लखनऊ। नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए प्रदेश में कई चुनौतियां हैं। लचर कानून-व्यवस्था, ढांचागत व्यवस्था के साथ शिक्षा का गिरता स्तर।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में बाहरवीं के छात्रों के संवाद करने की योजना बताई थी। जाहिर है नई सरकार, शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना चाहती है लेकिन यह कैसे होगा ये भी एक सवाल है।
इस समय सरकारी स्कूलों में वार्षिक परीक्षाएं चल रही हैं। इसमें कई तरह की अव्यवस्थाएं सामने आ रही हैं। शनिवार को कन्नौज के प्राथमिक स्कूल सद्दूपुर में परीक्षा के दौरान सहायक अध्यापक मुनेन्द्र शाक्य के सोने की घटना सामने आई।
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए सरकार से प्रदेश के लोग कई अन्य अपेक्षाएं भी करने लगे हैं। शिक्षा में सुधार के लिए कई लोगों ने अपने सुझाव भी दिए हैं।
‘शिक्षा में गुणवत्ता सबसे जरूरी है। भले ही एक पंचायत में एक ही स्कूल हो पर मॉडल स्कूल होना चाहिए। यदि स्वयं सेवी संस्थाएं गाँवों में स्कूल चलाना चाहें तो उनको आसानी से मान्यता दी जाए लेकिन वहां के शिक्षा के स्तर की जांच हमेशा होनी चाहिए।’ ये सुझाव दिए हैं पूर्व माध्यमिक विद्यालय कठिंगरा, काकोरी के प्रधानाचार्य, शाहिद अली आब्दी ने। वह कहते हैं, ‘बच्चों की पढ़ाई बेहतर हो सके इसके लिए जरूरी है कि बच्चों और अभिभावकों की काउंसलिंग करवाई जाए और शिक्षा के महत्व को समझाया जाए। शिक्षा के सम्बन्ध में बन रही नीतियों में शिक्षकों का भी सहयोग लिया जाए।
वहीं क्वीन्स इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. आरपी मिश्र कहते हैं, ‘बेसिक शिक्षा का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। साथ ही स्कूल में जितनी कक्षाएं हों उतने कक्ष और शिक्षक भी होने चाहिए। इसके साथ ही स्कूलों में बच्चों को खेलकूद भी करवाया जाए जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके, प्रतियोगिताओं का आयोजन भी होता रहे। शिक्षकों को कम्प्यूटर की ट्रेनिंग दी जाए। बोलचाल की अंग्रेजी पर जोर दिया जाए ताकि भविष्य में इंटरव्यू आदि में अंग्रेजी के कारण दिक्कत न हो।’ वह आगे बताते हैं, ‘अध्यापक और छात्रों का अनुपात भी निश्चित किया जाए और 30-35 बच्चों से ज्यादा एक शिक्षक के ऊपर निर्धारित न किए जाएं। उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा में निरीक्षक का कोई पद नहीं होता। सारे अधिकारी की श्रेणी में ही हैं इसलिए निरीक्षक का पद भी होना चाहिए जो समय-समय पर स्कूलों का निरीक्षण करे।’
इन स्कूलों में शिक्षकों की हाजिरी, उन पर पढ़ाई के अलावा दूसरे काम का बोझ भी है।
कालीचरण इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. महेन्द्र नाथ राय कहते हैं, ‘स्कूलों में किताबों का वितरण शैक्षिक सत्र की शुरुआत में होना चाहिए। साथ ही सरकार बदलने के साथ पाठ्यक्रमों में छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। पुराने सेवारत शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार हो और नए लोग बेहतर तरीके से काम करें इसके लिए ज़रूरी है मॉनीटरिंग सिस्टम बेहतर बनाया जाए। सरकारी स्कूलों की मॉनिटरिंग बॉडी केंद्र सरकार के अधीन हो। जिस बीएसए और विद्यालय निरीक्षक पर स्कूल चेक करने का जिम्मा होता है, सबसे ज्यादा आरोप उसी पर लगते हैं।’
शिक्षक बच्चों को गुणवत्ता परक शिक्षा दें। स्कूल में नवाचार के माध्यम से पढ़ाई करवाएं ताकि बच्चों की रुचि बनी रहे। सामाजिक सहभागिता पर ध्यान दें और बच्चों से भावनात्मक लगाव रखें। इसके साथ ही शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता रहे ताकि वह अपडेट रहें साथ ही शिक्षक और बच्चे प्रतिदिन स्कूल आने की आदत डाल लें तो शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हो सकता है।
महेन्द्र सिंह राणा, सहायक निदेशक मंडलीय, बेसिक शिक्षा
प्राथमिक विद्यालय माधवपुर में पढ़ा रहे शिक्षामित्र शिव किशोर द्वेदी कहते हैं, ‘सेवारत शिक्षकों की ट्रेनिंग सरकारी संस्थानों में न होकर निजी संस्थानों/एजेंसियों या स्कूलों में कराई जाए। सभी शिक्षकों के लिए 15-15 दिन की वर्कशॉप अनिवार्य की जाएं और उन्हें 20-30 दिन के लिए डेपुटेशन पर शहर के कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजा जाए। शिक्षकों को केवल पढ़ाने के लिए ही रखा जाए न कि चुनाव, जनगणना, मिड-डे मील,पोलियो समेत अन्य कार्यों के लिए।
शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही अभ्युदय फाउंडेशन की प्रमुख समीना बानो कहती हैं, ‘उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के निर्णय का पालन हो, सरकारी कोष से सैलरी पाने वाले कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला हो। शुरुआत के कम से कम कुछ वर्ष आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्कूल में अनिवार्य किए जाएं।’
सहायक निदेशक मंडलीय, बेसिक शिक्षा, महेन्द्र सिंह राणा कहते हैं, ‘शिक्षक बच्चों को गुणवत्ता परक शिक्षा दें। स्कूल में नवाचार के माध्यम से पढ़ाई करवाएं ताकि बच्चों की रुचि बनी रहे। सामाजिक सहभागिता पर ध्यान दें और बच्चों से भावनात्मक लगाव रखें। इसके साथ ही शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता रहे ताकि वह अपडेट रहें साथ ही शिक्षक और बच्चे प्रतिदिन स्कूल आने की आदत डाल लें तो शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हो सकता है।’
इसके साथ ही कई अन्य सुझाव भी दिए गए-
शिक्षा के गिरते स्तर के लिए अभिभावक खुद भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं, इसलिए स्कूलों में नियमित रूप से हर महीने अभिभावक-शिक्षक मीटिंग हो। स्मार्टफोन का जमाना है और हर शिक्षक की सैलरी काफी बेहतर है इसलिए उससे उम्मीद की जा सकती है वो इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग और फोटो सक्षम अधिकारियों तक भेजेंगे।
सरकारी स्कूलों में न्यूनतम फीस रखी जाए। सब कुछ फ्री होने के चलते अभिभावक स्कूल के प्रति गैर जिम्मेदार हो जाते हैं।
यूपी बोर्ड के पैटर्न में परिवर्तन की जरूरत है प्राथमिक स्तर पर सब्जेक्टिव पैटर्न न होकर ऑब्जेक्टिव पैटर्न हो। संभव हो तो सभी बोर्ड को मर्ज कर दिया जाना चाहिए। कोर्स को समान किया जाए और यूपी बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड व आईसीएसई बोर्ड को एक बोर्ड कर दिया जाए, जिससे पढ़ाई के स्तर में समानता हो।
मिड डे मील की जिम्मेदारी अध्यापकों को न दी जाए। ज्यादातर समय शिक्षक खाने के इंतजाम के लिए ही परेशान रहते हैं।
प्रधानों का हस्ताक्षेप कम हो। स्कूल में मिड डे मिल से लेकर बिल्डिंग के निर्माण तक में प्रधान दखल देते हैं, ज्यादातर बार प्रधान स्थानीय होने के चलते दबंग होते हैं और स्कूल के शिक्षकों को प्रभावित करते हैं।
स्कूलों में छुट्टियां कम की जाएं। महापुरुषों के जन्मदिवस व पुण्यतिथियों पर स्कूल में बच्चों को उनके बारे में बताया जाए और वहीं श्रद्धांजलि दी जाए लेकिन पढ़ाई जारी रहे।
मूलभूत सुविधाएं ज़रूरी
यूपी के प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, जिस तत्काल दूर किया जाए लेकिन ये काम जल्दबाजी में न हो। कोशिश की जाए हर स्कूल में कम से कम तीन शिक्षक हों।
विद्यालयों की बेहतर बिल्डिंग, बाउंड्री, पानी और शौचालय के साथ ही बच्चों के लिए फर्नीचर आदि की व्यवस्था अनिवार्य की जाए।
भारत के लगभग हर स्कूल में शौचालय बनाए जाएं। छात्रों व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय हों लेकिन बात करें यूपी की तो यहां स्कूलों में शौचालय होने के बावजूद इस्तेमाल सिर्फ गिनती के होते हैं, पानी और साफ सफाई का अभाव बड़ी समस्या है। गाँव के प्रधान को हर हाल में इन्हें साफ रखने की जिम्मेदारी दी जाए।
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ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में बाहरवीं के छात्रों के संवाद करने की योजना बताई थी। जाहिर है नई सरकार, शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना चाहती है लेकिन यह कैसे होगा ये भी एक सवाल है।
इस समय सरकारी स्कूलों में वार्षिक परीक्षाएं चल रही हैं। इसमें कई तरह की अव्यवस्थाएं सामने आ रही हैं। शनिवार को कन्नौज के प्राथमिक स्कूल सद्दूपुर में परीक्षा के दौरान सहायक अध्यापक मुनेन्द्र शाक्य के सोने की घटना सामने आई।
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए सरकार से प्रदेश के लोग कई अन्य अपेक्षाएं भी करने लगे हैं। शिक्षा में सुधार के लिए कई लोगों ने अपने सुझाव भी दिए हैं।
‘शिक्षा में गुणवत्ता सबसे जरूरी है। भले ही एक पंचायत में एक ही स्कूल हो पर मॉडल स्कूल होना चाहिए। यदि स्वयं सेवी संस्थाएं गाँवों में स्कूल चलाना चाहें तो उनको आसानी से मान्यता दी जाए लेकिन वहां के शिक्षा के स्तर की जांच हमेशा होनी चाहिए।’ ये सुझाव दिए हैं पूर्व माध्यमिक विद्यालय कठिंगरा, काकोरी के प्रधानाचार्य, शाहिद अली आब्दी ने। वह कहते हैं, ‘बच्चों की पढ़ाई बेहतर हो सके इसके लिए जरूरी है कि बच्चों और अभिभावकों की काउंसलिंग करवाई जाए और शिक्षा के महत्व को समझाया जाए। शिक्षा के सम्बन्ध में बन रही नीतियों में शिक्षकों का भी सहयोग लिया जाए।
वहीं क्वीन्स इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. आरपी मिश्र कहते हैं, ‘बेसिक शिक्षा का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। साथ ही स्कूल में जितनी कक्षाएं हों उतने कक्ष और शिक्षक भी होने चाहिए। इसके साथ ही स्कूलों में बच्चों को खेलकूद भी करवाया जाए जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके, प्रतियोगिताओं का आयोजन भी होता रहे। शिक्षकों को कम्प्यूटर की ट्रेनिंग दी जाए। बोलचाल की अंग्रेजी पर जोर दिया जाए ताकि भविष्य में इंटरव्यू आदि में अंग्रेजी के कारण दिक्कत न हो।’ वह आगे बताते हैं, ‘अध्यापक और छात्रों का अनुपात भी निश्चित किया जाए और 30-35 बच्चों से ज्यादा एक शिक्षक के ऊपर निर्धारित न किए जाएं। उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा में निरीक्षक का कोई पद नहीं होता। सारे अधिकारी की श्रेणी में ही हैं इसलिए निरीक्षक का पद भी होना चाहिए जो समय-समय पर स्कूलों का निरीक्षण करे।’
इन स्कूलों में शिक्षकों की हाजिरी, उन पर पढ़ाई के अलावा दूसरे काम का बोझ भी है।
कालीचरण इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. महेन्द्र नाथ राय कहते हैं, ‘स्कूलों में किताबों का वितरण शैक्षिक सत्र की शुरुआत में होना चाहिए। साथ ही सरकार बदलने के साथ पाठ्यक्रमों में छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। पुराने सेवारत शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार हो और नए लोग बेहतर तरीके से काम करें इसके लिए ज़रूरी है मॉनीटरिंग सिस्टम बेहतर बनाया जाए। सरकारी स्कूलों की मॉनिटरिंग बॉडी केंद्र सरकार के अधीन हो। जिस बीएसए और विद्यालय निरीक्षक पर स्कूल चेक करने का जिम्मा होता है, सबसे ज्यादा आरोप उसी पर लगते हैं।’
शिक्षक बच्चों को गुणवत्ता परक शिक्षा दें। स्कूल में नवाचार के माध्यम से पढ़ाई करवाएं ताकि बच्चों की रुचि बनी रहे। सामाजिक सहभागिता पर ध्यान दें और बच्चों से भावनात्मक लगाव रखें। इसके साथ ही शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता रहे ताकि वह अपडेट रहें साथ ही शिक्षक और बच्चे प्रतिदिन स्कूल आने की आदत डाल लें तो शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हो सकता है।
महेन्द्र सिंह राणा, सहायक निदेशक मंडलीय, बेसिक शिक्षा
प्राथमिक विद्यालय माधवपुर में पढ़ा रहे शिक्षामित्र शिव किशोर द्वेदी कहते हैं, ‘सेवारत शिक्षकों की ट्रेनिंग सरकारी संस्थानों में न होकर निजी संस्थानों/एजेंसियों या स्कूलों में कराई जाए। सभी शिक्षकों के लिए 15-15 दिन की वर्कशॉप अनिवार्य की जाएं और उन्हें 20-30 दिन के लिए डेपुटेशन पर शहर के कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजा जाए। शिक्षकों को केवल पढ़ाने के लिए ही रखा जाए न कि चुनाव, जनगणना, मिड-डे मील,पोलियो समेत अन्य कार्यों के लिए।
शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही अभ्युदय फाउंडेशन की प्रमुख समीना बानो कहती हैं, ‘उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट के निर्णय का पालन हो, सरकारी कोष से सैलरी पाने वाले कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला हो। शुरुआत के कम से कम कुछ वर्ष आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्कूल में अनिवार्य किए जाएं।’
सहायक निदेशक मंडलीय, बेसिक शिक्षा, महेन्द्र सिंह राणा कहते हैं, ‘शिक्षक बच्चों को गुणवत्ता परक शिक्षा दें। स्कूल में नवाचार के माध्यम से पढ़ाई करवाएं ताकि बच्चों की रुचि बनी रहे। सामाजिक सहभागिता पर ध्यान दें और बच्चों से भावनात्मक लगाव रखें। इसके साथ ही शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता रहे ताकि वह अपडेट रहें साथ ही शिक्षक और बच्चे प्रतिदिन स्कूल आने की आदत डाल लें तो शिक्षा के स्तर में काफी सुधार हो सकता है।’
इसके साथ ही कई अन्य सुझाव भी दिए गए-
शिक्षा के गिरते स्तर के लिए अभिभावक खुद भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं, इसलिए स्कूलों में नियमित रूप से हर महीने अभिभावक-शिक्षक मीटिंग हो। स्मार्टफोन का जमाना है और हर शिक्षक की सैलरी काफी बेहतर है इसलिए उससे उम्मीद की जा सकती है वो इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग और फोटो सक्षम अधिकारियों तक भेजेंगे।
सरकारी स्कूलों में न्यूनतम फीस रखी जाए। सब कुछ फ्री होने के चलते अभिभावक स्कूल के प्रति गैर जिम्मेदार हो जाते हैं।
यूपी बोर्ड के पैटर्न में परिवर्तन की जरूरत है प्राथमिक स्तर पर सब्जेक्टिव पैटर्न न होकर ऑब्जेक्टिव पैटर्न हो। संभव हो तो सभी बोर्ड को मर्ज कर दिया जाना चाहिए। कोर्स को समान किया जाए और यूपी बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड व आईसीएसई बोर्ड को एक बोर्ड कर दिया जाए, जिससे पढ़ाई के स्तर में समानता हो।
मिड डे मील की जिम्मेदारी अध्यापकों को न दी जाए। ज्यादातर समय शिक्षक खाने के इंतजाम के लिए ही परेशान रहते हैं।
प्रधानों का हस्ताक्षेप कम हो। स्कूल में मिड डे मिल से लेकर बिल्डिंग के निर्माण तक में प्रधान दखल देते हैं, ज्यादातर बार प्रधान स्थानीय होने के चलते दबंग होते हैं और स्कूल के शिक्षकों को प्रभावित करते हैं।
स्कूलों में छुट्टियां कम की जाएं। महापुरुषों के जन्मदिवस व पुण्यतिथियों पर स्कूल में बच्चों को उनके बारे में बताया जाए और वहीं श्रद्धांजलि दी जाए लेकिन पढ़ाई जारी रहे।
मूलभूत सुविधाएं ज़रूरी
यूपी के प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, जिस तत्काल दूर किया जाए लेकिन ये काम जल्दबाजी में न हो। कोशिश की जाए हर स्कूल में कम से कम तीन शिक्षक हों।
विद्यालयों की बेहतर बिल्डिंग, बाउंड्री, पानी और शौचालय के साथ ही बच्चों के लिए फर्नीचर आदि की व्यवस्था अनिवार्य की जाए।
भारत के लगभग हर स्कूल में शौचालय बनाए जाएं। छात्रों व छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय हों लेकिन बात करें यूपी की तो यहां स्कूलों में शौचालय होने के बावजूद इस्तेमाल सिर्फ गिनती के होते हैं, पानी और साफ सफाई का अभाव बड़ी समस्या है। गाँव के प्रधान को हर हाल में इन्हें साफ रखने की जिम्मेदारी दी जाए।
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