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Ganesh Dixit : सभी राज्य या प्रदेशों के लिये 23 अगस्त 2010 के बाद शिक्षक भर्ती के नियम आरटीई एक्ट के अनुरूप एकसमान

हमारी जंग निर्णायक दौर में है इसलिये संघर्ष कड़ा है और एक गजब की संगठनशक्ति की आवश्यकता इस समय और परिस्थिति की माँग है ।
कल आपके विरोध में अध्यापक के भाव कम देखने को मिले , कमेन्ट पढ़कर ऐसा लग रहा था की उत्तर प्रदेश चुनाव में जातियों/धर्मों की प्रतियोगिता हो रही है और सभी लोग अपने जातीय और धार्मिक आधार पर पार्टियों को वोट की बात करने लगे , ये कदापि शिक्षक योग्य आचरण नहीँ है ।
शिक्षक की कोई जाति या धर्म नहीँ होता ।
हम किसी पार्टी को जीता या हरा नहीँ रहे । हम तो बस शिक्षहितों और वैधानिकता की बात कर रहे हैं ।
अगर वर्तमान में उत्तर प्रदेश की सपा सरकार प्राथमिक शिक्षा में कानूनी रूप से वैधानिक कार्य करती तो निसंदेह हमें इसके विरोध का कोई नैतिक अधिकार नहीँ था ,पर इस सरकार ने कोर्ट के आदेशों को धता बताते हुये मनमानी पूर्वक असम्वैधानीक कार्य किये जिससे हमारा अहित हुआ और इसीलिये हमने विरोध किया ।
वोट किसे देना है ,ये हर व्यक्ति का निजी मामला है और इसमें वो अपनी ज़रूरत और सूझबूझ से काम ले ।
बस यही कहूँगा की अपनी बात को अवश्य रखें पर शिक्षक के आचरण के अनुरूप ।
बाकी किसी नेता या पार्टी की क्षमता नहीँ की हमारे मामलों का वो निर्णय कर सके , हमारे मामलों में सुप्रीम कोर्ट निर्णय करेगा और हमें आज तक जो भी मिला वो कोर्ट से ही मिला है और आगे भी वहीँ से आशा है ,क्योंकि हम सही हैं , सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने वाले हैं और हम कानूनन वैध भी हैं ।
अब रही शिक्षामित्रों या उर्दू अध्यापकों या अन्य भर्तियों से चयनित अध्यापकों के विरोध की तो यहाँ सभीको ये संज्ञान रखना होगा की शिक्षामित्र हमारे दुश्मन नहीँ हैं ।
और न ही हमें उनके अध्यापक पद दिये जाने से आपत्ति है । हम तो केवल कानून के विरुद्ध समायोजन का विरोध करते हैं । और आगे भी सदा न्याय मिलने तक करेंगे ।
जैसे की सभी को विदित है की पूरे देश में आरटीई एक्ट लागू है अर्थात सभी राज्य या प्रदेशों के लिये 23 अगस्त 2010 के बाद शिक्षक भर्ती के नियम आरटीई एक्ट के अनुरूप एकसमान हैं ।
जिसमें शिथिलता का अधिकार अब केवल भारत की संसद को है ,अर्थात लोकसभा में फ़िर राज्यसभा में बिल पास होकर राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर हों । या
केन्द्र सरकार नया अध्यादेश लाकर आरटीई एक्ट को बदले और छः माह के अंदर संसद से इसे पारित करवाकर राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर करवा कानून बनाये ।
उपरोक्त के अलावा अब भारतवर्ष में कोई ऐसी शक्ति नहीँ जो 23 अगस्त 2010 के बाद होने वाली भर्ती में टीईटी से छूट या आरटीई एक्ट में शिथिलता बरतने की अनुमति दे या ये करने की शक्ति भी रखती हो ।
जैसा की स्पष्ट है की टीईटी में छूट या आरटीई एक्ट में बदलाव की शक्ति केवल और केवल केन्द्र सरकार के पास है ।
और ऐसे में अब अगर केन्द सरकार भी आरटीई एक्ट में शिथिलता की कोशिश करेगी तो जिस दिन अध्यादेश जारी होगा ,वो नियम तब से ही लागू होगा ।
अर्थात रेट्रोस्पेक्टिव में कोई कानून लागू नहीँ होता ,मतलब शिक्षामित्रों का बिना टीईटी समायोजन तो अवैध है ही ,जिस पर सहायक अध्यापक बन पाना असम्भव है , शिक्षामित्रों के साथ धोखा किया गया ।
विशेष बात ये रही की शिक्षामित्रों की अगुवाई करने वाले शिक्षामित्र संगठनों के नेता अनपढ़ और स्वार्थी सरीखे हैं जो अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकते रहे और उत्तर प्रदेश सरकार इनके साथ छल करती रही ।
इसीलिये हाइकोर्ट ने इस समायोजन को अवैध करार दिया ।
अब थोड़ा बारीकी से गत पाँच वर्ष में उत्तर प्रदेश हुई प्राथमिक शिक्षकों की भर्तियों के अदालती पेंच को समझते हैं -
1-सारी भर्तियों में सुप्रीम कोर्ट को केवल ये सिद्ध करना है की भारत की केन्द्र सरकार या राज्य सरकार में से शिक्षक भर्ती के नियम बनाने का किसे अधिकार हैं और किसके नियम लागू होंगे ।
2- इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्णय गलत हैं या सही ।
और गहराई से समझने की कोशिश करें तो ये लड़ाई उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा नियमावली के भर्ती नियमों में किये गये 12 वें , 15 वें , 16 वें , 19 वें संशोधनों के वैधानिकता की है ।
1- 12 वें संशोधन से 72825 भर्ती हो रही है , जिसे वर्तमान सपा सरकार ने रद्द कर दिया था पर माननीय हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद सपा सरकार इसे करने को विवश हुई और इसीलिए सदा ही प्रशासन ने इस भर्ती से चयनित हुये लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया जबकि हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हर जगह इस संशोधन को कानूनन वैध माना गया और 72825 भर्ती की जीत हुई जबकि उत्तर प्रदेश की सपा सरकार सर्वदा इसके विरोध में रही और इस भर्ती को फँसाने के लिये नाना प्रपंच किये और बदस्तूर अभी भी करने में लगे हुये हैं और इसी भेदभावपूर्ण मानसिकता के चलते अभी तक चयनित लोगों को पूरा वेतन नहीँ दिया गया है और अच्य्नीत के लिये सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीँ किया जा रहा है , इस अवज्ञा के लिये सरकार और विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को अदालत ज़रूर दण्डित करेगी और हम इसकी पुरजोर माँग करेंगे ।
इस केस की सुनवाई आगामी 22 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में होनी तय है ।
2- 15 वें और 16 वें संशोधनों से जूनियर स्कूलों में विज्ञान/गणित की 29000 से अधिक भर्ती और विभिन्न चरणों (10000+15000+16000) और वर्तमान में 12000 भर्ती गतिमान है और साथ ही साथ उर्दू अध्यापकों की भर्ती भी हुई ,
हाइकोर्ट की 8-10 सिंगल और डबल बेंच के अलग अलग केसों में हर आदेश में इस संशोधन को सम्विधान विरुद्ध मानते हुये खारिज कर दिया और इस संशोधन के आधार पर हुई भर्तियों को अवैध करार दिया ,
हाइकोर्ट से इन भर्तियों को अवैध करार दिये जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश की सपा सरकार हठधर्मिता दिखाते हुये अदालतों के आदेशों की अवहेलना करती रही और इस सरकार के वफादार अधिकारी अरबों रुपये इन भर्तियों में गलत चयनित लोगों पर लुटा रही है ।
इसकी सुनवाई 30-01-2017 को सुप्रीम कोर्ट में होनी तय हुई है ।
3- 19 वें संशोधन के द्वारा उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने प्रदेश के 140000 शिक्षामित्रों का समायोजन बिना किसी मानक और योग्यता को निर्धारित करते हुये सहायक अध्यापक पद पर कर दिया और प्रदेश का अरबों का खजाना अवैध तरीके से लुटा दिया गया । सपा सरकार ने शिक्षामित्रों को अपनी पार्टी के कार्यकर्ता की तरह विद्यालयों में तैनात किया ।
पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इनके समायोजन को पूर्णतः अवैध बताते हुये इनके समायोजन को 20 ठोस बिंदुओं के आधार पर खारिज कर दिया ।
एक बार फ़िर सपा सरकार ने अदालत के आदेश को हवा में उड़ाते हुये अदालत द्वारा अपदस्थ इन शिक्षामित्रों को सपा सरकार आगामी विधानसभा चुनावों में चुनावअधिकारी के रूप में ड्यूटी लगवाकर अपने नापाक मंसूबे में सफल रही ।
सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्र केस की सुनवाई आगामी 22 फरवरी को होगी ।
शेष फ़िर....
वोट के लिये सभी व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्र हैं और सोच-समझ कर जाति/धर्म के आधार पर मतदान करने जैसी राष्ट्रविरोधी बुराइयों को दरकिनार कर एक अध्यापक का दायित्व निभायेंगे ।
आपका - गणेश शंकर दीक्षित
टीईटी संघर्ष मोर्चा,उ.प्र.
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