राज्य
ब्यूरो, इलाहाबाद : प्रदेश में एक लाख सत्तर हजार शिक्षा मित्रों की
नियुक्ति पर उच्चतम न्यायालय ने रोक भले ही लगा दी है लेकिन उनकी उम्मीदें
अभी बरकरार हैं। 27 जुलाई को होने वाली सुनवाई में वह अपना पक्ष और मजबूती
से रखने की तैयारी में हैं। इसके लिए उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र
संघ के पदाधिकारियों ने दिल्ली में डेरा डाल लिया है और बड़े अधिवक्ताओं से
संपर्क कर रहे हैं। हालांकि वह ये मानकर
भी चल रहे हैं कि राज्य सरकार इस बार और तैयारी से अपना पक्ष रखेगी क्योंकि
पूरा प्रकरण उसकी साख से भी जुड़ा हुआ है।
उत्तर प्रदेश में लगभग डेढ़ लाख शिक्षा मित्रों को नियुक्तियां दी जा चुकी हैं और लगभग बीस हजार को दिया जाना बाकी है। शिक्षा मित्रों का मानना है कि इससे पहले उनका पक्ष मजबूती से रखने में चूक हुई। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के महामंत्री पुनीत चौधरी कहते हैं कि अभी तो हाईकोर्ट में ही दो दर्जन से अधिक मुकदमे विचाराधीन हैं। उनका फैसला आना बाकी है। इसके अलावा बगल के ही उत्तराखंड में राज्य सरकार शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित कर चुकी है। संभवत: पिछली बार कोर्ट को यह स्पष्ट नहीं किया जा सका कि राज्य सरकार ने जिन शिक्षा मित्रों को समायोजित किया है, वे स्नातक हैं और प्रशिक्षण प्राप्त हैं।
संघ के पदाधिकारियों के अनुसार यह मसला राज्य सरकार के अधिकारों की भी व्याख्या करेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय खुद यह स्वीकार कर चुका है कि शिक्षा मित्रों के संबंध में कई फैसले राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं। पंजाब के पटियाला जिले निवासी कुलदीप सिंह द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगे गए जवाब में मंत्रालय के अपर सचिव ने यह स्पष्ट कहा है कि शिक्ष मित्र के वेतन, उनके पे स्केल, तथा भविष्य में उन्हें टीईटी से छूट दिया जाना राज्य के कार्यक्षेत्र में आता है। इसके अलावा प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के प्रांतीय मंत्री मुन्साद अली के भी एक सवाल पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के अवर सचिव मंजीत कुमार ने स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षा मित्रों का मानदेय बढ़ाने से संबंधित निर्णय लेने का मामला उत्तर प्रदेश शासन के अधीन आता है, केंद्र सरकार की इसमें कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होनी है।
उत्तर प्रदेश में लगभग डेढ़ लाख शिक्षा मित्रों को नियुक्तियां दी जा चुकी हैं और लगभग बीस हजार को दिया जाना बाकी है। शिक्षा मित्रों का मानना है कि इससे पहले उनका पक्ष मजबूती से रखने में चूक हुई। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के महामंत्री पुनीत चौधरी कहते हैं कि अभी तो हाईकोर्ट में ही दो दर्जन से अधिक मुकदमे विचाराधीन हैं। उनका फैसला आना बाकी है। इसके अलावा बगल के ही उत्तराखंड में राज्य सरकार शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित कर चुकी है। संभवत: पिछली बार कोर्ट को यह स्पष्ट नहीं किया जा सका कि राज्य सरकार ने जिन शिक्षा मित्रों को समायोजित किया है, वे स्नातक हैं और प्रशिक्षण प्राप्त हैं।
संघ के पदाधिकारियों के अनुसार यह मसला राज्य सरकार के अधिकारों की भी व्याख्या करेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय खुद यह स्वीकार कर चुका है कि शिक्षा मित्रों के संबंध में कई फैसले राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं। पंजाब के पटियाला जिले निवासी कुलदीप सिंह द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगे गए जवाब में मंत्रालय के अपर सचिव ने यह स्पष्ट कहा है कि शिक्ष मित्र के वेतन, उनके पे स्केल, तथा भविष्य में उन्हें टीईटी से छूट दिया जाना राज्य के कार्यक्षेत्र में आता है। इसके अलावा प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के प्रांतीय मंत्री मुन्साद अली के भी एक सवाल पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के अवर सचिव मंजीत कुमार ने स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षा मित्रों का मानदेय बढ़ाने से संबंधित निर्णय लेने का मामला उत्तर प्रदेश शासन के अधीन आता है, केंद्र सरकार की इसमें कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 27 जुलाई को होनी है।
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