अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर डेरा जमाये शिक्षा मित्रों का एक प्रतिनिधिमण्डल मंगलवार को केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ वार्ता के लिए पहुंचा लेकिन मंत्री ने शिक्षामित्रों का मांगपत्र तो लेकर उन्हें लौटा दिया।
इसके बाद शिक्षामित्रों ने आर-पार की लड़ाई का एलान कर दिया। उनका कहना है कि वे 14 सितम्बर तक वह सरकार से या तो निर्णय लेकर जाएंगे या फिर वहीं पर आमरण अनशन कर खुद को खत्म कर लेंगे।
शिक्षामित्रों ने दूसरे दिन जन्तर-मंतर पर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। जन्तर-मंतर पर पांच हजार शिक्षामित्रों के प्रदर्शन की मंजूरी ली गयी थी लेकिन उनकी संख्या तकरीबन एक लाख तक पहुंच गयी है। इसके चलते वहां का प्रशासन भी हलकान हो गया है। शिक्षामित्रों के सभी संगठनों के एक साथ आ जाने के चलते वे दिल्ली में भी शक्ति प्रदर्शन में कामयाब रहे हैं। अब उन्हें यूपी की दूसरी राजनीतिक पार्टियों से भी समर्थन मिलने लगा है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कई मौकों पर शिक्षामित्रों का समर्थन कर चुके हैं उनकी मुखर विरोधी मानी जाने वाली बसपा प्रमुख मायावती भी उनके साथ खड़ी हैं।
यूपी के पौने दो लाख शिक्षामित्र परिषदीय स्कूलों में समायोजन रद होने के बाद से आन्दोलित हैं, उनका आन्दोलन उस समय और उग्र हो गया, जब सरकार ने समायोजित शिक्षामित्रों को दस हजार रुपये मानदेय निर्धारित कर दिया। प्रदेश के एक लाख 37 हजार शिक्षामित्र सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित होकर वेतनमान पा रहे थे। अब जहां एक ओर मानदेय एक तिहाई से भी कम हो गया है, वहीं सहायक अध्यापक के रूप में मिलने वाली अन्य सहूलियतों पर भी ग्रहण लग गया है। सरकार उन्हें सिर्फ 11 महीने का मानदेय ही देने का निर्णय ले चुकी है। शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा के बैनर तले एकजुट सभी संगठनों ने एक सुर से कहा कि अब यूपी की योगी सरकार व केन्द्र की मोदी सरकार उनके अधिकारों को खत्म नहीं कर पाएगी, इसके लिए चाहे कितनी भी सख्ती दिखा ले।
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इसके बाद शिक्षामित्रों ने आर-पार की लड़ाई का एलान कर दिया। उनका कहना है कि वे 14 सितम्बर तक वह सरकार से या तो निर्णय लेकर जाएंगे या फिर वहीं पर आमरण अनशन कर खुद को खत्म कर लेंगे।
शिक्षामित्रों ने दूसरे दिन जन्तर-मंतर पर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। जन्तर-मंतर पर पांच हजार शिक्षामित्रों के प्रदर्शन की मंजूरी ली गयी थी लेकिन उनकी संख्या तकरीबन एक लाख तक पहुंच गयी है। इसके चलते वहां का प्रशासन भी हलकान हो गया है। शिक्षामित्रों के सभी संगठनों के एक साथ आ जाने के चलते वे दिल्ली में भी शक्ति प्रदर्शन में कामयाब रहे हैं। अब उन्हें यूपी की दूसरी राजनीतिक पार्टियों से भी समर्थन मिलने लगा है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कई मौकों पर शिक्षामित्रों का समर्थन कर चुके हैं उनकी मुखर विरोधी मानी जाने वाली बसपा प्रमुख मायावती भी उनके साथ खड़ी हैं।
यूपी के पौने दो लाख शिक्षामित्र परिषदीय स्कूलों में समायोजन रद होने के बाद से आन्दोलित हैं, उनका आन्दोलन उस समय और उग्र हो गया, जब सरकार ने समायोजित शिक्षामित्रों को दस हजार रुपये मानदेय निर्धारित कर दिया। प्रदेश के एक लाख 37 हजार शिक्षामित्र सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित होकर वेतनमान पा रहे थे। अब जहां एक ओर मानदेय एक तिहाई से भी कम हो गया है, वहीं सहायक अध्यापक के रूप में मिलने वाली अन्य सहूलियतों पर भी ग्रहण लग गया है। सरकार उन्हें सिर्फ 11 महीने का मानदेय ही देने का निर्णय ले चुकी है। शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा के बैनर तले एकजुट सभी संगठनों ने एक सुर से कहा कि अब यूपी की योगी सरकार व केन्द्र की मोदी सरकार उनके अधिकारों को खत्म नहीं कर पाएगी, इसके लिए चाहे कितनी भी सख्ती दिखा ले।
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