खुद सोचिये क्या सुप्रीम कोर्ट रूल ऑफ़ लॉ को
दरकिनार करके शिक्षा मित्रो से सम्बंधित मामले में ऐसा फैसला दे सकता है।
जिससे एक जन सामान्य का भी कानून व्यवस्था से विश्वास हट जाये????
शिक्षा मित्रो की अनुपस्थिति में स्कूलो में तालाबंदी की विकराल स्थिति दिखाकर कुछ समय के लिए सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के आर्डर पर स्टे देने की बात सरकार द्वारा रखी गयी । पूर्व में दी गयी नजीरो के कारण कोर्ट टेक्निकली स्टे देने को bound था । अतः उसने स्टे ग्रांट किया । .......दीपक मिश्रा जो स्वयं एक धुआदार वकील रह चुके है। वो यह भाप चुके थे कि अब टेट् नेता,सरकार और शिक्षा मित्र आपस में दुरभि संधि करके अपनी अपनी याचिकाओं पर सुनवाई एक लंबे समय तक टलवायेंगे और बीटीसी बाले इनको टक्कर देने में समर्थ नही है। इसीलिए एक निश्चित कट ऑफ टेटे मेरिट से ऊपर अकादमिक मेरिट वाले याचिका कर्ताओ को तदर्थ नियुक्ति का आदेश दिया जिससे अगली तारिख पर हज़ोरो नए अभ्यर्थी equality before लॉ के आधार पर नियुक्ति की मांग करें और मामला और पेचीदा हो जाए । दूसरी तरफ जब सरकार शिक्षा मित्रो को बाहर करने पर उत्पन्न होने वाली स्थिति का रोना रोकर फिर स्टे एक्सटेंड करने की बात कहेंगी तथा टेंट के चंदा चोर चुप रहकर उसका समर्थन करके आगे तारिख लेने की सोचेंगे तब एक दमदार विपक्ष के रूप में ये सुप्रीम कोर्ट द्वारा तैयार अकादमिक मेरिट वाला विपक्ष हज़ारो की संख्या में होगा । ........और तब क्वेश्चन ऑफ़ लॉ एंड लीगल validity ऑफ़ शिक्षा मित्र की स्थिति पर बहस होगी तो शायद 10 min में ही शिक्षा मित्रो का चैप्टर हमेशा के लिए समाप्त हो जाये । और विधिक व्यवस्था और rte का हवाला देकर रिक्त पदों के सापेक्ष सभी टेट वालो को नियुक्ति का आदेश दे दिया जाय । न्याय की किताबे और कानून district कोर्ट से लेकर हाइकोर्ट,सुप्रीमकोर्ट तक एक ही है। हाइकोर्ट की पूर्ण पीठ का आदेश विधि सम्मत ,पत्थर की लकीर है। जिसको सुप्रीम कोर्ट की वैधता अगली तारीख को मिलेगी ।
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