एक शिक्षक की आत्मकथा‬ : शिक्षकों के वेतन संकट पर सार्थक ....... : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

वेतन और घर के खर्चे के बीच
एक निश्चित सी दूरी रह जाती है
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है ।


नया साल आया, सबने मनाया
अपनों ने बुलाया,मगर जा न पाया
किस मुँह से कहूँ , वेतन नहीं आया
एक टीस सी उठती है और मन में ही रह जाती है
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
बच्चे अब खिलौने नहीं मांगते हैं
पिता की मजबूरी को पहचानते हैं
पैसे नहीं हैं, वो ये जानते हैं
मुस्कुराती आँखों में उदासी नजर आती है
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
शिकन उसके माथे पे आती नहीं है
परेशानी पत्नी बताती नहीं है
आँखों में आँसू भी लाती नहीं है
उसकी इच्छाएँ कभी थोड़ी कभी पूरी रह जाती हैं
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
घर का किराया, पिता की दवाई
लोन की किश्तें, बच्चों की पढ़ाई
बढ़ती मँहगाई, उस पर ये ईएमआई
बहुत कुछ मेरी मजबूरी कह जाती है
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
ये मुझको ही मालूम या उसको पता है
कि खाते में न एक धेला बचा है
शिक्षक के परिवार की बस इतनी खता है
हमें व्यापार या राजनीति नहीं आती है
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
हमारे ही वोटों से चमके हो बाबू
घूमते हो नेता जो बनके ओ बाबू
जी में आता है मिलके कहूँ तुमसे बाबू
शिक्षक की बदहाली नजर नहीं आती है ?
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
बहुत सुन लिया पर न अब हम रुकेंगे
अन्याय के साथ अब हम लड़ेंगे
झुकाते हैं जो उनको झुकना पड़ेगा
वेतन हमें जल्द देना पड़ेगा
शिक्षक होना उन्हें हमारी कमजोरी नजर आती है?
हर बार कोई ख्वाहिश अधूरी रह जाती है।
-किरण बाला
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