शिक्षामित्रों का समायोजन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति श्री यशवंत वर्मा के साथ बैठकर रद्द किया था।
कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में संविदा पर चयन का कोई प्राविधान नहीं है। इसलिए संविदा कर्मचारियों के समायोजन के लिए नियमावली में किये गए संशोधन 19 को भी कोर्ट ने रद्द कर दिया।
सरकार और शिक्षामित्र समूह सर्वोच्च न्यायालय गए और सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार और शिक्षामित्र की याचिका खारिज कर दी परंतु दया दिखाते हुए कहा कि प्रदेश में अगली दो भर्ती में शिक्षामित्रों को भी भाग लेने का अवसर दिया जाये। उम्र में राहत और अनुभव का भारांक भी राज्य शिक्षामित्रों को दे सकती है।
सरकार ने 68500 और 69000 दो भर्ती करने का निर्णय लिया।
68500 में मात्र 7000 शिक्षामित्र ही चयन पा सके क्योंकि चयन परीक्षा लिखित थी और उत्तीर्ण अंक निर्धारित था।
69000 में अधिक से अधिक चयन पाने के लिए शिक्षामित्र संघर्ष कर रहे हैं।
कुल शिक्षामित्रों की संख्या 1.76 लाख है , अगर 69000 भर्ती में सब शिक्षामित्र ही चयन पा जाएँ तब भी मात्र 76 हजार लोग का चयन होगा और एक लाख शिक्षामित्र शिक्षक न बन पाएंगे।
जबकि 69000 में 40 हजार से अधिक शिक्षामित्र चयन न पाएंगे अर्थात लगभग सवा लाख शिक्षामित्र शिक्षक न बन पाएंगे।
68500 भर्ती परीक्षा में एकल पीठ ने सीबीआई जांच का आदेश किया था लेकिन खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश ने सीबीआई जांच का एकल पीठ का आदेश रद्द कर दिया था।
शिक्षामित्रों ने देखा कि मात्र 7000 शिक्षामित्रों का चयन ही हुआ है इसलिए उनका मकसद है कि 68500 रद्द हो और पुनः चयन हो तो अधिक से अधिक शिक्षामित्र चयन पा जाएँ।
शिक्षामित्रों के रणनीतिकारों ने खंडपीठ के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय से स्थगन करा दिया है। इस प्रकार सीबीआई जांच का एकलपीठ का आदेश पुनः बहाल हो गया है।
सर्वोच्च अदालत का सोचना होता है कि भर्ती में धांधली होगी तो इसे रद्द करके पुनः भर्ती कराई जाए तो जो सही होगा उसका चयन हो जायेगा, जो गलत होगा वह बाहर हो जायेगा । जबकि हक़ीक़त में स्थिति बदल जाती है। परीक्षा का विकल्पीय होना अब शिक्षामित्रों की सम्भावना बढ़ा देगा। लिखित परीक्षा में शिक्षामित्र अधिक उत्तीर्ण न हो सके थे। अगर 68500 की परीक्षा विकल्पीय होती तो तीस हजार से अधिक शिक्षामित्र चयन पा जाते। अब पुनः भर्ती होने पर बीएड भी आ जायेंगे।
अतः 68500 के चयनित बीटीसी को सर्वोच्च अदालत में प्रतिवादी बनकर यह बताना होगा कि वे बिलकुल पाक-साफ हैं, कोर्ट चाहे तो उनकी जाँच करा ली जाये। जो दोषी हो उसको सजा मिले पर भर्ती रद्द न हो।
क्योंकि भर्ती रद्द होने पर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जायेगी और जो सही हैं वे भी बाहर हो जायेंगे।
प्रतिवादी वही बनें जो धांधली में संलिप्त न हों और अधिक से अधिक प्रतिवादी न्यायालय में अपना चयन बचा सकते हैं।
बिहार मामला:
बिहार राज्य के साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों ने वर्ष 2009 में स्थायी शिक्षकों के समान वेतन पाने के लिए मुकदमा किया था। नियोजित शिक्षकों का वेतन 22 से 25 हजार है जबकि स्थायी शिक्षक का वेतन 35 से 40 हजार है। पटना उच्च न्यायालय ने समान कार्य समान वेतन के आधार पर नियोजित शिक्षकों को शिक्षकों के बराबर वेतन देने का आदेश कर दिया था।
पटना उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध प्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायालय गयी और बताया कि शिक्षकों की नियुक्ति को बिहार राज्य लोकसेवा आयोग ने किया है जबकि नियोजित शिक्षकों का चयन पंचायती राज विभाग ने किया है। इनको राज्य सरकार सम्मानजनक वेतन दे रही है। राज्य सरकार अधिक खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। केंद्र का भी नियोजित शिक्षक मामले में विचार लिया जाये।
केंद्र सरकार के एजी ने बताया कि यह राज्य का मामला है।
अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय का फैसला न्यायसंगत नहीं है। नियुक्ति अथॉरिटी लोकसेवा आयोग था अगर उसने नियमावली का अनुपालन करते हुए चयन किया होता तो पूर्ण वेतन मिलता । पंचायती राज्य के द्वारा चयन के साथ ही तय था कि इनको शिक्षकों के समान वेतन नहीं मिलेगा। दोनों का नेचर भिन्न है। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय का फैसला रद्द कर दिया।
उत्तर प्रदेश के लगभग एक लाख से सवा लाख शिक्षामित्रों और अनुदेशकों सहित तमाम विभागों में कार्यरत कर्मचारियों जिनका चयन स्थायी सेवा शर्तों के साथ नहीं हुआ है, उनका कार्य आधार स्थायी कर्मचारियों के समतुल्य वेतन प्राप्त करने का सपना टूट गया।
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कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 में संविदा पर चयन का कोई प्राविधान नहीं है। इसलिए संविदा कर्मचारियों के समायोजन के लिए नियमावली में किये गए संशोधन 19 को भी कोर्ट ने रद्द कर दिया।
सरकार और शिक्षामित्र समूह सर्वोच्च न्यायालय गए और सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार और शिक्षामित्र की याचिका खारिज कर दी परंतु दया दिखाते हुए कहा कि प्रदेश में अगली दो भर्ती में शिक्षामित्रों को भी भाग लेने का अवसर दिया जाये। उम्र में राहत और अनुभव का भारांक भी राज्य शिक्षामित्रों को दे सकती है।
सरकार ने 68500 और 69000 दो भर्ती करने का निर्णय लिया।
68500 में मात्र 7000 शिक्षामित्र ही चयन पा सके क्योंकि चयन परीक्षा लिखित थी और उत्तीर्ण अंक निर्धारित था।
69000 में अधिक से अधिक चयन पाने के लिए शिक्षामित्र संघर्ष कर रहे हैं।
कुल शिक्षामित्रों की संख्या 1.76 लाख है , अगर 69000 भर्ती में सब शिक्षामित्र ही चयन पा जाएँ तब भी मात्र 76 हजार लोग का चयन होगा और एक लाख शिक्षामित्र शिक्षक न बन पाएंगे।
जबकि 69000 में 40 हजार से अधिक शिक्षामित्र चयन न पाएंगे अर्थात लगभग सवा लाख शिक्षामित्र शिक्षक न बन पाएंगे।
68500 भर्ती परीक्षा में एकल पीठ ने सीबीआई जांच का आदेश किया था लेकिन खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश ने सीबीआई जांच का एकल पीठ का आदेश रद्द कर दिया था।
शिक्षामित्रों ने देखा कि मात्र 7000 शिक्षामित्रों का चयन ही हुआ है इसलिए उनका मकसद है कि 68500 रद्द हो और पुनः चयन हो तो अधिक से अधिक शिक्षामित्र चयन पा जाएँ।
शिक्षामित्रों के रणनीतिकारों ने खंडपीठ के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय से स्थगन करा दिया है। इस प्रकार सीबीआई जांच का एकलपीठ का आदेश पुनः बहाल हो गया है।
सर्वोच्च अदालत का सोचना होता है कि भर्ती में धांधली होगी तो इसे रद्द करके पुनः भर्ती कराई जाए तो जो सही होगा उसका चयन हो जायेगा, जो गलत होगा वह बाहर हो जायेगा । जबकि हक़ीक़त में स्थिति बदल जाती है। परीक्षा का विकल्पीय होना अब शिक्षामित्रों की सम्भावना बढ़ा देगा। लिखित परीक्षा में शिक्षामित्र अधिक उत्तीर्ण न हो सके थे। अगर 68500 की परीक्षा विकल्पीय होती तो तीस हजार से अधिक शिक्षामित्र चयन पा जाते। अब पुनः भर्ती होने पर बीएड भी आ जायेंगे।
अतः 68500 के चयनित बीटीसी को सर्वोच्च अदालत में प्रतिवादी बनकर यह बताना होगा कि वे बिलकुल पाक-साफ हैं, कोर्ट चाहे तो उनकी जाँच करा ली जाये। जो दोषी हो उसको सजा मिले पर भर्ती रद्द न हो।
क्योंकि भर्ती रद्द होने पर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जायेगी और जो सही हैं वे भी बाहर हो जायेंगे।
प्रतिवादी वही बनें जो धांधली में संलिप्त न हों और अधिक से अधिक प्रतिवादी न्यायालय में अपना चयन बचा सकते हैं।
बिहार मामला:
बिहार राज्य के साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों ने वर्ष 2009 में स्थायी शिक्षकों के समान वेतन पाने के लिए मुकदमा किया था। नियोजित शिक्षकों का वेतन 22 से 25 हजार है जबकि स्थायी शिक्षक का वेतन 35 से 40 हजार है। पटना उच्च न्यायालय ने समान कार्य समान वेतन के आधार पर नियोजित शिक्षकों को शिक्षकों के बराबर वेतन देने का आदेश कर दिया था।
पटना उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध प्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायालय गयी और बताया कि शिक्षकों की नियुक्ति को बिहार राज्य लोकसेवा आयोग ने किया है जबकि नियोजित शिक्षकों का चयन पंचायती राज विभाग ने किया है। इनको राज्य सरकार सम्मानजनक वेतन दे रही है। राज्य सरकार अधिक खर्च उठाने में सक्षम नहीं है। केंद्र का भी नियोजित शिक्षक मामले में विचार लिया जाये।
केंद्र सरकार के एजी ने बताया कि यह राज्य का मामला है।
अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय का फैसला न्यायसंगत नहीं है। नियुक्ति अथॉरिटी लोकसेवा आयोग था अगर उसने नियमावली का अनुपालन करते हुए चयन किया होता तो पूर्ण वेतन मिलता । पंचायती राज्य के द्वारा चयन के साथ ही तय था कि इनको शिक्षकों के समान वेतन नहीं मिलेगा। दोनों का नेचर भिन्न है। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय का फैसला रद्द कर दिया।
उत्तर प्रदेश के लगभग एक लाख से सवा लाख शिक्षामित्रों और अनुदेशकों सहित तमाम विभागों में कार्यरत कर्मचारियों जिनका चयन स्थायी सेवा शर्तों के साथ नहीं हुआ है, उनका कार्य आधार स्थायी कर्मचारियों के समतुल्य वेतन प्राप्त करने का सपना टूट गया।
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