16A (16 क) संशोधन लाकर न्यूनतम योग्यता से छूट का अधिकार अपने पास सुरक्षित कर लिया जो कि एनसीटीई एक्ट के सेक्शन 23(2) का खुला उल्लंघन है।
● अनुभव को योग्यता के बराबर अथवा उसका 'substitute' नहीं कहा जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने
किसी पद कई वर्ष कार्य कर के अनुभव प्राप्त किया है फिर भी उस व्यक्ति को सम्बन्धित पद के लिए निर्धारित योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मानवता को आधार मान कर ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती जबकि निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति मौजूद हैं। यह मानवता का ही आधार है जो कोर्ट योग्य व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से बेहतर समझती है जो निर्धारित योग्यता भी न रखता हो। (State of MP vs. Dharam Bir, SC)
● Shiv Kumar Sharma vs. State of UP के केस में फुल बेंच ने यह निष्कर्ष निकाला कि टीईटी आयोजन इसलिए किया जाता है ताकि अध्यापकों की प्रतिभा के विषय में जाना जा सके, तथा इस बात की जानकारी की जा सके कि वह वास्तव में योग्यता रखते हैं।
समायोजन से समबन्धित महत्वपूर्ण तथ्य:
● आर्टिकल 14 तथा 16 सरकारी नौकरियों में समानता के
अधिकार की बात करते हैं।
● जब तक नियुक्ति संवैधानिक नियमों के अधीन तथा योग्य व्यक्तियों के मध्य खुली प्रतिस्पर्धा के बाद नहीं होती तब तक वह नियुक्त व्यक्ति को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देती। (Secretary of state of Karnataka vs.
Uma Devi)
● यदि नियुक्ति संविदा पर हुई है तब संविदा अवधि समाप्त होने पर नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी।
● शिक्षा मित्र केवल एक सामुदायिक सेवक मात्र हैं। नियुक्ति के समय प्रत्येक शिक्षा मित्र को इस तथ्य का ज्ञान था।
● शिक्षा मित्र स्कीम मात्र शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चलाई गई थी, न कि रोजगार के साधन के रूप में।
● सरकार का तर्क "शिक्षा मित्र लगातार 16 वर्ष सेवा दे रहे हैं। अतः उनसे टीईटी पास कराने का का कोई अर्थ नहीं है तथा साथ ही साथ प्रदेश में टीईटी पास बीटीसी की कमी है", मान्य नहीं है। 'मात्र बीटीसी पास लोगों की कमी की वजह से किसी को भी निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती। (Yogesh Kumar vs. Goverment of NCT, Delhi, SC)
● चाहे शिक्षा मित्रों ने कई वर्षों तक बच्चों को शिक्षा दी है, फिर भी टीईटी से छूट दिया जाना संभव नहीं है। टीईटी के द्वारा शिक्षकों की योग्यता के स्तर का ज्ञान होता है।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति न तो स्वीकृत पदों पर हुई तथा न ही यह निर्धारित न्यूनतम योग्यता पूर्ण करते हैं। अतः इनकी नियुक्ति गैर कानूनी है अतः इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता।
● सरकार द्वारा शिक्षा मित्रों को टीईटी में छूट देने के लिए किया गया संशोधन '16 क' अल्ट्रा वाइर्स है।
● 16 क संशोधन द्वारा राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को
टीईटी से छूट देकर, एनसीटीई के अधिकारों पर अतिक्रमण किया है। ऐसा कर के सरकार ने एक पाप किया तदोपरांत शिक्षा मित्रों को स्थायी कर के इस पाप को महापाप बना दिया।
● शिक्षा मित्रों को मनमाने ढंग से नियमों में छूट देकर तथा न्यूनतम योग्यता का स्तर गिरा कर सरकार ने जो उदारता दिखाई है वह पूरी तरह असंवैधानिक है। तथा इस सम्बन्ध में जो भी नियम बनाए हैं, सभी असंवैधानिक व अल्ट्रा वायर्स हैं।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन नहीं हुई थी तथा साथ ही साथ वह न्यूनतम योग्यता पूर्ण नहीं करते हैं तथा इनकी नियुक्ति संविदा पर हुई थी। शिक्षा मित्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए किसी भी नियम को पूर्ण
नहीं करते अतः इनको स्थायी नहीं किया जा सकता।
● समस्त याची सहायक अध्यापक बनने की योग्यता रखते हैं। शिक्षा मित्रों के समायोजन से याचियों के अधिकार साफ़ तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। प्रभावित ही नहीं बल्कि लगभग समाप्त हो रहे हैं।
भाग 4 में कोर्ट ने अपने मुख्य आदेश सुनाए :
१) 16A (16 क) असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स है अतः निरस्त किया जाता है।
२) अध्यापक सेवा नियमावली 1981 में शिक्षा मित्रों को
समायोजित करने के लिए किया गया उन्नीसवां संशोधन
असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स है, अतः रद्द किया जाता है।
३) शिक्षा मित्रों के समायोजन से सम्बंधित दोनों शासनादेश निरस्त किये जाते हैं।
कोर्ट ने शिक्षा मित्रों को स्थाई न करने के एक से अधिक कारण बताए हैं:
१) शिक्षा मित्रों को स्थायी नहीं किया जा सकता, ऐसा करना योग्य अभ्यर्थियों के साथ अन्याय होगा तथा
आर्टिकल 14 व 16 का खुला उल्लंघन है।
२) न्यूनतम योग्यता में छूट का अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं है।
३) टीईटी से छूट नहीं दी जा सकती है।
४) सरकार ने नियमों को ताक पर रख शिक्षा मित्रों को जो छूट दी हैं तथा उदारता दिखाई है वह वह अनैतिक तथा
असंवैधानिक है।
५) शिक्षा मित्रों की शिक्षा मित्र पद पर नियुक्ति
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● अनुभव को योग्यता के बराबर अथवा उसका 'substitute' नहीं कहा जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने
किसी पद कई वर्ष कार्य कर के अनुभव प्राप्त किया है फिर भी उस व्यक्ति को सम्बन्धित पद के लिए निर्धारित योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मानवता को आधार मान कर ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती जबकि निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति मौजूद हैं। यह मानवता का ही आधार है जो कोर्ट योग्य व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से बेहतर समझती है जो निर्धारित योग्यता भी न रखता हो। (State of MP vs. Dharam Bir, SC)
● Shiv Kumar Sharma vs. State of UP के केस में फुल बेंच ने यह निष्कर्ष निकाला कि टीईटी आयोजन इसलिए किया जाता है ताकि अध्यापकों की प्रतिभा के विषय में जाना जा सके, तथा इस बात की जानकारी की जा सके कि वह वास्तव में योग्यता रखते हैं।
समायोजन से समबन्धित महत्वपूर्ण तथ्य:
● आर्टिकल 14 तथा 16 सरकारी नौकरियों में समानता के
अधिकार की बात करते हैं।
● जब तक नियुक्ति संवैधानिक नियमों के अधीन तथा योग्य व्यक्तियों के मध्य खुली प्रतिस्पर्धा के बाद नहीं होती तब तक वह नियुक्त व्यक्ति को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देती। (Secretary of state of Karnataka vs.
Uma Devi)
● यदि नियुक्ति संविदा पर हुई है तब संविदा अवधि समाप्त होने पर नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी।
● शिक्षा मित्र केवल एक सामुदायिक सेवक मात्र हैं। नियुक्ति के समय प्रत्येक शिक्षा मित्र को इस तथ्य का ज्ञान था।
● शिक्षा मित्र स्कीम मात्र शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चलाई गई थी, न कि रोजगार के साधन के रूप में।
● सरकार का तर्क "शिक्षा मित्र लगातार 16 वर्ष सेवा दे रहे हैं। अतः उनसे टीईटी पास कराने का का कोई अर्थ नहीं है तथा साथ ही साथ प्रदेश में टीईटी पास बीटीसी की कमी है", मान्य नहीं है। 'मात्र बीटीसी पास लोगों की कमी की वजह से किसी को भी निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती। (Yogesh Kumar vs. Goverment of NCT, Delhi, SC)
● चाहे शिक्षा मित्रों ने कई वर्षों तक बच्चों को शिक्षा दी है, फिर भी टीईटी से छूट दिया जाना संभव नहीं है। टीईटी के द्वारा शिक्षकों की योग्यता के स्तर का ज्ञान होता है।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति न तो स्वीकृत पदों पर हुई तथा न ही यह निर्धारित न्यूनतम योग्यता पूर्ण करते हैं। अतः इनकी नियुक्ति गैर कानूनी है अतः इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता।
● सरकार द्वारा शिक्षा मित्रों को टीईटी में छूट देने के लिए किया गया संशोधन '16 क' अल्ट्रा वाइर्स है।
● 16 क संशोधन द्वारा राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को
टीईटी से छूट देकर, एनसीटीई के अधिकारों पर अतिक्रमण किया है। ऐसा कर के सरकार ने एक पाप किया तदोपरांत शिक्षा मित्रों को स्थायी कर के इस पाप को महापाप बना दिया।
● शिक्षा मित्रों को मनमाने ढंग से नियमों में छूट देकर तथा न्यूनतम योग्यता का स्तर गिरा कर सरकार ने जो उदारता दिखाई है वह पूरी तरह असंवैधानिक है। तथा इस सम्बन्ध में जो भी नियम बनाए हैं, सभी असंवैधानिक व अल्ट्रा वायर्स हैं।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन नहीं हुई थी तथा साथ ही साथ वह न्यूनतम योग्यता पूर्ण नहीं करते हैं तथा इनकी नियुक्ति संविदा पर हुई थी। शिक्षा मित्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए किसी भी नियम को पूर्ण
नहीं करते अतः इनको स्थायी नहीं किया जा सकता।
● समस्त याची सहायक अध्यापक बनने की योग्यता रखते हैं। शिक्षा मित्रों के समायोजन से याचियों के अधिकार साफ़ तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। प्रभावित ही नहीं बल्कि लगभग समाप्त हो रहे हैं।
भाग 4 में कोर्ट ने अपने मुख्य आदेश सुनाए :
१) 16A (16 क) असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स है अतः निरस्त किया जाता है।
२) अध्यापक सेवा नियमावली 1981 में शिक्षा मित्रों को
समायोजित करने के लिए किया गया उन्नीसवां संशोधन
असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स है, अतः रद्द किया जाता है।
३) शिक्षा मित्रों के समायोजन से सम्बंधित दोनों शासनादेश निरस्त किये जाते हैं।
कोर्ट ने शिक्षा मित्रों को स्थाई न करने के एक से अधिक कारण बताए हैं:
१) शिक्षा मित्रों को स्थायी नहीं किया जा सकता, ऐसा करना योग्य अभ्यर्थियों के साथ अन्याय होगा तथा
आर्टिकल 14 व 16 का खुला उल्लंघन है।
२) न्यूनतम योग्यता में छूट का अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं है।
३) टीईटी से छूट नहीं दी जा सकती है।
४) सरकार ने नियमों को ताक पर रख शिक्षा मित्रों को जो छूट दी हैं तथा उदारता दिखाई है वह वह अनैतिक तथा
असंवैधानिक है।
५) शिक्षा मित्रों की शिक्षा मित्र पद पर नियुक्ति
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