नई शिक्षा नीति पर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय उसका अध्ययन करें: उप राष्ट्रपति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में प्रस्तावित तीन भाषा फामरूले को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सभी पक्षों से कहा है कि वो जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय मसौदा नीति का गंभीरता से अध्ययन करें। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इस मसले पर सरकार का बचाव किया है।
वहीं, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि इस फामरूले को लागू किया गया तो क्षेत्रीय भाषाएं खत्म हो जाएंगी। माकपा का कहना है कि इससे भाषायी दुराग्रह को बल मिलेगा। तीन भाषा फामरूले में आठवीं कक्षा तक हंिदूी को अनिवार्य बनाने की सिफारिश की गई है।
उप राष्ट्रपति नायडू ने विशाखापट्टनम में एक कार्यक्रम में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे का विरोध करने वाले लोगों को अंतिम नतीजे पर पहुंचने से पहले उसका गंभीरता से अध्ययन, बहस और विश्लेषण करना चाहिए, ताकि सरकार उस पर चर्चा कराने के बाद आगे की कार्रवाई कर सके। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों के विरोध का उल्लेख करते उन्होंने कहा कि हमारे देश में कुछ लोगों की आदत है कि राजनीतिक या अन्य कारणों से वो अखबारों की हेडलाइन देखते ही विरोध शुरू कर देते हैं।

वहीं, विदेश मंत्री जयशंकर ने भी रविवार को ट्वीट कर कहा, ‘मानव संसाधन विकास मंत्री को सौंपी गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक मसौदा रिपोर्ट है। इस पर आम लोगों की राय ली जाएगी। राज्य सरकारों से परामर्श किया जाएगा। इसके बाद ही कोई फैसला किया जाएगा। भारत सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है। कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी।’

जबकि, चेन्नई में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीटर अल्फोंसे ने कहा कि अगर केंद्र सरकार द्वारा तीन भाषा फामरूले को लागू किया जाता है तो ज्यादातर गैर-हंिदूी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषाएं दम तोड़ देंगी। उन्होंने कहा कि सरकार इसके जरिए भाजपा के एजेंडे को लागू करने का प्रयास कर रही है।
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