शिक्षकों व संसाधनों की कमी में जकड़ी 'शिक्षा' : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Latest updates

लखीमपुर : संचार क्रांति के युग में माध्यमिक शिक्षा परिषद के राजकीय इंटर कॉलेज शिक्षक, विषय विशेषज्ञ, अत्याधुनिक शैक्षणिक संसाधन, ऑडियो-वीडियो, इंटरनेट व अन्य संचार माध्यम जैसे संसाधनों से महरूम हैं। स्कूलों में एलटी ग्रेड शिक्षक व प्रवक्ताओं की तैनाती पदों से 70 फीसद ही है। ऐसे में राजकीय स्कूलों में होने वाली पढ़ाई सवालों के घेरे में है।
छात्र-छात्राओं के लिए शिक्षकों व भौतिक संसाधन के मुकम्मल इंतजाम नहीं हैं। पेश है दैनिक जागरण की रिपोर्ट..
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राजकीय इंटर कॉलेज लखीमपुर में वर्तमान समय में 15 एलटी ग्रेड के शिक्षक और महज एक प्रवक्ता ही शिक्षण कार्य कर रहे हैं। इस शैक्षिक-सत्र में स्कूल में 1171 छात्रों के प्रवेश हैं। शासन द्वारा कक्षा छह से 12 तक के इस स्कूल में 25 एलटी ग्रेड शिक्षक और 16 प्रवक्ताओं के पद सृजित हैं। इस प्रकार से स्कूल में इस वक्त 25 शिक्षकों की कमी है। इतना ही नहीं चार लिपिकों की आवश्यकता है जबकि तीन लिपिक ही कार्यरत हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 11 पदों का सृजन है और इसके एवज में 5 कर्मचारी ही तैनात हैं। स्कूल में विषय विशेषज्ञ नहीं हैं, रसायन और भौतिकी की प्रयोगशाला में भी आवश्यक वस्तुएं नहीं हैं। पानी के लिए सरकारी हैंडपंप लगे हैं, लेकिन आज तक पानी की टंकी या फिर आरओ नहीं लग सका है। जहां बल्ब या फिर राड नहीं लगे हैं वहां कमरों के रोशनदान से होने वाले उजाले से ही पढ़ाई हो रही है। पुस्तकालय में किताबों की कमी है, जो किताबें हैं वह बहुत ही पुरानी हैं। पुस्तकालय में नये लेखकों की एक भी पुस्तकें नहीं हैं। शिक्षकों व संसाधनों के आभाव में शैक्षिक कार्य काफी प्रभावित हो रहा है। स्कूलों में कंप्यूटरों की कमी के कारण कंप्यूटर शिक्षा भी प्रभावित होती है। स्कूल के पास खेल का बड़ा मैदान और खेल शिक्षक हैं, लेकिन खेल सामग्री नहीं है।
प्रधानाचार्य डॉ. आरके जायसवाल ने बताया कि स्कूल में प्रवेश का कोई मानक नहीं है। जो छात्र प्रवेश से वंचित रह जाएगा उसका भी प्रवेश लिया जाएगा। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए शासन स्तर से प्रक्रिया चल रही है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षण कार्य कुछ प्रभावित होता है, भौतिक संसाधन की स्कूल में कमी नहीं है। वर्ष 2014-15 में स्कूल का रिजल्ट 93 प्रतिशत और 2015-16 में 89 प्रतिशत रिजल्ट रहा है। पांच सालों में स्कूल का रिजल्ट 85 से 95 फीसदी के बीच रहा है।
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राजकीय कन्या इंटर कॉलेज लखीमपुर
शासन की गाइड लाइन के मुताबिक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज में 13 प्रवक्ताओं के पद सृजित हैं, लेकिन नौ प्रवक्ता ही सैंकड़ों बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। कालेज में नौ बीटीसी शिक्षकों की आवश्यकता है जबकि एक ही बीटीसी शिक्षक स्कूल में कार्यरत है। 25 एलटी ग्रेड के शिक्षकों के स्थान पर केवल 15 शिक्षक की शैक्षणिक कार्य में लगे हैं। कुल मिलाकर इस वक्त स्कूल में 22 शिक्षकों की कमी है। शिक्षकों, विषय विशेषज्ञ शिक्षक व अत्याधुनिक शैक्षणिक संसाधन की कमी स्कूल की पढ़ाई पर सवालिया निशान लगा रहा है। स्कूल में लिपिक वर्ग व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद भी रिक्त हैं। राजकीय कन्या इंटर कॉलेज में इस वक्त 1800 छात्राओं के प्रवेश हैं। कक्षा-कक्ष में 40 से 50 छात्राओं के बैठने की व्यवस्था है जबकि कक्षा में सौ से अधिक छात्राओं को बैठाया जा रहा है। सीट व बेंच न होने के कारण स्कूल में रोजाना छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं कॉलेज में खेल का मैदान ही नहीं है। इसकारण छात्राएं आउट डोर खेलों से महरूम है। स्कूल में पुस्तकालय और कंप्यूटर लैब की सुविधा नहीं है। शिक्षकों व छात्रों ने स्वयं की बुक बैंक बना रखी है। स्कूल में भौतिकी व रासायन की प्रयोगशाला है, जहां आवश्यक सामग्री का टोटा है।
राजकीय कन्या इंटर कॉल ज की प्रधानाचार्या शालिनी दुबे ने बताया कि स्कूल में कक्षा 1 से 12 तक पढ़ाई होती है। इसमें कक्षा एक से 8 तक निश्शुल्क शिक्षा है और 9 से 12 तक छात्राओं को फीस देनी होती है। उन्होंने बताया कि कक्षा 12 की वार्षिक फीस 417 रुपये है। उन्होंने बताया कि कक्षा-कक्ष में छात्राओं को बैठाना एक बड़ी चुनौती होती है। शिक्षकों की कमी से पढ़ाई कुछ हद तक प्रभावित होती है, लेकिन पांच सालों में लगातर स्कूल का रिजल्ट सुधर रहा है। वर्ष 2014-15 में स्कूल का रिजल्ट 90 प्रतिशत और 2015-16 में 95 प्रतिशत रिजल्ट था।
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स्कूलों में बढ़ने चाहिए शिक्षक व संसाधन
शाहपुरा कोठी निवासी दवा व्यापारी सुबोध वैश्य कहते हैं सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। अभिभावक सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं। पाइप फैक्ट्री के मालिक अभय ¨सह ने बताया कि राजकीय स्कूलों में साफ-सुथरा महौल नहीं है। शिक्षक पढ़ाई में ध्यान नहीं देते हैं। इसके कारण अभिभावक बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सरकारी स्कूलों में न भेजकर कांवेंट स्कूल में भेजते हैं। शिव कॉलोनी निवासी इंजीनियर कपिल पांडेय कहते हैं कि उन्होंने सरकारी स्कूल से ही पढ़ाई पूरी की है। उस वक्त पढ़ाई का माहौल अच्छा था, लेकिन अब स्कूलों का महौल खराब हो चुका है। मेला मैदान निवासी बृजेश कुमार कहते हैं कि इस वक्त समाज बहुत हाइटेक हो चुका है। लोग बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में शिक्षा देना बेहतर समझते हैं। राजकीय स्कूलों में बच्चों को अंग्रेजी ज्ञान नहीं मिलता है, इसके कारण एमबीए, डॉक्टरी और इंजीनिय¨रग की पढ़ाई में समस्या खड़ी होती है। शास्त्रीनगर मुहल्ला निवासी संजीव कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि इन स्कूलों में अधिकांश मध्यम व कमजोर वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को भेजते हैं। इसके कारण इन स्कूलों का स्तर नहीं सुधर रहा है। इन स्कूलों का स्तर सुधर जाए तो मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे की भी उच्च शिक्षा की राह आसान हो जाएगी। अस्पताल रोड निवासी डॉ. रमेश चंद्र शर्मा कहते हैं कि सरकार को स्कूलों में संसाधन व शिक्षकों का स्टॉफ बढ़ाना चाहिए। अधिवक्ता योगेश सक्सेना ने बताया कि कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया है अब सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरनी चाहिए। इसमें नौकरशाह व जनप्रतिनिधियों के बच्चे पढ़ने लगेंगे तो जल्द ही सबकुछ सही हो जाएगा। डॉ. राकेश माथुर ने बताया कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए सही राह नहीं मिल पाती है, इसके कारण कक्षा 12 के बाद इन स्कूलों के बच्चों को काफी कठिनाई होती है। इमली चौहरा निवासी व्यापारी राकेश मिश्र कहते हैं कि जिला विद्यालय निरीक्षक, प्रधानाचार्य और शिक्षकों को अच्छा वेतन मिलता है। इसके बावजूद शैक्षणिक कार्य में रुचि नहीं लेते हैं। इसके कारण सरकारी स्कूलों का स्तर गिर रहा है। बैंक कर्मचारी शवल गुप्ता ने बताया कि शिक्षकों की कमी पूरी हो जाए तो शिक्षा का माहौल बेहतर हो जाएगा। उन्होंने बताया कि जिम्मेदार अफसर अपनी जिम्मेदारी संभाल लें तो भी सरकारी स्कूलों की दशा सुधरने में वक्त नहीं लगेगा।


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