ब्यूरो/अमर उजाला, इलाहाबाद : 72825 सहायक अध्यापकों के चयन के मामले में हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि प्रशिक्षु अध्यापक के तौर पर चयनित किए गए अभ्यर्थियों को सहायक अध्यापक पद पर तीन सप्ताह में नियुक्ति दी जाए।
कोर्ट ने निर्वाचन आयोग की इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि चुनाव के दौरान नियुक्ति देने से मतदाता प्रभावित होंगे। हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्तियां सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश से हो रही हैं न कि प्रदेश सरकार कर रही है।
मनोज कुमार और अरविंद कुमार सिंह सहित तमाम याचिकाओं पर यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता ने दिया है। याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह ने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया संशोधन हाईकोर्ट ने शिवकुमार पाठक केस में रद्द कर दिया था।
आदेश दिया कि नियुक्तियां 12वें संशोधन अर्थात टीईटी मेरिट पर की जाए। इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई। क्वालिटी प्वाइंट पर नियुक्ति चाहने वाले करीब 1100 अभ्यर्थियों ने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल कर तदर्थ नियुक्ति देने की मांग की थी।
आचार संहिता ने रोकी नियुक्तियां
सुप्रीमकोर्ट ने इन सभी को तदर्थ नियुक्ति देने का आदेश कहते हुए दिया कि उनकी नियुक्तियां इस याचिका पर होने वाले निर्णय पर निर्भर करेंगी।
इस आदेश के क्रम में प्रदेश सरकार ने नौ फरवरी 2016 को शासनादेश जारी कर सभी को प्रशिक्षु अध्यापक के तौर पर चयनित कर लिया। उनको छह माह का प्रशिक्षण देने के बाद परीक्षा आयोजित की गई।
परीक्षा में सभी सफल रहे। इसके बाद सरकार ने तीन जनवरी 2017 को शासनादेश जारी कर प्रशिक्षु अध्यापकों को सहायक अध्यापक के पद पर तदर्थ नियुक्ति देने का आदेश जारी किया, मगर चार जनवरी से प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। इसके बाद नियुक्तियां रोक दी गई।
आचार संहिता से नहीं पड़ना चाहिए प्रभाव
याचीगण का कहना था कि नियुक्तियां पहले से प्रक्रिया में हैं और सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के तहत की जा रही हैं। आचार संहिता में कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि पहले से जारी प्रक्रिया को बीच में रोक दिया जाए।
निर्वाचन आयोग की दलील थी कि प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं, ऐसे समय में नियुक्ति देने से मतदाता प्रभावित हो सकते हैं। कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना। कहा कि याचीगण प्रशिक्षु शिक्षक बन चुके हैं। प्रक्रिया पहले से जारी है और सुप्रीमकोर्ट के आदेश से यह नियुक्ति हो रही है, इसलिए आचार संहिता का प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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कोर्ट ने निर्वाचन आयोग की इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि चुनाव के दौरान नियुक्ति देने से मतदाता प्रभावित होंगे। हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्तियां सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के आदेश से हो रही हैं न कि प्रदेश सरकार कर रही है।
मनोज कुमार और अरविंद कुमार सिंह सहित तमाम याचिकाओं पर यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता ने दिया है। याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह ने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए अध्यापक सेवा नियमावली में किया गया संशोधन हाईकोर्ट ने शिवकुमार पाठक केस में रद्द कर दिया था।
आदेश दिया कि नियुक्तियां 12वें संशोधन अर्थात टीईटी मेरिट पर की जाए। इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई। क्वालिटी प्वाइंट पर नियुक्ति चाहने वाले करीब 1100 अभ्यर्थियों ने सुप्रीमकोर्ट में अर्जी दाखिल कर तदर्थ नियुक्ति देने की मांग की थी।
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सुप्रीमकोर्ट ने इन सभी को तदर्थ नियुक्ति देने का आदेश कहते हुए दिया कि उनकी नियुक्तियां इस याचिका पर होने वाले निर्णय पर निर्भर करेंगी।
इस आदेश के क्रम में प्रदेश सरकार ने नौ फरवरी 2016 को शासनादेश जारी कर सभी को प्रशिक्षु अध्यापक के तौर पर चयनित कर लिया। उनको छह माह का प्रशिक्षण देने के बाद परीक्षा आयोजित की गई।
परीक्षा में सभी सफल रहे। इसके बाद सरकार ने तीन जनवरी 2017 को शासनादेश जारी कर प्रशिक्षु अध्यापकों को सहायक अध्यापक के पद पर तदर्थ नियुक्ति देने का आदेश जारी किया, मगर चार जनवरी से प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई। इसके बाद नियुक्तियां रोक दी गई।
आचार संहिता से नहीं पड़ना चाहिए प्रभाव
याचीगण का कहना था कि नियुक्तियां पहले से प्रक्रिया में हैं और सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के तहत की जा रही हैं। आचार संहिता में कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि पहले से जारी प्रक्रिया को बीच में रोक दिया जाए।
निर्वाचन आयोग की दलील थी कि प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं, ऐसे समय में नियुक्ति देने से मतदाता प्रभावित हो सकते हैं। कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना। कहा कि याचीगण प्रशिक्षु शिक्षक बन चुके हैं। प्रक्रिया पहले से जारी है और सुप्रीमकोर्ट के आदेश से यह नियुक्ति हो रही है, इसलिए आचार संहिता का प्रभाव नहीं पड़ेगा.
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