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शिक्षामित्रों की सबसे बड़ी कमजोरी

*हम शिक्षामित्रों की सबसे बड़ी कमजोरी*
जब कोई अच्छी न्यूज़ आती है तो हम बहुत खुश और कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो जाते हैं और जब कोई बुरी खबर मिलती है तो कुछ ज्यादा ही दुखी और हतोत्साहित हो जाते है।
कोई बुरी खबर पढ़ते ही हम अपने संघर्षो, 16 वर्षों की मेहनत, और बेहद कम मानदेय में विद्यालयों को सींचना भूल जाते हैं। सिर्फ नौकरी जाने के बारे में सोचने लगते हैं।
पहले एक बात अपने मन मे अच्छे से बिठा लो, कि ये नौकरी हमको अपने संघर्षो और कार्य के बल पर मिली है और ये आजीवन हमारी ही रहेगी। कोई इसे छीन नही सकता। इसके लिए सिर्फ 17 मई तक इन्तिज़ार ही तो करना है। लेकिन हमसे न इन्तिज़ार होता है न भरोसा। और 72 लोगों के कातिल हिमांशु की बात पर भरोसा करने में एक पल नही लगता है।
कुछ पुराने पन्ने पलट कर देखिये कि आज तक भारत के आज़ाद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 1.5 लाख लोगों की नौकरी छीनी है???
हम कोर्ट की वही न्यूज़ जानते हैं जो वकील कहते हैं। जज ने क्या कहा, ये 17 को ही पता चलेगा।
तब तक व्यस्त रहें, मस्त रहें, फालतू बातों पर ध्यान न दें, हो सके तो इंटरनेट कम चलाएं और ईश्वर और अपने कर्मो पर भरोसा रखें।

धन्यवाद।

शैलेश श्रीवास्तव, निघासन।
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