आयोगों में नियुक्ति, नई सरकार ने कामकाज संभाला तो पाया कि प्रदेश के भर्ती सेवा आयोगों, चयन बोर्डो ने अपनी रफ्तार काफी तेज कर रखी

वर्ष 2016 बीतते-बीतते और 2017 आते-आते उत्तर प्रदेश में चुनाव की डुगडुगी बजी। सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्षी दलों का चुनावी मंच पर तालबद्ध पदचाप शुरू हो गया। यह प्रक्रिया लगभग ढाई महीने से ज्यादा चली।
जब नई सरकार ने कामकाज संभाला तो पाया कि प्रदेश के भर्ती सेवा आयोगों, चयन बोर्डो ने अपनी रफ्तार
काफी तेज कर रखी है। कई-कई साल पीछे की परीक्षाओं के परिणाम जारी कर दिए गए, कुछ के साक्षात्कार चल रहे हैं, कुछ में नियुक्ति पत्र देने का सिलसिला शुरू हो गया। नई सरकार के पास अनेक शिकायतें आईं और मंशा में खोट पाते ही उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, बेसिक शिक्षा परिषद की सभी नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगानी पड़ी। इससे बड़ी संख्या में नियुक्तियां पिछड़ जाएंगी। सिर्फ बेसिक शिक्षा परिषद में करीब 80 हजार भर्तियां प्रभावित होंगी। इस विभाग में तीन भर्तियों की प्रक्रिया जारी थी, एक की काउंसिलिंग अगले महीने होनी थी। राज्य सरकार ने विभिन्न तरह की सेवाओं में नियुक्ति के लिए अलग-अलग सेवा आयोग, चयन आयोग व बोर्ड बनाए हैं। उनमें कई सदस्य और अध्यक्ष होते हैं। बाहरी दबाव न डाला जा सके, इसके लिए इन संस्थाओं को सभी आवश्यक संसाधनों के साथ ही कानूनन विशेष दर्जा प्राप्त है, इनके सदस्यों, अध्यक्षों को विशेषाधिकार मिला है।
पिछले दो साल में इनकी कार्य प्रणाली भ्रष्टाचार से सराबोर रही है। अभ्यर्थी कोर्ट गए और उ.प्र. लोकसेवा आयोग से लेकर सभी तरह के चयन बोर्ड हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट से लताड़े गए। कई सदस्यों, अध्यक्ष को हटाया भी गया। फिर भी इन्होंने अपनी हैसियत का दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कहा जाता है कि अगर आप न्याय करने के लिए पंच की भूमिका में हैं तो अपना-पराया भूल जाना होगा। प्रतिभा आकलन के आधार पर रोजगार देना भी इसी श्रेणी में आता है। ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि इतने पवित्र कार्य के लिए नियुक्ति से पहले कम से कम दो दशक का आचरण अवश्य देखा जाए और तमाम प्रमाण पत्रों की बाध्यता के बजाए कार्य-व्यवहार की योग्यता को महत्व दिया जाए। साथ ही इन पदों के लिए ऐसा सख्त कानून बनाए, ऐसे कुकृत्य को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा जाए। आखिर ये विद्वतजन युवाओं के भविष्य को बनाने-बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार होते हैं। तभी इन संस्थाओं की शुचिता वापस लौट सकेगी, तभी युवाओं को न्याय मिल सकेगा।

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