जासं, इलाहाबाद : सवा महीने पहले जिस सातवें वेतन आयोग को लेकर कर्मचारियों की बांछें खिली हुई थीं। उसकी अधिसूचना जारी होने के बाद कर्मचारियों के चेहरों पर हंसी गायब हो गई है। पहले कर्मचारी दिनभर वेतन आयोग की चर्चा करते थकते नहीं थे, अब बात छिड़ने पर जी चुराते हैं।
कहते हैं क्या बात करें। केंद्र सरकार ने कर्मचारियों को सपना दिखाया। वेतन आयोग के नाम पर धोखा देकर सपनों पर पानी फेर दिया। 1अवकाश के दिन रविवार को जब राज्य कर्मचारी कचहरी रोड स्थित सदर तहसील में जुटे तो बातों में सातवें वेतन आयोग की बात निकल पड़ी। कुछ कर्मचारियों का अपना तर्क था, कई बात करने से भी हिचक रहे थे। फिर भी एक ने समझाने के अंदाज में कहा, भाई क्यों इसकी बात छेड़कर जख्मों को कुरेद रहे हो। इस वेतन आयोग से इतने जख्म मिल रहे हैं कि हो सकता है इसका दर्द आठवें वेतन आयोग आने तक बना रहे। इतने में उप्र राज्य कर्मचारी महासंघ के जिला अध्यक्ष नरसिंह बोल पड़े, केंद्र ने कर्मचारियों से साथ छल किया है। हमारी मांग थी कि न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये हो। उसे 18,000 पर लाकर थाम दिया। जब-जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई, कर्मचारियों के सपनों पर तुषारापात कर दिया। पहले पेंशन व्यवस्था खत्म कर दी, अब 70 दशक का सबसे खराब वेतन आयोग लागू किया। कर्मचारी फिर अपने-अपने विभाग की चर्चा करने लगे। लेखपाल संघ के जिला अध्यक्ष रामसिंह यादव वेतन आयोग के मोह में फिर उलझ गए। कहा कि अब तो 600 अर्जित अवकाश की हमारी मांग भी पूरी नहीं होगी। प्रदेश सरकार केंद्र को नजीर बनाकर इससे खारिज कर देगी। इसके बाद वहां पर कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया। राज्य कर्मचारी महासंघ के उपाध्यक्ष राजेंद्र तिवारी बोले, वित्तमंत्री अरुण जेटली के अड़ियल रवैये का दंश केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों को ङोलना पड़ेगा। पूरी नौकरी के दौरान तीन बार ही एसीपी का लाभ मिल पाएगा। 10, 20, 30 साल पर ही मिलेगा। अगर कर्मचारियों को पांच एसीपी मिलते तो बात बने। कर्मचारी नेता शिवनरेश मिश्र और राजाराम प्रजापति का दर्द पर जुबान पर आ गया। हम तो उम्मीद लगाए थे कि पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल हो जाएगी। अगर कर्मचारियों को केंद्र सरकार ने जोरदार झटका दे दिया। चर्चा अभी बढ़ती कि कुछ लोग उनके बीच पहुंच गए। उन्हें देखते ही कर्मचारी नेताओं में ठहाका लगा। उन्हें एक पार्टी में जाना था, वे सातवें वेतन आयोग की चर्चा में ऐसे खोये कि पार्टी का ख्याल ही जाता रहा।
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कहते हैं क्या बात करें। केंद्र सरकार ने कर्मचारियों को सपना दिखाया। वेतन आयोग के नाम पर धोखा देकर सपनों पर पानी फेर दिया। 1अवकाश के दिन रविवार को जब राज्य कर्मचारी कचहरी रोड स्थित सदर तहसील में जुटे तो बातों में सातवें वेतन आयोग की बात निकल पड़ी। कुछ कर्मचारियों का अपना तर्क था, कई बात करने से भी हिचक रहे थे। फिर भी एक ने समझाने के अंदाज में कहा, भाई क्यों इसकी बात छेड़कर जख्मों को कुरेद रहे हो। इस वेतन आयोग से इतने जख्म मिल रहे हैं कि हो सकता है इसका दर्द आठवें वेतन आयोग आने तक बना रहे। इतने में उप्र राज्य कर्मचारी महासंघ के जिला अध्यक्ष नरसिंह बोल पड़े, केंद्र ने कर्मचारियों से साथ छल किया है। हमारी मांग थी कि न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये हो। उसे 18,000 पर लाकर थाम दिया। जब-जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई, कर्मचारियों के सपनों पर तुषारापात कर दिया। पहले पेंशन व्यवस्था खत्म कर दी, अब 70 दशक का सबसे खराब वेतन आयोग लागू किया। कर्मचारी फिर अपने-अपने विभाग की चर्चा करने लगे। लेखपाल संघ के जिला अध्यक्ष रामसिंह यादव वेतन आयोग के मोह में फिर उलझ गए। कहा कि अब तो 600 अर्जित अवकाश की हमारी मांग भी पूरी नहीं होगी। प्रदेश सरकार केंद्र को नजीर बनाकर इससे खारिज कर देगी। इसके बाद वहां पर कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया। राज्य कर्मचारी महासंघ के उपाध्यक्ष राजेंद्र तिवारी बोले, वित्तमंत्री अरुण जेटली के अड़ियल रवैये का दंश केंद्रीय और राज्य कर्मचारियों को ङोलना पड़ेगा। पूरी नौकरी के दौरान तीन बार ही एसीपी का लाभ मिल पाएगा। 10, 20, 30 साल पर ही मिलेगा। अगर कर्मचारियों को पांच एसीपी मिलते तो बात बने। कर्मचारी नेता शिवनरेश मिश्र और राजाराम प्रजापति का दर्द पर जुबान पर आ गया। हम तो उम्मीद लगाए थे कि पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल हो जाएगी। अगर कर्मचारियों को केंद्र सरकार ने जोरदार झटका दे दिया। चर्चा अभी बढ़ती कि कुछ लोग उनके बीच पहुंच गए। उन्हें देखते ही कर्मचारी नेताओं में ठहाका लगा। उन्हें एक पार्टी में जाना था, वे सातवें वेतन आयोग की चर्चा में ऐसे खोये कि पार्टी का ख्याल ही जाता रहा।
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