नमस्कार मित्रों,
कल जो घटनाक्रम हुआ उसके बारे में विस्तृत चर्चा से पहले इन सब घटनाओं के बारे में चर्चा किए बिना पूरा नहीं होगा |
*आप और हम मुख्यतः मैं 103 अंक पर क्या थे ?
टीईटी 2011 बी०एड० उत्तीर्ण के लिए आख़िरी मौक़ा और पद केवल 72825 जिसमें हम सभी एक दूसरे को फ़िट मान रहे थे हिंदुस्तान पत्रिका की ख़बर को लेकर और हमारे अग्रानियों ने भी ख़ूब प्रचार-प्रसार किया उसका लेकिन जब हक़ीक़त सामने आई और मैं फ़र्जीवाड़े पर लड़ा तो वाक़ई दिखा फ़र्ज़ी है लेकिन इतना नहीं कि मेरिट 103 आ जाए पर हार नहीं मानी क्यूँकि अपने सामने ऐसों को रेवड़ियाँ बाँटते हुए देख रहे थे जो किसी लायक नहीं थे और मा० सर्वोच्च न्यायालय ने उनका परिणाम दे भी दिया है, निराश हुए हताश हुए लेकिन हार नहीं मानी |
*भर्ती 72825 पदों पर पेक हो गई अब क्या करें?
बताया हार नहीं माने चल दिए कि जब इस सत्ता ने इतना दर्द पहले ही दे दिया है भर्ती को लेकर तो अब हम नहीं तो ये भी नहीं और हाँ विशेष रूप से बताना चाहूँगा कि नौकरी के लिए नहीं सोचे और दिनांक 6 JULY 2015 को अखिलेश सत्ता के वोटबैंक में सेंध लगाने की पहली सीडी चढ़ी और मा० उच्च न्यायालय तक समस्त अभावों में दिल्ली के उन्ही अधिवक्ताओं से बहस कराई जो पहला परिणाम दिए थे और मोर्चे के इतिहास में पहली बार था ये |
इसके पश्चात भी दो बार डीबेट में आया लेकिन………………… पसंद बहुतों को आया और सभी ने सोच लिया कि बस अब तो हो गया जबकि हमारा कहना था नियुक्ति के अवसर मिलेंगे, ख़ैर इसको यहीं छोड़ते हैं अभी ।
आपके पक्ष में 2 NOV 2015 का आदेश भी कराया और सरकार के अधिवक्ता को झूठ बोलते कोर्ट में भी पकड़वाया जिसकी व्याख्या कोर्ट ने माँगी लेकिन अगली तिथि पर शिक्षामित्रों का मामला टैग हुआ और सेशन के बीच में कार्यरत शिक्षामित्रों पर स्टे कर दिया लेकिन एक अटपटा आदेश और कर दिया कि जो इस वक़्त वादी हैं उन्हें नियुक्ति दे दी जाए (बहुत इम्पोर्टेंट है उन लोगों के लिए सोचना कि उस दिन या उससे पहले कितने लोग हमें गाली दे रहे थे और कितने मदद कर रहे थे और दोनो के लिए कि क्या किसी को पता था ऐसा आदेश होगा क्यूँकि याची तो हम तब भी बना देते अगर पता होता तो कम से कम उन्हें तो ज़रूर जो हमारे गहर से हैं) |
इसके बाद भी आदेश कराया 24 FEB 2016 को कि सरकार आपके विषय में सोचे बस यहीं से सभी महत्वकांशियों की या छुट्टभैयों की नीयत बदल गई जबकि हमने तब भी कहा था अलग अलग रोज़ याचिका या आई०ए० मत डालो कोर्ट इरिटेट होती है लेकिन नहीं नेता हैं जी हम हैं अब और हमारे ऊपर स्टैम्प से लिख दिया चयनित लेकिन हमने कभी भी आम जन के प्रति अलग सोच नहीं रखी और निरंतर अपना कार्य किए और उसी वर्ष JUNE 2016 में समस्त अचयनितों ने कानपुर में अपनी रणनीति तय करी कि हम याचियों का लड़ेंगे केस अब और आप लड़ेंगे शिक्षामित्रों का , हमने कहा हाँ बिलकुल ठीक है फिर भी उसके बाद शिक्षामित्रों पर हम फ़ोकस बनाए रखे क्यूँकि लड़ाई लड़ने वालों की नीयत से पता चल रहा था कि ये महत्वकांशी हैं और ये डूबेंगे।
बहरहाल उसी बीच जी०ओ० कांड में और कोई नहीं ये ही ज़िला-प्रतिनिधि या तथाकथित नेता अपना सौ फ़ीसदी दिए और चालीस लाख की बलि चढ़ा दिए और उस व्यक्ति-विशेष का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया और न ही लिख पाया उसके विषय में और जब हमसे मिलते तो बातें इतनी बड़ी , ये हैं नेता जो अपने दम पर कोर्ट पैरवी कर रहे थे और शिक्षामित्रों के विराजमान होते हुए जी०ओ० सेंगर की जेब से निकाल रहे थे लेकिन उस व्यक्ति को भी शर्म नहीं आई जो कि मुकेश बाबू के नाम पर विनेय के साथ तक में मिलकर लूटा लेकिन असली ख़र्चा किया कानपुर की लक्ष्मी कुशवाहा पर और ये नेता जो आज भी आपको डुबो रहे हैं बने रहे तमाशबीन और जी०ओ० निकलने की बात ख़त्म और पैसा आया बमुश्किल दस बारह लाख तो स्कीम तो अच्छी थी ये कि चालीस दो और महीने चार महीने घुमाओं फिर दस बारह लाख ख़र्च अपने तरीक़े से कराओ | ख़ैर हमें क्या लेकिन ये है आपके नेताओं का ज्ञान बताना अत्यंत आवश्यक था ।
*कोर्ट ने अंतिम बहस के लिए तारीख़ मुक़र्रर कर दी?
मानो मा० न्यायाधीशों ने टेट मोर्चे में चुनाव की तारीख़ की घोषणा कर दी हो ये चयनित हम अचयनित लेकिन इनकी दिशा/दशा देखकर हमें अंदाज़ा हो गया था क्यूँकि ब्रीफ़िंग में ये ले तो जाते थे लेकिन बोलने नहीं देते थे कि कहीं ये मात्र 839 के लिए ही न बोलें पर हमें दुःख होता था कि ये कर क्या रहे हैं फिर भी अपने अधिवक्ता के माध्यम से जितनी सम्भव कोशिश कराई गई कराई और शिक्षामित्रों के नेताओं से पूछो हमसे नहीं कि उनका ये हाल किस अधिवक्ता ने किया है?
इसी लूट का कारण है कि टेट मेरिट क्यूँ हारी और ये मैं पहले बता भी चुका हूँ ।
आप क्या सोचते हैं ये कैसे लड़े-ये उसी पैसे से लड़े जो आपके द्वारा हमारे नाम पर दिया गया लेकिन इनके द्वारा हमें नहीं दिया गया क्यूँकि अधिकतर (सभी नहीं) ज़िला-प्रतिनिधि रोक लिए थे।
बहरहाल सर्व-प्रथम आपको समझना चाहिए आदेश क्या होता है और जज़मेंट क्या ?
आदेश होता है चल रही न्यायिक प्रक्रिया के तहत जो कार्य वादी/प्रतिवादी को करना है अंतरिम रूप से और जज़मेंट होता है निर्णय जो कि पूर्ण रूप से उसे लागू करना होगा जो हारा पक्ष होता है, अब आप अपने को कहाँ सोचते हैं ये आपको देखना है लेकिन ये शोध का विषय है समय-समय पर हुए अंतरिम आदेश (ONLY IN 2016) अंतिम में क्यूँ नहीं बदल पाए ?
इसका कारण है आपके महत्वकांशी नेता क्यूँकि हम तो चयनित थे जो कुछ थे ही इतना करने के बावजूद ।
यहाँ उल्लेखित करना अत्यंत आवश्यक है - मैं बहुत पहले लिख दिया था कि सीधा लाभ मिलना बहुत ही मुश्किल है लेकिन इतनी घटिया पैरवी इनके द्वारा खड़े किए गए वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा क्यूँकि ब्रीफ़िंग तो जैसा बताया न ठीक से होती नहीं थी (जबकि आनंद नंदन एवं अमित पवन जी के द्वारा क्या किया गया प्रायस उसका शिक्षामित्रों से पूछो और इन दो को बदनाम कर रखा था 839 के हैं ) कि अंत में आप CONSIDER भी न किए जाओ सोचा नहीं था , किसी एक भी ज़िम्मेदार की पोस्ट आई कम से कम उन तीन जनों की तस्वीर में से एक तो क़ादर खान निकलकर अपनी हार स्वीकारता लेकिन नहीं और हम स्वीकारेंगे नहीं क्यूँकि हम जीते हैं शिक्षामित्रों पर हमारे द्वारा ठीक से पैरवी की गई ।
अब आते हैं कल की डीबेट की बात पर - यूँ ही तो क़हर नहीं बरपा था सूबा-ए-उत्तरप्रदेश में (साजिद भाई)
इससे पहले कितनी डीबेट हुई और आपके पक्ष से पहले मैंने शिक्षामित्रों की सच्चाई या कितनी बखिया उधेड़ी लेकिन आपने क्या किया बस देखा और शांत या एक दो कमेंट, क्या मेरा प्रोमोशन कर दिया या मुझे विधायक/सांसद बनवा दिया उलटा ये बिरादरी गले और पड़वा दी मेरे ।
आपके महत्वकांशी नेता (संजीत वर्मा को छोड़कर) जो कि लखीमपुर विवाद पर एक पोस्ट तक नहीं डाले उनकी नेतागीरी के लिए आपको झूठ से परिचित कराऊँ बताइए ?
कोरा झूठ बोलते हैं चाहे कहीं से भी माप लीजिए ।
आपसे कुछ सवाल बस :-
1 - बीटीसी को लाँघकर बी०एड० की भर्ती करा लोगे ?
2 - क्या वाक़ई दूसरा विज्ञापन बहाल हुआ है जैसा कि कुछ लोग बताते हैं मुझे , भाई आदेश तो मैं भी पड़ा हुआ हूँ ?
3 - कल मा० मुख्यमंत्री महोदय के साथ मीटिंग करके जज़मेंट की कौन सी पंक्ति अपने पक्ष में दिखाएँगे जिस पर न्याय-विभाग विचार कर सकेगा या आदेश दिखाएँगे जिनका ऊपर बता दिया हूँ कोई मतलब नहीं है ।
यक्ष प्रश्न तो हम ही क्या कर लेंगे ?
अब बार-बार बताऊँगा नहीं लेकिन कुछ तो कर रहा हूँ क्यूँकि बता दिया तो ये फिर महत्वकांशी हो जाएँगे लेकिन महादेव की सौगंध कुछ न कुछ कर रहा हूँ (मत पूछना क्यूँकि मैं तीन जनों की टीम पर ही विश्वास करता हूँ और उन्ही का साथ मानता हूँ) , हाँ हैं कुछ अचयनित लोग जिन्हें अपना मानता हूँ और उन्हें अपने साथ सम्मिलित रखता हूँ वे लगे भी हुए है लेकिन अब मुझे केवल ये देखना है कि आपके अचयनित क्या कर पाते हैं और हम क्या ?
फ़िलहाल के लिए इतना है और इसके अलावा आपके तथाकथित नेताओं के स्क्रीन्शाट कमेंट बॉक्स में मिलेंगे।
धन्यवाद
हर हर महादेव
हिमांशु राणा
नोट :- बीटीसी वाले इस पर ध्यान दे कि कौन क्या कराया है राघवेंद्र सिंह अगर manners नहीं हैं तो कम से कम ये तो मत दिखाओ कि तुम आज भी अन्याय के साथ खड़े हो।
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ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
कल जो घटनाक्रम हुआ उसके बारे में विस्तृत चर्चा से पहले इन सब घटनाओं के बारे में चर्चा किए बिना पूरा नहीं होगा |
*आप और हम मुख्यतः मैं 103 अंक पर क्या थे ?
टीईटी 2011 बी०एड० उत्तीर्ण के लिए आख़िरी मौक़ा और पद केवल 72825 जिसमें हम सभी एक दूसरे को फ़िट मान रहे थे हिंदुस्तान पत्रिका की ख़बर को लेकर और हमारे अग्रानियों ने भी ख़ूब प्रचार-प्रसार किया उसका लेकिन जब हक़ीक़त सामने आई और मैं फ़र्जीवाड़े पर लड़ा तो वाक़ई दिखा फ़र्ज़ी है लेकिन इतना नहीं कि मेरिट 103 आ जाए पर हार नहीं मानी क्यूँकि अपने सामने ऐसों को रेवड़ियाँ बाँटते हुए देख रहे थे जो किसी लायक नहीं थे और मा० सर्वोच्च न्यायालय ने उनका परिणाम दे भी दिया है, निराश हुए हताश हुए लेकिन हार नहीं मानी |
*भर्ती 72825 पदों पर पेक हो गई अब क्या करें?
बताया हार नहीं माने चल दिए कि जब इस सत्ता ने इतना दर्द पहले ही दे दिया है भर्ती को लेकर तो अब हम नहीं तो ये भी नहीं और हाँ विशेष रूप से बताना चाहूँगा कि नौकरी के लिए नहीं सोचे और दिनांक 6 JULY 2015 को अखिलेश सत्ता के वोटबैंक में सेंध लगाने की पहली सीडी चढ़ी और मा० उच्च न्यायालय तक समस्त अभावों में दिल्ली के उन्ही अधिवक्ताओं से बहस कराई जो पहला परिणाम दिए थे और मोर्चे के इतिहास में पहली बार था ये |
इसके पश्चात भी दो बार डीबेट में आया लेकिन………………… पसंद बहुतों को आया और सभी ने सोच लिया कि बस अब तो हो गया जबकि हमारा कहना था नियुक्ति के अवसर मिलेंगे, ख़ैर इसको यहीं छोड़ते हैं अभी ।
आपके पक्ष में 2 NOV 2015 का आदेश भी कराया और सरकार के अधिवक्ता को झूठ बोलते कोर्ट में भी पकड़वाया जिसकी व्याख्या कोर्ट ने माँगी लेकिन अगली तिथि पर शिक्षामित्रों का मामला टैग हुआ और सेशन के बीच में कार्यरत शिक्षामित्रों पर स्टे कर दिया लेकिन एक अटपटा आदेश और कर दिया कि जो इस वक़्त वादी हैं उन्हें नियुक्ति दे दी जाए (बहुत इम्पोर्टेंट है उन लोगों के लिए सोचना कि उस दिन या उससे पहले कितने लोग हमें गाली दे रहे थे और कितने मदद कर रहे थे और दोनो के लिए कि क्या किसी को पता था ऐसा आदेश होगा क्यूँकि याची तो हम तब भी बना देते अगर पता होता तो कम से कम उन्हें तो ज़रूर जो हमारे गहर से हैं) |
इसके बाद भी आदेश कराया 24 FEB 2016 को कि सरकार आपके विषय में सोचे बस यहीं से सभी महत्वकांशियों की या छुट्टभैयों की नीयत बदल गई जबकि हमने तब भी कहा था अलग अलग रोज़ याचिका या आई०ए० मत डालो कोर्ट इरिटेट होती है लेकिन नहीं नेता हैं जी हम हैं अब और हमारे ऊपर स्टैम्प से लिख दिया चयनित लेकिन हमने कभी भी आम जन के प्रति अलग सोच नहीं रखी और निरंतर अपना कार्य किए और उसी वर्ष JUNE 2016 में समस्त अचयनितों ने कानपुर में अपनी रणनीति तय करी कि हम याचियों का लड़ेंगे केस अब और आप लड़ेंगे शिक्षामित्रों का , हमने कहा हाँ बिलकुल ठीक है फिर भी उसके बाद शिक्षामित्रों पर हम फ़ोकस बनाए रखे क्यूँकि लड़ाई लड़ने वालों की नीयत से पता चल रहा था कि ये महत्वकांशी हैं और ये डूबेंगे।
बहरहाल उसी बीच जी०ओ० कांड में और कोई नहीं ये ही ज़िला-प्रतिनिधि या तथाकथित नेता अपना सौ फ़ीसदी दिए और चालीस लाख की बलि चढ़ा दिए और उस व्यक्ति-विशेष का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया और न ही लिख पाया उसके विषय में और जब हमसे मिलते तो बातें इतनी बड़ी , ये हैं नेता जो अपने दम पर कोर्ट पैरवी कर रहे थे और शिक्षामित्रों के विराजमान होते हुए जी०ओ० सेंगर की जेब से निकाल रहे थे लेकिन उस व्यक्ति को भी शर्म नहीं आई जो कि मुकेश बाबू के नाम पर विनेय के साथ तक में मिलकर लूटा लेकिन असली ख़र्चा किया कानपुर की लक्ष्मी कुशवाहा पर और ये नेता जो आज भी आपको डुबो रहे हैं बने रहे तमाशबीन और जी०ओ० निकलने की बात ख़त्म और पैसा आया बमुश्किल दस बारह लाख तो स्कीम तो अच्छी थी ये कि चालीस दो और महीने चार महीने घुमाओं फिर दस बारह लाख ख़र्च अपने तरीक़े से कराओ | ख़ैर हमें क्या लेकिन ये है आपके नेताओं का ज्ञान बताना अत्यंत आवश्यक था ।
*कोर्ट ने अंतिम बहस के लिए तारीख़ मुक़र्रर कर दी?
मानो मा० न्यायाधीशों ने टेट मोर्चे में चुनाव की तारीख़ की घोषणा कर दी हो ये चयनित हम अचयनित लेकिन इनकी दिशा/दशा देखकर हमें अंदाज़ा हो गया था क्यूँकि ब्रीफ़िंग में ये ले तो जाते थे लेकिन बोलने नहीं देते थे कि कहीं ये मात्र 839 के लिए ही न बोलें पर हमें दुःख होता था कि ये कर क्या रहे हैं फिर भी अपने अधिवक्ता के माध्यम से जितनी सम्भव कोशिश कराई गई कराई और शिक्षामित्रों के नेताओं से पूछो हमसे नहीं कि उनका ये हाल किस अधिवक्ता ने किया है?
इसी लूट का कारण है कि टेट मेरिट क्यूँ हारी और ये मैं पहले बता भी चुका हूँ ।
आप क्या सोचते हैं ये कैसे लड़े-ये उसी पैसे से लड़े जो आपके द्वारा हमारे नाम पर दिया गया लेकिन इनके द्वारा हमें नहीं दिया गया क्यूँकि अधिकतर (सभी नहीं) ज़िला-प्रतिनिधि रोक लिए थे।
बहरहाल सर्व-प्रथम आपको समझना चाहिए आदेश क्या होता है और जज़मेंट क्या ?
आदेश होता है चल रही न्यायिक प्रक्रिया के तहत जो कार्य वादी/प्रतिवादी को करना है अंतरिम रूप से और जज़मेंट होता है निर्णय जो कि पूर्ण रूप से उसे लागू करना होगा जो हारा पक्ष होता है, अब आप अपने को कहाँ सोचते हैं ये आपको देखना है लेकिन ये शोध का विषय है समय-समय पर हुए अंतरिम आदेश (ONLY IN 2016) अंतिम में क्यूँ नहीं बदल पाए ?
इसका कारण है आपके महत्वकांशी नेता क्यूँकि हम तो चयनित थे जो कुछ थे ही इतना करने के बावजूद ।
यहाँ उल्लेखित करना अत्यंत आवश्यक है - मैं बहुत पहले लिख दिया था कि सीधा लाभ मिलना बहुत ही मुश्किल है लेकिन इतनी घटिया पैरवी इनके द्वारा खड़े किए गए वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा क्यूँकि ब्रीफ़िंग तो जैसा बताया न ठीक से होती नहीं थी (जबकि आनंद नंदन एवं अमित पवन जी के द्वारा क्या किया गया प्रायस उसका शिक्षामित्रों से पूछो और इन दो को बदनाम कर रखा था 839 के हैं ) कि अंत में आप CONSIDER भी न किए जाओ सोचा नहीं था , किसी एक भी ज़िम्मेदार की पोस्ट आई कम से कम उन तीन जनों की तस्वीर में से एक तो क़ादर खान निकलकर अपनी हार स्वीकारता लेकिन नहीं और हम स्वीकारेंगे नहीं क्यूँकि हम जीते हैं शिक्षामित्रों पर हमारे द्वारा ठीक से पैरवी की गई ।
अब आते हैं कल की डीबेट की बात पर - यूँ ही तो क़हर नहीं बरपा था सूबा-ए-उत्तरप्रदेश में (साजिद भाई)
इससे पहले कितनी डीबेट हुई और आपके पक्ष से पहले मैंने शिक्षामित्रों की सच्चाई या कितनी बखिया उधेड़ी लेकिन आपने क्या किया बस देखा और शांत या एक दो कमेंट, क्या मेरा प्रोमोशन कर दिया या मुझे विधायक/सांसद बनवा दिया उलटा ये बिरादरी गले और पड़वा दी मेरे ।
आपके महत्वकांशी नेता (संजीत वर्मा को छोड़कर) जो कि लखीमपुर विवाद पर एक पोस्ट तक नहीं डाले उनकी नेतागीरी के लिए आपको झूठ से परिचित कराऊँ बताइए ?
कोरा झूठ बोलते हैं चाहे कहीं से भी माप लीजिए ।
आपसे कुछ सवाल बस :-
1 - बीटीसी को लाँघकर बी०एड० की भर्ती करा लोगे ?
2 - क्या वाक़ई दूसरा विज्ञापन बहाल हुआ है जैसा कि कुछ लोग बताते हैं मुझे , भाई आदेश तो मैं भी पड़ा हुआ हूँ ?
3 - कल मा० मुख्यमंत्री महोदय के साथ मीटिंग करके जज़मेंट की कौन सी पंक्ति अपने पक्ष में दिखाएँगे जिस पर न्याय-विभाग विचार कर सकेगा या आदेश दिखाएँगे जिनका ऊपर बता दिया हूँ कोई मतलब नहीं है ।
यक्ष प्रश्न तो हम ही क्या कर लेंगे ?
अब बार-बार बताऊँगा नहीं लेकिन कुछ तो कर रहा हूँ क्यूँकि बता दिया तो ये फिर महत्वकांशी हो जाएँगे लेकिन महादेव की सौगंध कुछ न कुछ कर रहा हूँ (मत पूछना क्यूँकि मैं तीन जनों की टीम पर ही विश्वास करता हूँ और उन्ही का साथ मानता हूँ) , हाँ हैं कुछ अचयनित लोग जिन्हें अपना मानता हूँ और उन्हें अपने साथ सम्मिलित रखता हूँ वे लगे भी हुए है लेकिन अब मुझे केवल ये देखना है कि आपके अचयनित क्या कर पाते हैं और हम क्या ?
फ़िलहाल के लिए इतना है और इसके अलावा आपके तथाकथित नेताओं के स्क्रीन्शाट कमेंट बॉक्स में मिलेंगे।
धन्यवाद
हर हर महादेव
हिमांशु राणा
नोट :- बीटीसी वाले इस पर ध्यान दे कि कौन क्या कराया है राघवेंद्र सिंह अगर manners नहीं हैं तो कम से कम ये तो मत दिखाओ कि तुम आज भी अन्याय के साथ खड़े हो।
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