नई दिल्ली आठवीं तक के छात्रों को हर हाल में पास करने का नियम नए सिरे से कसौटी पर
है। इसके सही नतीजे नहीं आते देख कर नियम को तीसरी या पांचवीं कक्षा तक
सीमित किया जा सकता है। बुधवार को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब) की
बैठक में केंद्र, राज्य सरकारों और विशेषज्ञों के बीच इस पर चर्चा होनी है।
इसी तरह स्कूली बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने के लिए केंद्र ने नए सिरे से निर्देश तैयार किए हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रलय के एक वरिष्ठ सूत्र के मुताबिक, ‘बहुत से राज्यों से इस संबंध में नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। इस बारे में विचार करने के लिए गठित की गई केब की उप समिति ने भी इसे क्रमिक रूप से ही लागू करने की सिफारिश की है। ऐसे में अब केब की राय जानना अहम होगा।’ इस उप समिति की रिपोर्ट शिक्षा क्षेत्र की इस शीर्ष संस्था की बैठक के एजेंडे में शामिल है। मार्च की बैठक में भी कई राज्यों ने इस पर मंत्रलय के सामने अपनी चिंता रखी थी। ऐसे में मुमकिन है कि इस नियम को आठवीं के बजाय तीसरी या पांचवी तक सीमित कर दिया जाए या फिर कुछ समय के लिए पूरी तरह से हटा दिया जाए।‘फेल नहीं करने के नियम को लेकर सरकारी स्कूलों में जो जरूरी तैयारी की जानी थी, वह नहीं हो सकी है। साथ ही परीक्षा के बजाय नियमित आकलन के लिए पहले शिक्षकों को प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है। इन्हीं वजहों से फेल नहीं करने इस नीति के बाद बहुत से सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर गंभीरता और कम हो गई है।’ हरियाणा की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल की अध्यक्षता में बनी केब की उप समिति भी अपनी सिफारिश में कहती है, ‘व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो इस व्यवस्था का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है।
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मानव संसाधन विकास मंत्रलय के एक वरिष्ठ सूत्र के मुताबिक, ‘बहुत से राज्यों से इस संबंध में नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। इस बारे में विचार करने के लिए गठित की गई केब की उप समिति ने भी इसे क्रमिक रूप से ही लागू करने की सिफारिश की है। ऐसे में अब केब की राय जानना अहम होगा।’ इस उप समिति की रिपोर्ट शिक्षा क्षेत्र की इस शीर्ष संस्था की बैठक के एजेंडे में शामिल है। मार्च की बैठक में भी कई राज्यों ने इस पर मंत्रलय के सामने अपनी चिंता रखी थी। ऐसे में मुमकिन है कि इस नियम को आठवीं के बजाय तीसरी या पांचवी तक सीमित कर दिया जाए या फिर कुछ समय के लिए पूरी तरह से हटा दिया जाए।‘फेल नहीं करने के नियम को लेकर सरकारी स्कूलों में जो जरूरी तैयारी की जानी थी, वह नहीं हो सकी है। साथ ही परीक्षा के बजाय नियमित आकलन के लिए पहले शिक्षकों को प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है। इन्हीं वजहों से फेल नहीं करने इस नीति के बाद बहुत से सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर गंभीरता और कम हो गई है।’ हरियाणा की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल की अध्यक्षता में बनी केब की उप समिति भी अपनी सिफारिश में कहती है, ‘व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो इस व्यवस्था का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है।
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