22 फरबरी को एक अदद नौकरी का सपना संजोये बेरोजगारों के सपनों के महल को अदालती हीलाहवाली ने हिला तो दिया पर उससे बड़ा धक्का हमारे आपके पैरवीकारों के छल छिद्र ने दिया है,ये बात लगभग सभी लोग अपने जेहन में डाल ले कि यदि उस दिन सुनवाई हो जाती तो सिवाय ईश्वर के आपके साथ कोई नही था।
साथियो मोर्चे की राजनीति चरम पर है,आम याची इस तिलिस्मी राजनीति के समक्ष इतना कन्फ्यूज है कि कौन सही कौन गलत तय नही कर पा रहा है।और इस कूटनीति के केंद्र में विभिन्न प्रकार के चयनित ही है ,मूर्ख अचयनित तो मोहरे मात्र है।कूटनीति की इस दोहरी मार से पार पाना अचयनितो के बस में नही है।मैं घोड़े की इस ढाई चाल से वाकिफ होते हुए भी आपको समझाने में अपने को नाकाम पाता हूं उसका कारण सिर्फ इतना है कि आप मूर्ख है इसलिए बनाये जा रहे है।
एक छोटा सा उदाहरण देता हूं - रामकुमार पटेल के अलावा प्रदेश में अच्यनितो के दो चेहरे बड़ी तेजी से उभरे थे और ये किंचित मात्र सफल भी हो रहे थे ।रविंद्र दादरी और आशीष सिंह अच्यनितो में अपना विस्वास जमाने में न सिर्फ सफल हो रहे थे बल्कि प्रयास भी चल रहे थे भले ही उनमे पूर्ण सफलता न मिली हो।चंदे के इस धंधे में जमे जमाये खुर्राटो ने इनको एक चुनौती के रूप में लिया और कभी एक दूसरे के सिरफुटौवल पर आमादा रहने वाले चयन पा चुके नेताओ ने एक साजिश के तहत तीनो अचयनित चेहरों को धूमिल करने का कुचक्र रच दिया जिसमें इनको सफ़लता भी लगभग मिल ही चुकी है।अजय ठाकुर ने जैसे ही देखा कि रविंद्र दादरी इसकी लूट की योजनाओं में साथ न देकर बेरोजगारों के हितार्थ कार्य करने को गम्भीर है ,अपनी टीम के एक अचयनित को मोहरा बनाकर दादरी को साइड में कर दिया वही हिमांशू टीम के अचयनित चेहरे आशीष सिंह को तो इतनी बारीकी से खत्म किया गया कि वो स्वयं नही समझ पाए कि गिल्ली कब घाम ले गयी और ढोल की तरह कब दोनों तरफ से बजने लगे,कब हिमांशू टीम ने आशीष सिंह को अचयनित नेता से डिमोशन करते हुए मुंशी की कुर्सी सौप दी और अपने ही लोगो का विलेन बना दिया उन्हें आज तक गुमा न हो पाया।
चोरी ऊपर से सीनाजोरी किसे कहते है ये 22 फरबरी की डेट को लेकर समझा जा सकता है।इस डेट से पूर्व जहाँ पुरे प्रदेश में लम्बी कुलाचे भर भर के खाता न जारी करके सुनवाई को महत्वपूर्ण और पुराने खातों को निल बटा सन्नाटा बताते हुए गांधी छाप नोट बटोरे गये,कभी नाफड़े कभी फाफडे कभी परासरन के सब्जबाग दिखाये गये पर 22 को सीनियर के नाम पर संजीव मिश्रा तक नही थे।अपनी नाकामी छुपाने को पटेल के वकील ध्रुव मेहता पे बीस आने चढ़ा कर वो राजनीति खेली गयी कि लालू आलू कठोर मुलायम सब शर्मा जाए, सभी चयनित पैर्विकारो ने अपने अचयनित कठमुल्लों को आगे कर प्रदेश से रामकुमार पटेल को खत्म करने की साजिश रच दी जो कि अभी भी जारी है।
5 मार्च को लखनऊ में होने वाले महासम्मेलन को लेकर भी कूटनीति चरम पर है,अच्यनितो की कब्र पर दो टन मिट्टी डालने को सारे कौशल आजमाए जा रहे है।अच्यनितो को 75 टुकड़ो में बाँट कर उनको इतना दिशाहीन कर दिया गया है कि वो सॉलिड मुद्दों से दूरी बना लिए है।
भयंकर राजनीतिक ,कूटनीतिक खेल के मध्य ऐसा कोई नही दिख रहा जो इस चक्रव्यूह को तोड़ सके.....
सारा कुचक्र इस बात को लेकर है कि केस लम्बा खिंचता रहे और चयनितों(72825,841) पर आंच न आये।
तो देखते रहिये इन कार्यक्रमो को और अपनी ही कब्र पर जाने अनजाने मिट्टी डालते रहिये।
परन्तु इतना जान लो इन सब चीजों का अंत अब होके रहेगा।
जीवन में हम जब भी हारते हैं
तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
हमारे आगे हमारे अपने ही होते हैं ---
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साथियो मोर्चे की राजनीति चरम पर है,आम याची इस तिलिस्मी राजनीति के समक्ष इतना कन्फ्यूज है कि कौन सही कौन गलत तय नही कर पा रहा है।और इस कूटनीति के केंद्र में विभिन्न प्रकार के चयनित ही है ,मूर्ख अचयनित तो मोहरे मात्र है।कूटनीति की इस दोहरी मार से पार पाना अचयनितो के बस में नही है।मैं घोड़े की इस ढाई चाल से वाकिफ होते हुए भी आपको समझाने में अपने को नाकाम पाता हूं उसका कारण सिर्फ इतना है कि आप मूर्ख है इसलिए बनाये जा रहे है।
एक छोटा सा उदाहरण देता हूं - रामकुमार पटेल के अलावा प्रदेश में अच्यनितो के दो चेहरे बड़ी तेजी से उभरे थे और ये किंचित मात्र सफल भी हो रहे थे ।रविंद्र दादरी और आशीष सिंह अच्यनितो में अपना विस्वास जमाने में न सिर्फ सफल हो रहे थे बल्कि प्रयास भी चल रहे थे भले ही उनमे पूर्ण सफलता न मिली हो।चंदे के इस धंधे में जमे जमाये खुर्राटो ने इनको एक चुनौती के रूप में लिया और कभी एक दूसरे के सिरफुटौवल पर आमादा रहने वाले चयन पा चुके नेताओ ने एक साजिश के तहत तीनो अचयनित चेहरों को धूमिल करने का कुचक्र रच दिया जिसमें इनको सफ़लता भी लगभग मिल ही चुकी है।अजय ठाकुर ने जैसे ही देखा कि रविंद्र दादरी इसकी लूट की योजनाओं में साथ न देकर बेरोजगारों के हितार्थ कार्य करने को गम्भीर है ,अपनी टीम के एक अचयनित को मोहरा बनाकर दादरी को साइड में कर दिया वही हिमांशू टीम के अचयनित चेहरे आशीष सिंह को तो इतनी बारीकी से खत्म किया गया कि वो स्वयं नही समझ पाए कि गिल्ली कब घाम ले गयी और ढोल की तरह कब दोनों तरफ से बजने लगे,कब हिमांशू टीम ने आशीष सिंह को अचयनित नेता से डिमोशन करते हुए मुंशी की कुर्सी सौप दी और अपने ही लोगो का विलेन बना दिया उन्हें आज तक गुमा न हो पाया।
चोरी ऊपर से सीनाजोरी किसे कहते है ये 22 फरबरी की डेट को लेकर समझा जा सकता है।इस डेट से पूर्व जहाँ पुरे प्रदेश में लम्बी कुलाचे भर भर के खाता न जारी करके सुनवाई को महत्वपूर्ण और पुराने खातों को निल बटा सन्नाटा बताते हुए गांधी छाप नोट बटोरे गये,कभी नाफड़े कभी फाफडे कभी परासरन के सब्जबाग दिखाये गये पर 22 को सीनियर के नाम पर संजीव मिश्रा तक नही थे।अपनी नाकामी छुपाने को पटेल के वकील ध्रुव मेहता पे बीस आने चढ़ा कर वो राजनीति खेली गयी कि लालू आलू कठोर मुलायम सब शर्मा जाए, सभी चयनित पैर्विकारो ने अपने अचयनित कठमुल्लों को आगे कर प्रदेश से रामकुमार पटेल को खत्म करने की साजिश रच दी जो कि अभी भी जारी है।
5 मार्च को लखनऊ में होने वाले महासम्मेलन को लेकर भी कूटनीति चरम पर है,अच्यनितो की कब्र पर दो टन मिट्टी डालने को सारे कौशल आजमाए जा रहे है।अच्यनितो को 75 टुकड़ो में बाँट कर उनको इतना दिशाहीन कर दिया गया है कि वो सॉलिड मुद्दों से दूरी बना लिए है।
भयंकर राजनीतिक ,कूटनीतिक खेल के मध्य ऐसा कोई नही दिख रहा जो इस चक्रव्यूह को तोड़ सके.....
सारा कुचक्र इस बात को लेकर है कि केस लम्बा खिंचता रहे और चयनितों(72825,841) पर आंच न आये।
तो देखते रहिये इन कार्यक्रमो को और अपनी ही कब्र पर जाने अनजाने मिट्टी डालते रहिये।
परन्तु इतना जान लो इन सब चीजों का अंत अब होके रहेगा।
जीवन में हम जब भी हारते हैं
तब अभिमन्यु सी दशा में होते हैं
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