NPS: सुधार के बाद बड़ी छलांग को तैयार है नेशनल पेंशन स्कीम, एनपीएस की राह में अभी भी कई चुनौतियां

एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम को लांच हुए 10 वर्ष हो चुके हैं। अब यह कहा जा सकता है कि यह योजना एक हद तक स्थापित हो चुकी है। यह योजना सेवानिवृत्ति के लिए बेहद सरल बचत योजना के रूप में लांच की गई थी, जिसमें कोई पेंच नहीं था।
इसके बावजूद इस योजना के लिए रास्ते बहुत आसान नहीं रहे। यहां तक कि आज भी यह कोई छुपी बात नहीं है कि जिन सरकारी कर्मचारियों को अपने पेंशन के लिए इस योजना के तहत अनिवार्य रूप से बचत करनी ही होती है, उन्हें छोड़ दें तो एनपीएस को अब तक आम लोगों में वह सफलता हासिल नहीं हो पाई है जिसके यह योग्य थी। एनपीएस का स्वैच्छिक उपयोग लगभग नहीं के बराबर है। हालांकि अब जबकि इसके तहत आयकर में छूट की सीमा 50,000 रुपये तक बढ़ा दी गई है, तो स्थिति थोड़ी-थोड़ी बदलने लगी है।
यह सही है कि एनपीएस की राह में अभी भी कई चुनौतियां हैं। लेकिन सेवानिवृत्ति के किसी भी प्रोडक्ट में जो खासियतें होनी चाहिएं, वे इसमें मौजूद हैं। इसकी लागत बहुत कम है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस योजना ने अब तक निवेश का बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड बनाए रखा है। निवेश का बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड किसी भी रिटायरमेंट प्लान के लिए इस लिहाज से बहुत जरूरी होता है, क्योंकि बाजार में इन योजनाओं की जरूरत का सबसे बुनियादी आधार यही है कि इनके निवेशक अपनी सेवानिवृत्ति के दिनों में कितने धनवान हो पाते हैं। अगर पेंशन योजनाओं से उनकी जरूरतें पूरी हो पाती हैं, तो बाकी चीजें अपने आप होती चली जाती हैं।

कई लोग एनपीएस में निवेश मॉडल की क्षमता और कुशलता पर सवाल उठाते हैं। लेकिन उनके सवालों का असलियत में कोई आधार नहीं है। इसके रिटर्न बेहतरीन हैं। यह आप वीआरओ डॉट इन/एनपीएस पर जाकर भी देख सकते हैं, जहां वैल्यू रिसर्च उन सभी एनपीएस योजनाओं का व्यापक विश्लेषण मुहैया कराती है, जो इस वक्त बाजार में चल रही हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि फंड मैनेजमेंट के लिहाज से एनपीएस की लागत इतनी कम है, कि निवेश के रिटर्न पर अब इसका चमत्कारिक असर दिखने लगा है। जैसे-जैसे वक्त बीतता जाता है, इस कम लागत का असर बढ़ता जाता है। ऐसे में कोई निवेशक एनपीएस में जितने ज्यादा दिनों तक बना रहता है, फायदा उतना ही ज्यादा होता है।

एनपीएस योजना को पिछले वर्ष समाधन की गई इसकी एक समस्या से भी बड़ा बल मिला है। वह समस्या थी टैक्स की। असल में एनपीएस का टैक्स ढांचा किसी भी अन्य बचत योजना के मुकाबले ज्यादा जटिल था। आलम यह था कि जब एनपीएस का कोई सदस्य सेवानिवृत्त होता था, तो उसे कुल जमा रकम का 40 फीसद हिस्सा अनिवार्य रूप से किसी एन्यूटी की खरीद के लिए रखना होता था। इस रकम पर कोई टैक्स नहीं लगता था। सदस्य शेष 60 फीसद हिस्सा निकाल सकते थे, लेकिन उस पर टैक्स लगता था। पिछले वर्ष दिसंबर से यह पूरी रकम टैक्स फ्री कर दी गई। कर्मचारी भविष्य निधि या ईपीएफ जैसी योजनाओं में यही फायदा था। सच यह है कि एनपीएस में वह 40 फीसद हिस्सा अभी भी एन्यूटी के लिए ही रखना होता है। हालांकि बहुत से सदस्य इस तरह की बाध्यता को पसंद नहीं करते। लेकिन मेरे हिसाब से उनकी दिक्कत इस बाध्यता से नहीं, बल्कि देश में उपलब्ध एन्यूटी योजनाओं की गुणवत्ता से है। मैं समझता हूं कि एनपीएस के सदस्यों का पहला जत्था जब सेवानिवृत्त होगा, उससे पहले ही एन्यूटी की यह बाध्यता भी खत्म कर दी जाएगी।

यह तो हुआ एनपीएस योजनाओं का सकारात्मक पहलू। दुर्भाग्य की बात यह है कि एनपीएस का स्वैच्छिक होना इसके विकास के रास्ते की बड़ी बाधाओं में एक है। जब से एनपीएस लांच हुई है, मैं निवेशकों और विक्रेताओं में इस योजना के प्रति रुख का बेहद करीब से अध्ययन कर रहा हूं। मुङो लगता है कि एनपीएस का स्वैच्छिक होना असली चुनौती है। इस योजना को विस्तार देने के लिए हर तरह के कदम उठाने होंगे, जिसमें टैक्स बचत से संबंधित प्रोत्साहन भी शामिल हैं।

एनपीएस की शुरुआत जिस महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी, पिछले एक दशक के दौरान उसे निवेशकों या सदस्यों का वैसा साथ मिलता नहीं दिखा। रिटायरमेंट योजना की सभी खासियतें होने के बावजूद इसके लिए रास्ते कभी आसान नहीं रहे। ऐसे में बेहतरीन रिटर्न देने के बावजूद निवेशकों ने इसे हाथों-हाथ नहीं लिया। पिछले वर्ष सरकार ने इसकी टैक्स संबंधी एक बड़ी समस्या का समाधन कर दिया है।

धीरेंद्र कुमार, सीईओ, वैल्यू रिसर्च

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