हाईकोर्ट का आदेशः 40 साल पहले नौकरी से निकाली गई टीचर को दें पूरा वेतन

ब्यूरो/अमरउजाला, लखनऊ 43 साल पहले बीटीसी न होने की वजह से नौकरी से निकाली गई सहायक अध्यापिका को राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने बेसिक शिक्षा विभाग को आदेश दिए हैं कि वह उसे पूरे सेवाकाल का वेतन और अन्य देय सुविधाएं प्रदान करे।
यह राशि गलत वजहों से याची को नौकरी से निकालने वाले अधिकारियों से वसूल करने की छूट विभाग को दी गई है। याची को बतौर हर्जाना 25 हजार रुपये देने के निर्देश भी हाईकोर्ट ने दिए हैं।

याची राजमति सिंह ने हाईकोर्ट को बताया था कि 25 जनवरी 1971 को वे रायबरेली के जगतपुर ब्लॉक की कन्या जूनियर हाईस्कूल, गौरा में सहायक अध्यापिका नियुक्त हुई थीं।

इस बीच यूपी बेसिक शिक्षा अधिनियम 1972 अस्तित्व में आया और जिला पंचायतों के अधीन स्कूलों को बेसिक शिक्षा बोर्ड को हस्तांतरित किया गया। वहीं राजमति को सत्र 1973-74 में बीएड करने के लिए रायबरेली के तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अध्ययन अवकाश दिए।

वह तीन जुलाई 1974 को नियुक्ति के लिए लौटीं तो इस आधार पर जॉइन करने से रोका गया कि उन्हें बीएड नहीं, बीटीसी के लिए अध्ययन अवकाश दिया गया था। अधिकारी ने उनकी सेवाएं भी समाप्त कर दीं।

राजमति ने विभाग में अपनी शिकायत रखी, जिसे 35 साल बाद चार जून 2009 को खारिज कर दिया गया। राज्य लोकसेवा ट्रिब्यूनल में राजमति ने शिकायत की, यहां उसे आंशिक राहत दी और कहा कि राजमति को नौकरी से निकालना गलत था, लेकिन यह भी कहा कि जिस अवधि में उन्होंने काम नहीं किया, उसके लिए वे किसी वेतन की हकदार नहीं होंगी।

ट्रिब्यूनल ने विभाग के निर्णय को अस्वीकार करते हुए कहा कि मौखिक आदेश से अध्यापिका को नहीं निकाला जा सकता। राजमति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया कि उसे लिखित आदेश पर नौकरी दी गई, मौखिक आदेश पर निकाला नहीं जा सकता।  वह अपनी सेवाएं नहीं दे सकी तो इसकी वजह विभाग द्वारा उसे बीएड के अध्ययन अवकाश देना और फिर कोर्स के बाद उसे जॉइन नहीं करने देना थी।
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