12460, 16448, 15000 शून्य जनपद, 06 ख और जिला वरीयता का मुद्दा
1) 01.09.2016 को कोर्ट ने यह सुझाव रखा था कि जिला वरीयता के इलाहाबाद और लखनऊ के केसेस को एक जगह एक साथ सुन लिया जाए।
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2) इस ऑर्डर को वापस लेने के लिए एप्पलीकेशन फ़ाइल की गई जिसके सबूत है 18.11.2016 का यह ऑर्डर।
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3) यदि ढाई वर्ष पहले यह गलती न की गई होती तो जिला वरीयता अब तक decide हो चुकी होती। 0 जनपद को इसी ऑर्डर की बातों को संज्ञान में लेते हुए-
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4) राम जनक मौर्य के केस में सिंगल जज के ऑर्डर को भूल कर, उस ऑर्डर के अगेंस्ट filed विभिन्न अपील को भूल कर, लखनऊ में सभी पुराने केसेस के साथ नए केसेस (सौरभ वर्मा, ऋषि कटियार और सुरभि ओमर ) को टैग कराकर इन सभी को इलाहाबाद में नदीम अहमद और मनीष विकल की याचिका से कनेक्ट करवाकर एक साथ सुनने के लिए एप्लिकेशन लगानी चाहिए।
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5) लखनऊ और इलाहाबाद दोनों जगह पैरवी करने वालो को एकमत होकर इस दिशा में कार्य करना होगा अन्यथा 3 वर्ष तो हो गए अभी 3 साल और लग जाएंगे।
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~AG
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1) 01.09.2016 को कोर्ट ने यह सुझाव रखा था कि जिला वरीयता के इलाहाबाद और लखनऊ के केसेस को एक जगह एक साथ सुन लिया जाए।
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2) इस ऑर्डर को वापस लेने के लिए एप्पलीकेशन फ़ाइल की गई जिसके सबूत है 18.11.2016 का यह ऑर्डर।
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3) यदि ढाई वर्ष पहले यह गलती न की गई होती तो जिला वरीयता अब तक decide हो चुकी होती। 0 जनपद को इसी ऑर्डर की बातों को संज्ञान में लेते हुए-
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4) राम जनक मौर्य के केस में सिंगल जज के ऑर्डर को भूल कर, उस ऑर्डर के अगेंस्ट filed विभिन्न अपील को भूल कर, लखनऊ में सभी पुराने केसेस के साथ नए केसेस (सौरभ वर्मा, ऋषि कटियार और सुरभि ओमर ) को टैग कराकर इन सभी को इलाहाबाद में नदीम अहमद और मनीष विकल की याचिका से कनेक्ट करवाकर एक साथ सुनने के लिए एप्लिकेशन लगानी चाहिए।
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5) लखनऊ और इलाहाबाद दोनों जगह पैरवी करने वालो को एकमत होकर इस दिशा में कार्य करना होगा अन्यथा 3 वर्ष तो हो गए अभी 3 साल और लग जाएंगे।
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