार को जब मामला फिर सुनवाई पर आया तो कोर्ट ने आठ साल से लागू स्टे आर्डर और याचिकाकर्ताओं के लगातार नौकरी में रहने को देखते हुए याचिकाएं स्वीकार कर लीं। शिक्षिकाओं की ओर से नौकरी में बने रहने की दलील में कहा गया था कि वे लोग बीए बीएड और एमए बीएड हैं उनके पास पढ़ाने की जरूरी योग्यता है। इसके अलावा 2008 में नियम भी संशोधित हो गए हैं इसलिए उन्हें नौकरी में बना रहने दिया जाये।sponsored links:
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