यादव राज से मुक्त नहीं हो सका आयोग : आयोग की भर्तियों में जाती और क्षेत्र
को महत्त्व देने के लगते रहे आरोप , बाबजूद इसके अनिरूद्ध यादव को चेयरमैन
बनाने पर उठे सवाल .हर प्रमुख पदों की तरह उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के
अध्यक्ष पद पर नियुक्ति में भी जाति विशेष को तवज्जो दी गई है।
आयोग की भर्तियाें में जाति विशेष और क्षेत्र को महत्व दिए जाने के लगातार आरोप लगते रहे। अनिल यादव के समय में इसे ‘यादव आयोग’ तक कह दिया गया। इसके बावजूद डॉ.अनिरुद्ध यादव को अध्यक्ष बनाए जाने से कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस समेत कई वरिष्ठ लोगों के आवेदन के बावजूद डॉ.अनिरुद्ध के नाम की संस्तुति से प्रदेश सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
प्रतियोगियों में एक बार फिर आंशका है कि डॉ.अनिरुद्ध यादव अनिल यादव के एजेंडे को ही आगे बढ़ाएंगे। इससे उनमें नाराजगी है और वे इनकी नियुक्ति के खिलाफ भी हाईकोर्ट जाने की तैयारी में लग गए हैं।
अनिल यादव ने 2012 अप्रैल में कार्यभार संभालने के एक महीने बाद ही त्रिस्तरीय आरक्षण का विवादित फैसला लिया था। प्रदेशव्यापी आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप पर यह फैसला वापस हुआ था। अनिल यादव के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में पीसीएस के तीन रिजल्ट घोषित किए गए। इनमें एसडीएम पद पर चयनितों में इस जाति के अभ्यर्थियों का दबदबा रहा। साक्षात्कार में खास जाति के अभ्यर्थियों को अधिक नंबर दिए जाने के आरोप हैं।
लोअर सबऑर्डिनेट, तकनीकी सहायक समेत आयोग की तकरीबन सभी भर्तियों में इस तरह के आरोप लगे। इसको लेकर न्यायालय में याचिका तथा आंदोलनों के बाद अनिल यादव ने रिजल्ट में चयनितों की जाति न घोषित करने का फैसला लिया। फिर भी विवाद नहीं थमा तो सिर्फ रोल नंबर के आधार पर रिजल्ट घोषित करने का फरमान जारी हुआ। इसके अलावा गलत जवाब को सही माने जाने की शिकायत भी आम रही। इन आरोपों के मद्देनजर प्रतियोगियों ने सीबीआई जांच की याचिका दाखिल कर रखी है। इनके अलावा कई रिटायर आईएएस, आईपीसी तथा समाजसेवियों की ओर से भी संयुक्त रूप से सीबीआई मांग की याचिका डाली गई है। इस दौरान ‘यादव आयोग’ के नए धब्बे के साथ आयोग की छवि लगातार धूमिल होती गई।
इसी बीच प्रतियोगियों की याचिका पर हाईकोर्ट ने अनिल यादव की नियुक्ति रद्द कर दी।
इसके बाद प्रतियोगियों में उम्मीद जगी कि आयोग यह दाग साफ करने में सफल होगा। डॉ.सुनील कुमार जैन के चार महीने के कार्यकाल में उनकी इस उम्मीद को और बल मिला, लेकिन अब डॉ.अनिरुद्ध यादव को स्थाई अध्यक्ष बनाए जाने पर प्रतियोगियों में फिर निराशा है। नए अध्यक्ष को प्रतियोगियाें की इस निराशा और नाराजगी को कानूनी लड़ाई के रूप में सामना करना पड़ सकता है। छोटी सी चूक पर सड़क पर आंदोलन का भी सामना करना पड़ेगा। आयोग में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलनों और कानूनी लड़ाई की अगुवाई करने वाले अवनीश पांडेय का कहना है कि सरकार ने इस नियुक्ति से स्पष्ट कर दिया है कि डॉ.अनिरुद्ध यादव भी अनिल यादव के एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे। अवनीश का कहना है कि उनकी नियुक्ति के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जाएगी। तथ्य जुटाए जा रहे हैं। अवनीश की अगुवाई में प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल जल्द ही नए अध्यक्ष से मिलेगा और कई बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग करेगा।
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आयोग की भर्तियाें में जाति विशेष और क्षेत्र को महत्व दिए जाने के लगातार आरोप लगते रहे। अनिल यादव के समय में इसे ‘यादव आयोग’ तक कह दिया गया। इसके बावजूद डॉ.अनिरुद्ध यादव को अध्यक्ष बनाए जाने से कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस समेत कई वरिष्ठ लोगों के आवेदन के बावजूद डॉ.अनिरुद्ध के नाम की संस्तुति से प्रदेश सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
प्रतियोगियों में एक बार फिर आंशका है कि डॉ.अनिरुद्ध यादव अनिल यादव के एजेंडे को ही आगे बढ़ाएंगे। इससे उनमें नाराजगी है और वे इनकी नियुक्ति के खिलाफ भी हाईकोर्ट जाने की तैयारी में लग गए हैं।
अनिल यादव ने 2012 अप्रैल में कार्यभार संभालने के एक महीने बाद ही त्रिस्तरीय आरक्षण का विवादित फैसला लिया था। प्रदेशव्यापी आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार के हस्तक्षेप पर यह फैसला वापस हुआ था। अनिल यादव के साढ़े तीन साल के कार्यकाल में पीसीएस के तीन रिजल्ट घोषित किए गए। इनमें एसडीएम पद पर चयनितों में इस जाति के अभ्यर्थियों का दबदबा रहा। साक्षात्कार में खास जाति के अभ्यर्थियों को अधिक नंबर दिए जाने के आरोप हैं।
लोअर सबऑर्डिनेट, तकनीकी सहायक समेत आयोग की तकरीबन सभी भर्तियों में इस तरह के आरोप लगे। इसको लेकर न्यायालय में याचिका तथा आंदोलनों के बाद अनिल यादव ने रिजल्ट में चयनितों की जाति न घोषित करने का फैसला लिया। फिर भी विवाद नहीं थमा तो सिर्फ रोल नंबर के आधार पर रिजल्ट घोषित करने का फरमान जारी हुआ। इसके अलावा गलत जवाब को सही माने जाने की शिकायत भी आम रही। इन आरोपों के मद्देनजर प्रतियोगियों ने सीबीआई जांच की याचिका दाखिल कर रखी है। इनके अलावा कई रिटायर आईएएस, आईपीसी तथा समाजसेवियों की ओर से भी संयुक्त रूप से सीबीआई मांग की याचिका डाली गई है। इस दौरान ‘यादव आयोग’ के नए धब्बे के साथ आयोग की छवि लगातार धूमिल होती गई।
इसी बीच प्रतियोगियों की याचिका पर हाईकोर्ट ने अनिल यादव की नियुक्ति रद्द कर दी।
इसके बाद प्रतियोगियों में उम्मीद जगी कि आयोग यह दाग साफ करने में सफल होगा। डॉ.सुनील कुमार जैन के चार महीने के कार्यकाल में उनकी इस उम्मीद को और बल मिला, लेकिन अब डॉ.अनिरुद्ध यादव को स्थाई अध्यक्ष बनाए जाने पर प्रतियोगियों में फिर निराशा है। नए अध्यक्ष को प्रतियोगियाें की इस निराशा और नाराजगी को कानूनी लड़ाई के रूप में सामना करना पड़ सकता है। छोटी सी चूक पर सड़क पर आंदोलन का भी सामना करना पड़ेगा। आयोग में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलनों और कानूनी लड़ाई की अगुवाई करने वाले अवनीश पांडेय का कहना है कि सरकार ने इस नियुक्ति से स्पष्ट कर दिया है कि डॉ.अनिरुद्ध यादव भी अनिल यादव के एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे। अवनीश का कहना है कि उनकी नियुक्ति के खिलाफ भी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जाएगी। तथ्य जुटाए जा रहे हैं। अवनीश की अगुवाई में प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल जल्द ही नए अध्यक्ष से मिलेगा और कई बिंदुओं पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग करेगा।
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