नई दिल्ली। स्नातक को बुनियादी शिक्षा करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को अपने बच्चे की 18 वर्ष नहीं, बल्कि उसके स्नातक होने तक परवरिश करने को कहा है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर
शाह की पीठ ने बृहस्पतिवार को पारिवारिक अदालत के आदेश को पलट दिया। इसमें कर्नाटक सरकार के कर्मचारी को 18 वर्ष तक बेटे की शिक्षा का खर्च बहन करने को कहा था। पीठ ने कहा, सिर्फ 18 वर्ष तक ही वित्तीय मदद मौजूदा हालात में पर्याप्त नहीं है। अब बेसिक डिग्री कॉलेज खत्म करने के बाद ही मिलती है। दरअसल, इस कर्मचारी का जून 2005 में पहली पत्नी से तलाक हो गया था। फैमिली कोर्ट ने सितंबर, 2017 में बच्चे की परवरिश के लिए 20 हजार रुपये प्रति देने का आदेश दिया, तो उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। राहत नहीं मिलने पर शख्स ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हालांकि, कर्मचारी के बेतन महज 21 हजार होने के तर्क पर शीर्ष कोर्ट ने देय राशि 10 हजार रुपये प्रतिमाह कर दी।आखिर इसमें बच्चे का क्या दोष
सरकारी कर्मी के वकौल ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी
कहा कि तलाक इसलिए हुआ था, क्योंकि पत्नी
के दूसरे व्यक्ति से अवैध रिश्ते थे। पीठ ने इस
दलील को दुकरा दिया। कहा, इसके लिए बच्चे
को दोष नहीं दे सकते। इसमें बच्चे का क्या दोष है?
पीठ ने यह भी कहा, जब आपने दूसरी शादी की
तो आप भलीभांति जानते होंगे कि आपको पहली
शादी से जन्मे बच्चे की भी देखभाल करनी है।
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