इलाहाबाद (एसएनबी)। फ्री की नौकरी पाने वाले शिक्षामित्रों को जोर का झटका
बहुत ही धीरे लगा है जब माननीय सुप्रीम कोर्टने उनके शिक्षक बनने पर ही
प्रश्नचिह्न लगा दिया है।इससे शिक्षामित्रों के होश उड़ गये है। वह अब जमीन
पर आ गये है। किस तरह से नौकरी बची रहे उसकी तैयारियों में लग गये है।जबकि
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2010 से लागू हुआ है।
इसकी चपेट में आने से परिषदीय विद्यालयों में शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक बन चुके डेढ़ लाख शिक्षामित्र आ गये है जबकि अभी दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन होना बाकी है।
इसके पहले तक शिक्षामित्र मात्र संविदा कर्मीथी लेकिन फ्री की नौकरी मिलने पर वह फूले नहीं समा रहे थे। उनके फूलने की हवा निकल चुकी है।यह लोग अब किसी तरह से नौकरी बचाने में लगे हुए है जबकि मामले का फैसला सुप्रीम कोर्टसे 29 जुलाईको होने वाला है, वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ में भी मामले की सुनवाई जारी है। उधर, इसके पूर्वशिक्षाधिकारियों ने कई बार शिक्षामित्रों से टीईटी करने के लिए कहा लेकिन यह लोग प्रदेश सरकार की शह मिलने पर मदमस्त हो गये थे लेकिन हवा निकलने के बाद जग गये है। प्रदेश की सपा सरकार ने साढ़े तीन लाख संविदा कर्मी शिक्षामित्रों को स्थायी करने की पहल दो वर्ष पहले से शुरू कर दिया था।इसके पीछे जहां वोट बैंक की राजनीति थी वहीं शिक्षामित्रों को धोखे में भी रखा गया।प्रदेश सरकार ने आनन-फानन में शिक्षामित्रों को शिक्षण के साथ ही छह-छह माह के दो वर्षीय बीटीसी कोर्सकरवा दिया।यह कोर्स सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय एनलगंज इलाहाबाद से हुआ। बीटीसी कोर्सके पूरा होते ही प्रदेश की सपा सरकार ने बेसिक शिक्षा और एनसीटीई के सभी नियमों को दर किनार करते हुए वोटबैंक पालिसी के तहत शिक्षामित्रों को परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात कर दिया।
प्रदेश सरकार ने पहली बार में 58 हजार से अधिक शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाया गया जबकि दूसरी बार 92 हजार से अधिक शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाये जाने की जोर शोर से तैयारियां चल रही थी। इसके तहत करीब 54 हजार शिक्षामित्रों का समायोजन परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर कर दिया गया।शेष शिक्षामित्रों के समायोजन के लिए प्रदेश सरकार ने पदोन्नति के सारे नियम-कानून ही खत्म कर दिये। शिक्षक-शिक्षिकाओं की जो पदोन्नति चार या पांच वर्षमें होती थी उसको दो वर्षमें ही करना शुरूकर दिया।कईवर्षसे जूनियर हाईस्कूल के वरिष्ठ सहायक अध्यापकों व परिषदीय विद्यालयों के वरिष्ठ शिक्षकों की पदोन्नति रूकी थी उसे भी कर दिया।इससे बड़ी संख्या में सहायक अध्यापकों के पद रिक्त हो गये जिस पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति कर दी गयी। कई जिलों में बड़ी संख्या में पद रिक्त न होने पर शिक्षामित्रों की तैनाती फंसी हुई है।वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्टका निर्देश आने के बाद से मामला पूरी तरह से फंस गया है। जो लोग बिना टीईटी पास किये शिक्षक बन गये है वह लोग शीघ्र टीईटी करें या नौकरी छोड़े। जो लोग अभी तक शिक्षक नहीं बने है और शिक्षक बनने की कतार में लगे हुए हैवह भी टीईटी करने के बाद ही शिक्षक बन पायेगे।इससे शिक्षामित्र बुरी तरह से फंस गये है। अगर सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी एलनगंज, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद ने ठीक से टीईटी की परीक्षा करा दी तो 90 फीसद से अधिक शिक्षामित्र टीईटी परीक्षा पास नहीं कर पायेंगे और उनको नौकरी से हाथ धोना होगा क्योंकि अधिकांश शिक्षामित्रों को गणित, विज्ञान और अंग्रेजी आती नहीं है। उधर, अगर सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने टीईटी परीक्षा के दौरान मानकों से गड़बड़ी किया तो उनका फंसना तय माना जा रहा है।
गुणवत्ता नहीं संख्या बल पद दे रहे जोर : शिक्षामित्र अब भी टीईटी करने के बजाय संख्या बल को आधार बना रहे है।इससे उनका फंसना तय माना जा रहा है क्योंकि शिक्षा के अधिकार-2010 (राईट टू एजूकेशन) के तहत बिना टीईटी पास किये कोई शिक्षक नहीं बन सकता है।इस बात की जानकारी होते हुए भी शिक्षामित्रों ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।इससे अब वह बुरी तरह से फंस गये है। इतना ही नहीं वर्ष2010 के पहले जिन लोगों ने बीटीसी कर लिया था वह भी बिना टीईटी पास किये नौकरी नहीं पा रहे है।शिक्षामित्र अभी भी इस भ्रम में है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट उनकी शैक्षिक गुणवत्ता को देखे बिना ही कैसे निर्णय दे सकता है।
शिक्षा विभाग के अफसरों के सुर बदले
सुप्रीम कोर्टका निर्देश आते ही बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों के सुर बदल गये है।उन्होंने शिक्षामित्रों के तथाकथित नेताओं से साफशब्दों में कह दिया है कि वह लोग दूसरो की नौकरी न लें बल्कि अपनी नौकरी बचाने के लिए टीईटी करें क्योंकि अब कोईभी अधिकारी शिक्षामित्रों की कोईभी और किसी भी स्तर पर मदद नहीं करेगा बल्कि अधिकारी अपने बचाव में सभी प्रयास करेंगे।इससे शिक्षामित्र मायूस हो गये है और उनको पसीना छूट गया है।वह बचाव के लिए संगठन को मजबूत करने में दिन-रात जुटे हुए है लेकिन वह अभी भी टीईटी करने की तरफविशेष ध्यान नहीं दे रहे है बल्कि संख्या बल का हौव्वा दिखाकर नौकरी बचाने में लगे हुए है।
वरिष्ठ अधिवक्ता को खड़ा करेंगे शिक्षामित्र
आदर्श शिक्षामित्र वेलफेयर एसोसिएशन की बैठक गुरुवार को सीपीआई में हुई।इसमें तय किया गया कि संगठन को मजबूत करते हुए अपनी बात सुप्रीम कोर्ट में रखी जायेगी। इसके लिए एक काबिल और शिक्षा क्षेत्र के जाने-माने अधिवक्ता केा सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए खड़ा किया जायेगा। बैठक में विनय पाण्डेय, मनीष पाण्डेय, मो अख्तर, सुभाष चन्द्र यादव, मनीष पाण्डेय,शमीम अख्तर, वन्दना, रुम्माना मारिया, प्रदीप पाल, बाल गोविन्द, विनय त्रिपाठी, राज कुमार, पीयूष गुप्ता, रियाज, रसीदा, महबूब, नीलम आदि शिक्षामित्र मौजूद थे।
बीटीसी के 2795 विद्यालयों को एनओसी जारी
इलाहाबाद। लग रहा हैकि आने वाले समय में गांव और शहर के एक-एक मोहल्ले में कई बीटीसी कालेज खुल जायेंगे। सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय की ओर से गुरुवार की शाम तक 2795 बीटीसी कालेजों को एनओसी जारी की जा चुकी हैजबकि प्रदेश में 709 बीटीसी कालेजों को मान्यता मिल चुकी है। 181 नये कालेजों को संबंद्धता के लिए शासन को फाइल भेजी गयी है।
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इसकी चपेट में आने से परिषदीय विद्यालयों में शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक बन चुके डेढ़ लाख शिक्षामित्र आ गये है जबकि अभी दो लाख शिक्षामित्रों का समायोजन होना बाकी है।
इसके पहले तक शिक्षामित्र मात्र संविदा कर्मीथी लेकिन फ्री की नौकरी मिलने पर वह फूले नहीं समा रहे थे। उनके फूलने की हवा निकल चुकी है।यह लोग अब किसी तरह से नौकरी बचाने में लगे हुए है जबकि मामले का फैसला सुप्रीम कोर्टसे 29 जुलाईको होने वाला है, वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ में भी मामले की सुनवाई जारी है। उधर, इसके पूर्वशिक्षाधिकारियों ने कई बार शिक्षामित्रों से टीईटी करने के लिए कहा लेकिन यह लोग प्रदेश सरकार की शह मिलने पर मदमस्त हो गये थे लेकिन हवा निकलने के बाद जग गये है। प्रदेश की सपा सरकार ने साढ़े तीन लाख संविदा कर्मी शिक्षामित्रों को स्थायी करने की पहल दो वर्ष पहले से शुरू कर दिया था।इसके पीछे जहां वोट बैंक की राजनीति थी वहीं शिक्षामित्रों को धोखे में भी रखा गया।प्रदेश सरकार ने आनन-फानन में शिक्षामित्रों को शिक्षण के साथ ही छह-छह माह के दो वर्षीय बीटीसी कोर्सकरवा दिया।यह कोर्स सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय एनलगंज इलाहाबाद से हुआ। बीटीसी कोर्सके पूरा होते ही प्रदेश की सपा सरकार ने बेसिक शिक्षा और एनसीटीई के सभी नियमों को दर किनार करते हुए वोटबैंक पालिसी के तहत शिक्षामित्रों को परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात कर दिया।
प्रदेश सरकार ने पहली बार में 58 हजार से अधिक शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाया गया जबकि दूसरी बार 92 हजार से अधिक शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाये जाने की जोर शोर से तैयारियां चल रही थी। इसके तहत करीब 54 हजार शिक्षामित्रों का समायोजन परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पद पर कर दिया गया।शेष शिक्षामित्रों के समायोजन के लिए प्रदेश सरकार ने पदोन्नति के सारे नियम-कानून ही खत्म कर दिये। शिक्षक-शिक्षिकाओं की जो पदोन्नति चार या पांच वर्षमें होती थी उसको दो वर्षमें ही करना शुरूकर दिया।कईवर्षसे जूनियर हाईस्कूल के वरिष्ठ सहायक अध्यापकों व परिषदीय विद्यालयों के वरिष्ठ शिक्षकों की पदोन्नति रूकी थी उसे भी कर दिया।इससे बड़ी संख्या में सहायक अध्यापकों के पद रिक्त हो गये जिस पर शिक्षामित्रों की नियुक्ति कर दी गयी। कई जिलों में बड़ी संख्या में पद रिक्त न होने पर शिक्षामित्रों की तैनाती फंसी हुई है।वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्टका निर्देश आने के बाद से मामला पूरी तरह से फंस गया है। जो लोग बिना टीईटी पास किये शिक्षक बन गये है वह लोग शीघ्र टीईटी करें या नौकरी छोड़े। जो लोग अभी तक शिक्षक नहीं बने है और शिक्षक बनने की कतार में लगे हुए हैवह भी टीईटी करने के बाद ही शिक्षक बन पायेगे।इससे शिक्षामित्र बुरी तरह से फंस गये है। अगर सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी एलनगंज, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद ने ठीक से टीईटी की परीक्षा करा दी तो 90 फीसद से अधिक शिक्षामित्र टीईटी परीक्षा पास नहीं कर पायेंगे और उनको नौकरी से हाथ धोना होगा क्योंकि अधिकांश शिक्षामित्रों को गणित, विज्ञान और अंग्रेजी आती नहीं है। उधर, अगर सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने टीईटी परीक्षा के दौरान मानकों से गड़बड़ी किया तो उनका फंसना तय माना जा रहा है।
गुणवत्ता नहीं संख्या बल पद दे रहे जोर : शिक्षामित्र अब भी टीईटी करने के बजाय संख्या बल को आधार बना रहे है।इससे उनका फंसना तय माना जा रहा है क्योंकि शिक्षा के अधिकार-2010 (राईट टू एजूकेशन) के तहत बिना टीईटी पास किये कोई शिक्षक नहीं बन सकता है।इस बात की जानकारी होते हुए भी शिक्षामित्रों ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।इससे अब वह बुरी तरह से फंस गये है। इतना ही नहीं वर्ष2010 के पहले जिन लोगों ने बीटीसी कर लिया था वह भी बिना टीईटी पास किये नौकरी नहीं पा रहे है।शिक्षामित्र अभी भी इस भ्रम में है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट उनकी शैक्षिक गुणवत्ता को देखे बिना ही कैसे निर्णय दे सकता है।
शिक्षा विभाग के अफसरों के सुर बदले
सुप्रीम कोर्टका निर्देश आते ही बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों के सुर बदल गये है।उन्होंने शिक्षामित्रों के तथाकथित नेताओं से साफशब्दों में कह दिया है कि वह लोग दूसरो की नौकरी न लें बल्कि अपनी नौकरी बचाने के लिए टीईटी करें क्योंकि अब कोईभी अधिकारी शिक्षामित्रों की कोईभी और किसी भी स्तर पर मदद नहीं करेगा बल्कि अधिकारी अपने बचाव में सभी प्रयास करेंगे।इससे शिक्षामित्र मायूस हो गये है और उनको पसीना छूट गया है।वह बचाव के लिए संगठन को मजबूत करने में दिन-रात जुटे हुए है लेकिन वह अभी भी टीईटी करने की तरफविशेष ध्यान नहीं दे रहे है बल्कि संख्या बल का हौव्वा दिखाकर नौकरी बचाने में लगे हुए है।
वरिष्ठ अधिवक्ता को खड़ा करेंगे शिक्षामित्र
आदर्श शिक्षामित्र वेलफेयर एसोसिएशन की बैठक गुरुवार को सीपीआई में हुई।इसमें तय किया गया कि संगठन को मजबूत करते हुए अपनी बात सुप्रीम कोर्ट में रखी जायेगी। इसके लिए एक काबिल और शिक्षा क्षेत्र के जाने-माने अधिवक्ता केा सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए खड़ा किया जायेगा। बैठक में विनय पाण्डेय, मनीष पाण्डेय, मो अख्तर, सुभाष चन्द्र यादव, मनीष पाण्डेय,शमीम अख्तर, वन्दना, रुम्माना मारिया, प्रदीप पाल, बाल गोविन्द, विनय त्रिपाठी, राज कुमार, पीयूष गुप्ता, रियाज, रसीदा, महबूब, नीलम आदि शिक्षामित्र मौजूद थे।
बीटीसी के 2795 विद्यालयों को एनओसी जारी
इलाहाबाद। लग रहा हैकि आने वाले समय में गांव और शहर के एक-एक मोहल्ले में कई बीटीसी कालेज खुल जायेंगे। सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय की ओर से गुरुवार की शाम तक 2795 बीटीसी कालेजों को एनओसी जारी की जा चुकी हैजबकि प्रदेश में 709 बीटीसी कालेजों को मान्यता मिल चुकी है। 181 नये कालेजों को संबंद्धता के लिए शासन को फाइल भेजी गयी है।
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