इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक अहम निर्णय मे कहा है कि राजनीतिक कारणों से की गई नियुक्तियों को राजनीतिक कारणों से रद भी किया जा सकता है। इसमें कुछ गलत नहीं है।
यह आदेश जस्टिस एसएन शुक्ला व जस्टिस वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की बेंच ने डॉ. रंजीत सिंह व अन्य की याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए पारित किया। याचिका में कहा गया था कि 20 मार्च को मुख्य सचिव ने एक आदेश देते हुए सपा सरकार के दौरान सरकारी विभागों, पब्लिक कारपोरेशन, बोर्ड व समितियों में अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सदस्यों के रूप में की गई नियुक्तियां समाप्त कर दी थी। यह आदेश आने पर आयुर्वेदिक व यूनानी तिब्बती चिकित्सा पद्धति बोर्ड के अध्यक्ष डॉ.अनवर सैयद ने इस्तीफा दे दिया लेकिन, कुछ सदस्यों ने इस्तीफा नहीं दिया। इस पर मुख्य सचिव के आदेश के अनुपालन में 21 जून को एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए इन सभी सदस्यों की नियुक्तियां रद कर दी गई। याचियों ने रिट याचिका दायर कर तर्क दिया कि प्रावधानों के मुताबिक उनका कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुआ है। लिहाजा उनकी नियुक्तियां रद नहीं की जा सकती हैं।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक कारण के तहत की गई नियुक्ति राजनीतिक कारण के तहत रद भी हो सकती हैं। नामांकन और नामांकन को निरस्त किया जाना नामांकन करने वाले प्राधिकारी के संतुष्टि का मामला है। इन पदों पर नियुक्ति के लिए नामांकन का अधिकार राज्य सरकार को है। इसलिए पद से हटाने का भी अधिकार राज्य सरकार को है। ऐसे सदस्य सरकार की इच्छा तक ही पद पर बने रह सकते हैं।
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यह आदेश जस्टिस एसएन शुक्ला व जस्टिस वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की बेंच ने डॉ. रंजीत सिंह व अन्य की याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए पारित किया। याचिका में कहा गया था कि 20 मार्च को मुख्य सचिव ने एक आदेश देते हुए सपा सरकार के दौरान सरकारी विभागों, पब्लिक कारपोरेशन, बोर्ड व समितियों में अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सदस्यों के रूप में की गई नियुक्तियां समाप्त कर दी थी। यह आदेश आने पर आयुर्वेदिक व यूनानी तिब्बती चिकित्सा पद्धति बोर्ड के अध्यक्ष डॉ.अनवर सैयद ने इस्तीफा दे दिया लेकिन, कुछ सदस्यों ने इस्तीफा नहीं दिया। इस पर मुख्य सचिव के आदेश के अनुपालन में 21 जून को एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए इन सभी सदस्यों की नियुक्तियां रद कर दी गई। याचियों ने रिट याचिका दायर कर तर्क दिया कि प्रावधानों के मुताबिक उनका कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुआ है। लिहाजा उनकी नियुक्तियां रद नहीं की जा सकती हैं।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक कारण के तहत की गई नियुक्ति राजनीतिक कारण के तहत रद भी हो सकती हैं। नामांकन और नामांकन को निरस्त किया जाना नामांकन करने वाले प्राधिकारी के संतुष्टि का मामला है। इन पदों पर नियुक्ति के लिए नामांकन का अधिकार राज्य सरकार को है। इसलिए पद से हटाने का भी अधिकार राज्य सरकार को है। ऐसे सदस्य सरकार की इच्छा तक ही पद पर बने रह सकते हैं।
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